यह केजरीवाल का नहीं, लोकतंत्र का सवाल है

जो लोग दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों पर अहंकारी और अराजक होने की तोहमत लगाते हैं, उन्हें दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल का रवैया देखना चाहिए.

यह केजरीवाल का नहीं, लोकतंत्र का सवाल है

जो लोग दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों पर अहंकारी और अराजक होने की तोहमत लगाते हैं, उन्हें दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल का रवैया देखना चाहिए. उनके गेस्ट रूम में आठ दिन से राज्य के मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री धरने पर बैठे हैं, उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्यमंत्री अनशन की वजह से अस्पताल तक पहुंच चुके, लेकिन उपराज्यपाल ने जैसे तय कर रखा है कि जब तक केंद्र सरकार से हरी झंडी नहीं मिलेगी, वह इन आंदोलनकारियों से बात तक नहीं करेंगे. उनके लिए मुख्यमंत्री के ट्वीट और उनकी ओर से आ रहे अनुरोध भी बेमानी हैं.

केजरीवाल की मुख्य शिकायत क्या है...? यही कि अफसर हड़ताल कर रहे हैं, उन्हें काम पर लौटने के लिए कहना चाहिए. अफसरों का कहना है कि वे हड़ताल पर नहीं हैं, लेकिन वे किस तरह काम कर रहे हैं...? क्या उन्हें अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों की ऐसी अवहेलना करने का हक है...? अगर उन्हें LG की शह न हो, तो क्या वे मंत्रियों की बुलाई बैठक का बहिष्कार कर सकते हैं...? क्या यही अफसर दूसरे राज्यों और नेताओं के कहीं ज़्यादा अवमाननापूर्ण व्यवहार के आदी नहीं रहे हैं...? क्या वे नेताओं के जूते उठाने से लेकर उनकी गालियां तक सुनते-खाते नहीं देखे गए हैं...? कहीं और तो अफसरों के इस रवैये की शिकायत नहीं है...?

कहने का मतलब यह नहीं कि अफसरों से ऐसा व्यवहार होना चाहिए. किसी लोकतंत्र में सबको सम्मान और गरिमा के साथ जीने का हक है और अगर हम यह सुनिश्चित नहीं कर पाते, तो हमें इस पर शर्मिन्दा होना चाहिए. आम आदमी पार्टी के प्रसंग में बताया जा रहा है कि उसके नेताओं ने मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट की. मारपीट की यह बात भरोसे लायक नहीं लगती. बहुत संभव है, धक्कामुक्की जैसा कुछ हुआ हो, जिसे मुख्य सचिव मारपीट बता रहे हैं. जिस मेडिकल रिपोर्ट के सहारे यह केस बनाया जा रहा है, वह हादसे के 24 घंटे बाद की है. फिर भी मुख्य सचिव की शिकायत वैध है. उनके साथ भी किसी सरकार को हिंसक अहंकार के साथ पेश आने का हक नहीं है. लेकिन क्या इसी बिना पर किसी लोकतांत्रिक सरकार को आप काम करने नहीं देंगे...? आप उसको सबक सिखाने के लिए अफसरों को प्रोत्साहित करेंगे कि वे मंत्रियों द्वारा बुलाई गई बैठकों में न जाएं...? आप काम न करने के लिए उनकी तरफ़दारी करेंगे...?

यह सच है कि अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम के तौर-तरीके कई बार एक तरह की अराजकता का एहसास कराते हैं. कई बार उनकी वैचारिक दिशा से गहरी असहमति का अनुभव होता है. शासन-प्रशासन के खुर्राट लोगों को आम आदमी पार्टी के तौर-तरीके कई बार गैरपेशेवर लगते हैं. उन्हें लगता है कि यह पार्टी नियम-कायदों पर अमल नहीं करती. लेकिन इसके बावजूद इसमें शक नहीं कि भारतीय राजनीति में हाल के वर्षों में जो सबसे उजली धारा देखी है, वह आम आदमी पार्टी की है. यही वजह है कि दिल्ली के लोगों ने उन पर भरोसा जताया है. शिक्षा और सेहत जैसे बुनियादी सवालों पर आम आदमी पार्टी की पहल प्रशंसनीय रही है.

लेकिन माहौल कुछ ऐसा बनाया जा रहा है जैसे केजरीवाल और सिसोदिया को धरनों के अलावा कुछ नहीं आता, कि उन्हें दिल्ली का नहीं, अपनी राजनीति का ही ख़याल है. और यह माहौल सिर्फ BJP-कांग्रेस जैसी पार्टियां ही नहीं बना रहीं, वह अफसरशाही बना रही है, जो दरअसल अपने-आप को बचाए रखने के बाद ही कोई दूसरे काम करती है. राजनीतिक दल और नेता भले बदनाम रहे हों, लेकिन सत्ता का सुख और उसका बेजा लाभ लेने में अफसरशाह उनसे कहीं ज़्यादा आगे रहे हैं. भारत में भ्रष्टाचार की मूल वजह नेता नहीं, अफसर ही हैं.

दरअसल यह पूरी अफसरशाही - खासकर IAS संवर्ग - इस देश का वह श्रेष्ठिवर्ग है, जिसे अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए बनाया था. यह देशसेवा के लिए नहीं, अंग्रेजों की सुविधा के लिए बनाया गया. ICS वह फौलादी ज़ंजीर थी, जिसका काम भारत को एक रखना था. कई बड़े नेताICS छोड़कर राजनीति में आए. अंग्रेज चले गए, लेकिन सिविल सर्विस ऐडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस की तरह बची रही. यही अफसरशाही अब देश चला रही है. उसे यह मंज़ूर नहीं है कि कोई उसकी बनाई व्यवस्था में बदलाव करे. केजरीवाल और उनके सहयोगियों की बड़ी गलती बस यही है.

लेकिन इस गलती के बहाने यह अफसरशाही जिस तरह की मांग कर रही है, वह ख़तरनाक है. वह एक तरह से राजनीतिक नेतृत्व को बेमानी बनाने पर तुली हुई है. सवाल है, इस पर कौन कार्रवाई करेगा...? बस एक घटना को लेकर महीनों तक खिंचे इस टकराव का असली मकसद दरअसल अपनी बादशाहत कायम रखना है.

 

प्रियदर्शन NDTV इंडिया में सीनियर एडिटर हैं...

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