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This Article is From Aug 09, 2019

नर्मदा बांध प्रभावितों के पुनर्वास का सवाल दशकों बाद भी अपनी जगह बरकरार

नर्मदा बचाओ आंदोलन का राजघाट सत्याग्रह, मेधा पाटकर 39 साल बाद भी नर्मदा बचाने के लिए मैदान में खड़ी हो रहीं

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नर्मदा बांध प्रभावितों के पुनर्वास का सवाल दशकों बाद भी अपनी जगह बरकरार

नर्मदा बचाओ आंदोलन का राजघाट सत्याग्रह गुरुवार-शुक्रवार के बीच देर रात बांध के गेट खोलने का आदेश जारी करने और बड़वानी कलेक्टर के आश्वासन पर स्थगित किया गया है. सभी प्रभावितों का सरकार और आंदोलन के प्रतिनिधियों के साथ ज्वाइंट सर्वे कराया जाएगा. सरकारी पुनर्वास समितियों में आंदोलन के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा. नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के मंत्री से जल्द मुलाकात कराई जाएगी. लेकिन सवाल है कि क्यों कोई मेधा पाटकर 39 सालों बाद भी नर्मदा बचाने खड़ी हो रही हैं.

एक बार फिर नर्मदा बचाओ आंदोलन के बैनर तल डूब प्रभावित धरने पर बैठे थे, डैम का गेट खुला, बेहतर भविष्य का आश्वासन मिला... डूब प्रभावित धरने से उठ गए. आज की तारीख में नर्मदा का जलस्तर 131 मीटर से थोड़ा नीचे है, लेकिन ऐतिहासिक राजघाट चारों ओर पानी से घिरा है ... सरदार सरोवर बांध की डूब में आ रहे राजघाट कुकरा में गुरुवार सुबह तेजी से पानी भरा ...बुधवार रात 11 बजे कलेक्टर और एसपी निरीक्षण के लिए पहुंचे थे ... रात में ही नर्मदा में बढ़ते पानी को लेकर गुरुवार सुबह से डूब क्षेत्र में लगी दुकानें, मकान, मंदिर और आश्रमों को टीन शेड में विस्थापित करने के निर्देश दिए थे.
      
दो साल पहले इन विस्थापितों के इस आशियाने की तस्वीर हमने आपको दिखाई थी. आज जब उनका गुस्सा फूटा तो इन टीन शेडों की हालत बदली नहीं थी. लोगों ने ये भी आरोप लगाया कि प्लाट दिए, लेकिन 5.80 लाख का पैकेज नहीं मिला ऐसे में कैसे चले जाएं. पिछले चार दिनों से नर्मदा का जल स्तर बैक वॉटर से बढ़ता ही जा रहा है. बुधवार से शुरू हुई बारिश के चलते नर्मदा की सहायक नदियों में उफान आया हुआ है. जिसके चलते गुरुवार को नर्मदा का जल स्तर पल-पल कर बढ़ता चला गया. रात में आने जाने वाले एकमात्र रास्ता भी बंद हो गया. जिसके चलते राजघाट आने-जाने के लिए सड़क पर पानी में नाव चलानी पड़ी.
     
वैसे यह पहली बार नहीं हुआ, नर्मदा घाटी में बन रहे बांधों की श्रृंखला ने थोक के भाव में गांव और आबादी बेदखल की. हरसूद को हमने याद किया और भूल गए... लेकिन ऐसे एक नहीं करीब ढाई सौ गांव सरदार सरोवर में समा गये. सरकार ने बताने की कोशिश की बांध लोगों की जरूरत हैं, लेकिन कई मौकों पर ये उससे ज्यादा सरकारी ज़िद भी लगी. जब लोगों ने विस्थापन के लिये हथियार डाला तो 36 सौ करोड़ रुपए ऐसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े कि अस्थाई लगने वाले शेड ... स्थाई बनते गए. खामियाजा सरदार सरोवर के 193 गांवों के करीब 40 हजार परिवार आज भी भुगत रहे हैं!

ये मामला इतना पेंचीदा रहा कि कई दशक निकल गए नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध परियोजना का उद्घाटन 1961 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था. लेकिन गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच पानी के बंटवारे पर सहमति नहीं बनी 1969 में, सरकार ने नर्मदा जल विवाद न्यायधिकरण का गठन किया ताकि जल संबंधी विवाद का हल हो 1979 में न्यायधिकरण एकमत हुआ तब जाकर नर्मदा घाटी परियोजना ने जन्म लिया 1985 में इस परियोजना के लिए विश्व बैंक ने 450 करोड़ डॉलर का लोन देने की घोषणा की  सरकार ने कहा परियोजना से बिजली पैदा होगी तीन राज्यों में 2.27 करोड़ हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी लेकिन बड़ी बात ये थी इसकी कीमत तीन राज्यों की 37000 हेक्टेयर भूमि तो चुकाना था
248 गांव में लाखों की आबादी विस्थापित हुई, विस्थापन में करोड़ों का भ्रष्टाचार भी हुआ. एसएस झा की अध्यक्षता वाली कमेटी ने जब जांच की तो पता लगा कि 3636 रजिस्ट्रियों में 1800 फर्ज़ी हैं. ज़मीन पर किसी रसूखदार का कब्जा है, था जबकि रजिस्ट्री किसी विस्थापित के नाम पर. यही नहीं लगभग 88 पुनर्वास स्थलों पर हुए करोड़ों रूपए के निर्माण कार्य में भी करोड़ों का घपला हुआ.

इन विस्थापितों के लिए मेधा पाटेकर अपने साथियों के साथ खड़ी हुई ... 1989 में हरसूद में आम सभा, 1990 में संघर्ष यात्रा इहम पड़ाव बने, 1993 में भूख हड़ताल हुई तो 1994 में विश्व बैंक ने इस परियोजना से अपने हाथ खींच लिए. 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि सरकार बांध के बाकी कार्यों को तब तक रोक दे जब तक विस्थापित हो चुके लोगों के पुर्नवास का प्रबंध नहीं हो जाता. 18 अक्तूबर, 2000 को सर्वोच्च न्यायालय ने बांध के काम को फिर शुरू करने तथा इसकी ऊंचाई 90 मीटर तक बढ़ाने की मंजूरी दे दी. लेकिन ये भी जोड़ा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि पर्यावरण को खतरा नहीं होगा, पुनर्वास अच्छे से किया जाएगा. विस्थापित लोगों के पुर्नवास के लिए नए दिशा-निर्देश दिए जिनके मुताबिक पुर्नवासित लोगों के लिए 500 लोगों पर एक प्राइमरी स्कूल, एक पंचायत घर, एक चिकित्सालय, पानी तथा बिजली की व्यवस्था तथा एक धार्मिक स्थल बनना था ... लेकिन हुआ कुछ नहीं.
       
मेधा पाटकर कहती हैं 32000 परिवार आज भी सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में होते हुए एक एक गांव में हजार परिवार होते हुए पुनर्वास संपूर्ण ना होते हुए ये ना कानूनी है कि उनके घर डुबाया जाएं. गुजरात 30 करोड़ नही दे रहा है ना बिजली दे रहा है ऐसी स्थिति में क्यों डुबाएं 192 गांव उसे आज आगे बढ़ाना जरूरी है.
     
वैसे 56 साल बाद अपने जन्मदिन के दिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बांध का उद्घाटन किया तब तक इसकी अधिकतम ऊंचाई 138.68 मीटर तय हो चुकी थी.

वैसे जब बांध का उद्घाटन हुआ था तब मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार थी, राज्य में  सरकार बदलने के बाद सरकार के रूख में बदलाव आया है. मध्य प्रदेश सरकार का कहना है कि गुजरात बिजली तक नहीं दे रहा है एवं हजारों लोगों का पुनर्वास बाकी है, जिसका खर्च गुजरात को ही देना है. ऐसे में मध्य प्रदेश गुजरात को अधिक पानी नहीं दे सकता है. बहरहाल बिजली, पानी, प्रगति के दावों के बीच बेहाल लोग हैं ... 39 साल बाद भी जिनके लिए धारा के खिलाफ कोई मेधा पाटकर ही खड़ी हैं.

अनुराग द्वारी NDTV इंडिया में डिप्टी एडिटर (न्यूज़) हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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