प्राइम टाइम इंट्रो : ऐसे बनेगा इक्कीसवीं सदी का भारत?

क्या आपने सुना है 13 साल का प्रोबेशन. अनुराग द्वारी ने जब यह स्टोरी भेजी तो लगा कि मेरे साथ मज़ाक कर रहे हैं जबकि सिस्टम ने मज़ाक उस शख्स के साथ किया था जो 13 साल से प्रोबेशन है. दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला प्रोबेशन.

प्राइम टाइम इंट्रो : ऐसे बनेगा इक्कीसवीं सदी का भारत?

आज रजत जयंती दिवस हैं. यूनिवर्सटी सीरीज़ का 25वां अंक हम धूम धाम की जगह बूम बाम से मनाने जा रहे हैं. ऐसी कहानियां जिसे आप देखकर खुद को दिलासा देंगे कि आप बच गए. सिस्टम जब विस्फोट करता है तो उसके छर्रे जाने कितनी पीढ़ियों की पीठ में धंस जाते हैं, जिसका हिसाब कोई नहीं कर सकता. यूनिवर्सिटी सीरीज़ टीवी चैनल के इतिहास की सबसे असफल सीरीज़ है. असफलता को भी सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है इसका परिचायक है. यह सब पंक्तियां इसलिए ज़ुबान पर आ रही हैं कि आह और कराह का असर समाप्त हो चुका है. क्या आपने सुना है 13 साल का प्रोबेशन. अनुराग द्वारी ने जब यह स्टोरी भेजी तो लगा कि मेरे साथ मज़ाक कर रहे हैं जबकि सिस्टम ने मज़ाक उस शख्स के साथ किया था जो 13 साल से प्रोबेशन है. दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला प्रोबेशन. ढैन ढैन. आप भी साउंड दीजिए ढैन ढैन. हमारी फिल्म का नाम है नेशन ऑन प्रोबेशन, नेशन ऑन प्रोबेशन के किरदार हैं डॉ डीएस बामने जो खरगौन कॉलेज में गणित पढ़ाते हैं. 13 साल पहले आंखों पर चश्मा नहीं था, आज चश्मा लगाने लगे हैं. 13 साल पहले प्रोबेशन पर थे आज भी प्रोबेशन पर हैं. डॉ. किरण सिटोले धार ज़िले के शासकीय कॉलेज में अंग्रेज़ी पढ़ाती हैं. इनकी भी तस्वीर बदल गई. डूंगर सिंह मुजाल्दा तो ब्लैक एंड व्हाइट से कलर तस्वीर में आ गए लेकिन एक बात पहले जैसी रही. ये जिन कॉलेजों में पढ़ाते हैं, 13 साल से वहीं प्रोबेशन पर हैं.

माफी चाहता हूं, अगर आपको ये लगा कि मैंने इनकी तकलीफ का मज़ाक उड़ाया है, बल्कि मैं अपने लहज़े से बताना चाहता था कि सिस्टम चाहे तो आपका कैसा कैसा मज़ाक उड़ा सकता है. इस मुद्दे को मध्यप्रदेश में महाविद्यालयी अनुसूचित जाति-जनजाति शिक्षक संघ कई साल से उठा रहा है. प्रदेश के कॉलेजों में खाली पड़े 700 स्थायी शिक्षकों के पदों पर अस्थायी तौर पर काम कर रहे असिस्टेंट प्रोफेसरों के मुद्दे पर ये शिक्षक संघ सालों से सरकार के चक्कर काट रहा है ताकि प्रोबेशन पर काम कर रहे ये शिक्षक स्थायी हो जाएं.

नियम कहते हैं कि दो साल के बाद प्रोबेशन ख़त्म हो जाना चाहिए. लेकिन जिन सहायक प्राध्यापकों ने निर्धारित मापदंड पूरे कर लिए, 13 साल बाद भी उनका प्रोबेशन का पीरियड ख़त्म नहीं हुआ. इनके लिए जाति का झंडा बुलंद किए कई नेता मिल जाएंगे. लेकिन हक़ीक़त में कई साल से ये अपनी लड़ाई ख़ुद ही लड़ रहे हैं. मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग में भर्ती के तीन नियम हैं. पहला - भर्ती नियम 1967, दूसरा - भर्ती नियम 1990 और तीसरा - भर्ती नियम 2016.

मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग में लगभग ढाई हज़ार सहायक प्राध्यापक तदर्थ यानी एडहॉक नियुक्ति वाले हैं. ये 1984 से 1990 की अवधि के हैं और बैकडोर एंट्री वाले हैं. इनकी नियुक्ति के समय भर्ती नियम 1967 लागू था जिसमें एडहॉक नियुक्ति जैसा कोई शब्द ही नहीं था. यानी इस तरह की नियुक्तियां नियम विरुद्ध थीं. इन नियुक्तियों को सही ठहराने के लिए शासन ने पहले भर्ती नियम 1990 बनाया और फिर उम्र और शैक्षणिक योग्यता में ढील देकर सबको नियमित कर दिया. बैकलॉग नियुक्तियों के लिए 2003 में मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग ने सहायक प्राध्यापक पदों के लिए विज्ञापन जारी किया जिसमें NET /SLET/Ph.D. की शर्त थी. अनुसूचित जाति-जनजाति संवर्ग के उम्मीदवारों ने बिना उपरोक्त क्वालिफिकेशन के ही आवेदन कर दिया और लोकसेवा आयोग ने साक्षात्कार परीक्षा के द्वारा उम्मीदवारों का चयन कर नियुक्ति आदेश जारी कर दिए. 2004-05 और उसके बाद बैकलॉग नियुक्तियों में कोई ढील नहीं दी गई जबकि ये नियुक्तियां नियमानुसार लोकसेवा आयोग द्वारा की गईं. दूसरी तरफ़ नियम विरुद्ध एडहॉक नियुक्तियों के लिए ढील दी गई.

13 साल से प्रोबेशन पर नौकरी कर रहे इन लोगों के साथ क्या होगा, सरकार की तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं है मगर मध्यप्रदेश सरकार कह रही है कि वो सभी कॉलेज जिनका भवन नहीं है और जो कहीं और से संचालित हो रहे हैं उनकी इमारतें बनेंगी. इसके लिए 489 करोड़ दे दिए हैं.

दिक्कत यही है सरकारें ऐलान कर देती हैं, ताली बज जाती है. फिर पीछे पलट कर नहीं देखतीं. अब देखिए, मंत्रीजी नए मेडिकल कॉलेज खोलने की बात बता गए, कुछ नए सपने दिखा गए. लेकिन अनुराग आपको पिछले फैसलों की हकीकत दिखाना चाहते हैं. मध्य प्रदेश के तमाम मेडिकल, डेंटल, नर्सिंग और आयुर्वेदिक कॉलेजों को रेगुलेट करने वाली मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर के दर्शन कराना चाहते हैं. पूरे प्रदेश के मेडिकल एजुकेशन सेक्टर को संभालने वाली मेडिकल यूनिवर्सिटी, जबलपुर में किराए के चार कमरों से संचालित होती है. महज़ चार कमरों से. चार कमरों की इस यूनिवर्सिटी की कमर टूटी हुई है. इस मेडिकल यूनिवर्सिटी में पिचासी फीसदी से ज़्यादा पद खाली पड़े हैं. और तो और विश्वविद्यालय में कोई परीक्षा नियंत्रक तक नहीं है जिससे कि प्रदेश के मेडिकल एजुकेशन सेक्टर का हाल समझा जा सकता है. मंत्री जी ने पुराना तो ठीक नहीं किया मगर नया एलान कर दिया.

मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा जगत में तमाम घपले-घोटाले सामने आने के बाद प्रदेश सरकार ने मेडिकल एजुकेशन सेक्टर को नियंत्रित करने के लिए मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. साल 2011 में जबलपुर में ये मेडिकल यूनिवर्सिटी स्थापित तो कर दी गई लेकिन सरकार ने इसकी तरफ़ पलट कर नहीं देखा.

इस चिकित्सा विश्वविद्यालय से 16 चिकित्सा, 12 डेंटल,  17 आयुर्वेद, 23 होमियोपैथी, 4 यूनानी, 3 योग, 171 नर्सिंग, 66 पैरा मेडिकल कॉलेज यानी कुल 312 कॉलेज इस यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आते हैं. हैरानी की बात है कि अपनी स्थापना के छह साल बाद भी मेडिकल यूनिवर्सिटी के पास अपनी इमारत तक नहीं है और यूनिवर्सिटी के 85 फीसदी पद खाली हैं. यूनिवर्सिटी के स्वीकृत पदों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो कुल स्वीकृत पद हैं 275. इनमें एक कुलपति, एक परीक्षा नियंत्रक, एक रजिस्ट्रार, सात डिप्टी रजिस्ट्रार, 18 असिस्टेंट रजिस्ट्रार, बाकी तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पद हैं.

18 असिस्टेंट रजिस्ट्रार के पदों में से सिर्फ़ एक पद भरा गया है, सात डिप्टी रजिस्ट्रार के पदों में से सिर्फ़ एक पद भरा है, जबकि बाकी स्टाफ़ में कुल 35 लोग ही अब तक काम कर रहे हैं. ख़ुद यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉक्टर आरएस शर्मा इन हालात को बेहद गंभीर बता रहे हैं. अब जब आपको यह बताया जाए कि बिना प्रोफेसर के ही कोई मेडिकल कॉलेज से पढ़कर पास हुआ है तो उसके पास इलाज कराने से पहले आप क्या सोचेंगे. ये भी मैं बताऊं या आप बता देंगे.

दूसरी तरफ़ प्रदेश के ज़िम्मेदार मंत्रियों से लेकर आला अधिकारी तक मेडिकल यूनिवर्सिटी के लिए ज़रूरी बुनियादी सुविधाओं और स्टाफ़ की व्यवस्था जल्द करने की बात तो कहते आए हैं लेकिन ऐसी बातों का बीते छह साल में अब तक कोई असर नहीं हुआ. जबलपुर निवासी प्रदेश के चिकित्सा राज्य मंत्री शरद जैन को मालूम ही नहीं है कि इस विश्वविद्यालय में स्टाफ़ की कमी है. जब हमने उन्हें बताया तो वो कुलपति को पत्र लिखने की तैयारी कर रहे हैं.

चालीस हज़ार विद्यार्थियों की परीक्षा संचालित करने वाले विश्वविद्यालय में MBBS पहले साल का रिज़ल्ट भी अभी नहीं आ पाया है क्योंकि कोई परीक्षा नियंत्रक ही नहीं है. वित्त अधिकारी डेपुटेशन पर हैं. आधा समय यूनिवर्सिटी में तो बाकी समय होमगार्ड विभाग में देते हैं. कुलपति डॉ. शर्मा कहते हैं कि यदि नई नीति के तहत रिटायर्ड लोगों को रखने की अनुमति मिल जाए तो कुछ काम बन सकता है. बताइये अधिकार भी मांग रहे हैं तो रिटायर्ड लोगों के लिए जैसे नौजवानों ने लिखकर दे दिया है कि उन्हें नौकरी चाहिए ही नहीं.

जिस राज्य में व्यापम, डीमैट और फिर नीट घोटाले हुए वहां मेडिकल यूनिवर्सिटी के ये हालात हैं. चार कमरे में जहां यूनिवर्सिटी चलेगी वहां घोटाले नहीं होंगे तो कहां होंगे. व्यापम मामले में सीबीआई ने 490 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की है. इतने तो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर नहीं हैं. शिक्षा की माली हालत आप देख ही रहे हैं.


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