आसपास पर हो रहे अत्याचार पर यह चुप्पी कैसी, कब तक?

आसपास पर हो रहे अत्याचार पर यह चुप्पी कैसी, कब तक?

प्रतीकात्मक फोटो

हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां रोज दूसरे के दुःख के बारे में सुनते रहते हैं। दुःख सुनकर खुद दुखी हो जाते हैं। जरूरत पड़ने पर डंडा और झंडा लेकर प्रदर्शन करने के लिए खड़े हो जाते हैं। अपने आपको दिखाने की कोशिश करते हैं कि हम सब एक सभ्य समाज के हिस्सा हैं, लेकिन असलियत में जब ऐसी घटना हमारे आसपास होती है तो शायद हम आगे आकर उसे रोकने की कोशिश नहीं करते हैं। उस वक्त पीड़ित का दुःख हमको दिखाई नहीं देता है। केरल के एर्नाकुलम जिले के पेरूम्बवूर में एक कानून की विद्यार्थी की हत्या हो गई है। जरा सोचिए एक छात्रा आगे जाकर वकील बनना चाहती है, अपना मां के सपनों को साकार करना चाहती है लेकिन उसका सपना पूरा नहीं हो पाता है।

28 अप्रैल को जब वह अपने  इम्तिहान की तैयारियां कर रही थी तो घर में घुसकर कोई उसका बुरी तरह हत्या कर देता है। यह लड़की जरूर चिल्लाई होगी, चीखी होगी लेकिन मदद करने के लिए कोई नहीं आया। जब उसकी मां कुछ देर बाद यह उम्मीद करके घर पहुंचती है कि उसकी बेटी सही सलामत होगी, तब उसे बेटी का वह शरीर नजर आता है जिसके बारे कोई भी मां सपने में भी नहीं सोच सकती। उसकी बेटी की नृशंस हत्या देखकर वह मदद के लिए चिल्लाती है लेकिन इस दलित मां की आवाज आसपास के लोगों को मदद करने के लिए मजबूर नहीं कर सकी। फिर वही, जो अधिकांश दलितों के साथ होता है। पुलिस कुछ समय के बाद वहां पहुंचती है लेकिन अपने मोबाइल की लाइट से घटनास्थल की रिकॉर्डिंग करके ले जाती है। जरा सोचिए अगर यह घटना किसी प्रभावशाली व्यक्ति के साथ होती तो क्या पुलिस इस तरह का व्यवहार करती?  शायद नहीं।

यह मामला सिर्फ यहीं खत्म नहीं होता है। डेक्कन क्रॉनिकल में छपा है कि इस लड़की का पोस्ट मार्टम में भी किसी डॉक्टर ने नहीं बल्कि किसी पोस्ट ग्रेजुएट छात्र ने किया। कई जगह यह छपा है। इस घटना से पहले भी पीड़ित के साथ कई बार छेड़छाड़ की कोशिश की गई थी। पुलिस में शिकायत के बावजूद भी पुलिस की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया। सिर्फ इतना ही नहीं, इस दलित परिवार के साथ निरंतर अन्याय हो रहा था। डेक्कन क्रॉनिकल में यह भी छपा है कि आसपास के लोगों ने उसको परिवार का बहिष्कार कर दिया था। इस बहिष्कार की वजह से इस परिवार को कठिनाई का सामना करना पड़ता था। पानी के लिए आसपास के कुएं  इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं थी। पीने का पानी लाने के लिए करीब एक किलोमीटर जाना पड़ता था।

सिर्फ आम लोग ही नहीं मीडिया ने भी इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया। स्थानीय न्यूज पेपरों में इस घटना कहीं कोने में छुपा दिया गया था। सिर्फ इतना ही नहीं हमेशा की तरह इस घटना को लेकर राजनीति भी की गई, आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति। संसद में भी यह घटना गूंज उठी। सामाजिक न्याय मंत्री थवर चंद गहलोत ने संसद में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें राज्य सरकार और पुलिस को जिम्मेदार माना गया है। केरल में रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस घटना का जिक्र करते हुए राज्य सरकार को दोषी ठहराया।   

करीब 15 दिन बीत चुके हैं लेकिन कुछ नहीं हुआ। हत्यारा अभी तक पकड़ में नहीं आया है। पुलिस का कहना है कि वह अपना काम कर रही है। गुरुवार को इस घटना को लेकर दिल्ली के केरल भवन के सामने कई एनजीओ और दलित संस्थाओं ने प्रदर्शन किया।  पुलिस और सरकार के रवैया को लेकर सवाल उठाए गए। नुक्कड़ नाटक के जरिए लोगों तक संदेश पहुंचाने की कोशिश की गई।

सिर्फ यह एक घटना नहीं दलितों के साथ कई ऐसी घटनाएं होती रहती हैं।  NCRB आंकड़े के अनुसार 2014 में करीब 47,000 औरतें हिंसा की शिकार हुई हैं। रोज़ दलितों के साथ ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। समाज के सामने ऐसी घटनाएं होती रहती हैं लेकिन सब चुप रहते हैं। यह चुप्पी कब तक?

(सुशील कुमार महापात्रा एनडीटीवी इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं)

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