महावीर रावत : ये जीत ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट सिस्टम की है

नई दिल्‍ली:

आप उनसे नफ़रत कर सकते हैं, उन्हें हराने में मज़ा ले सकते हैं या उन्हें अड़ि‍यल कह सकते हैं, लेकिन आप ऑस्ट्रेलिया को इस वक्त दुनिया की सबसे मज़बूत टीम मानने से इंकार नहीं कर सकते जिसने पांच अलग अलग महाद्वीपों में विश्व विजेता होने का परचम लहराया हो।

इस टीम ने पिछले पांच में से 4 विश्व-कप अपने नाम कर इतना तो बता दिया है कि उसके पास क्रिकेट का एक ऐसा ढांचा तैयार है जिससे हर किसी को जलन हो सकती है। लगातार हार और नाकामी उन्हें कचोटती है और इसे वो बर्दाश्त नहीं कर पाते। कोई सितारा आए या कोई अधिकारी जाए जीत की उनकी भूख कभी ख़त्म नहीं होती।

इस विश्व कप को अपने हाथों में थामे माइकल क्लार्क अब अपने देश के लिए कभी भी रंगीन जर्सी में नज़र नहीं आएंगे। बहुत मुमकिन भी है कि मिचेल जॉनसन, ब्रैड  हैडिन और शेन वॉटसन सरीके सितारे अगले विश्व कप में नज़र ना आएं लेकिन इतना तो मान कर चलिए कि अगले विश्व कप में भी इस टीम का दबदबा होगा।

एक महान टीम बनाने के लिए आपके पास लाजवाब गेंदबाज़ होने चाहिए और इस वक्त ऑस्ट्रेलिया की टीम युवा और तेज़ गेंदबाज़ों से लबालब है। मिचेल स्टार्क- 25 साल, जोश हेज़लवुड- 24 साल, जेम्स फ़ॉक्नर- 24 साल, पैट क्यूमिंस 21 साल और जेम्स पैटिंसन 24 साल, इतने फ़िट और तेज़ युवा गेंदबाजों का टीम में होना बाकी टीमों के लिए खतरे की घंटी है। हां, टीम के पास अभी भी एक अच्छा स्पिनर नहीं है लेकिन ये कमी टेस्ट मैचों में ज़्यादा खल सकती है, छोटे फॉर्मैट में नहीं।

इन सबके साथ अगर आप स्टीवन स्मिथ का फ़ॉर्म और कमिटमेंट भी जोड़ दें तो इस टीम को आगे आने वाले समय में ऐसा कप्तान मिलने वाला है जिसकी उमर भले ही 23 साल हो लेकिन उसने कुछ ही महीनों में ऑस्ट्रेलिया के हर आलोचक का दिल जीत लिया है।

लेकिन ये भी देखना दिलचस्प होगा कि ये टीम अपने घर से बाहर कैसा खेलती है क्योंकि पिछले कुछ सालों में द. अफ्रीका के अलावा कोई भी टीम ऐसी नहीं रही जिसने अपने घर से बाहर खेलते हुए ज़्यादा प्रभावित किया हो। मगर समय से पहले इस सवाल के बारे में चर्चा भी ठीक नहीं। जिस ची़ज़ को आप अपनी ताकत समझते हैं, ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी उस पर सबसे पहले हमला करते हैं। टीम ने विश्व कप में चैंपियन होने का गौरव हासिल किया है इसलिए वक्त अभी जश्न का है।

वहीं इस विश्व कप से इतना तो तय हो गया कि वनडे क्रिकेट की मौत इतनी जल्दी नहीं होने वाली जितना कि कुछ क्रिकेट-पंडित अकसर भविष्यवाणी करते रहते हैं मगर इस टूर्नामेंट की कामयाबी को कोई इस बात की गैंरटी न समझे कि वनडे क्रिकेट की वापसी होने वाली है। दो देशों के बीच होने वाली वनडे सीरीज़ में अभी भी दर्शकों की ज़्यादा रुची नहीं है। हां, एशिया कप, चैंपियंस ट्रॉफी और विश्व जैसे टूर्नामेंट अभी भी लोगों में देश प्रेम जगा देते हैं जिससे वनडे की रौनक लौट आती है। उम्मीद है इतनी समझ आईसीसी को भी अब आ गई होगी।

न्यूजीलैंड की तारीफ भी करनी ज़रूरी है। हर आईसीसी टूर्नामेंट में टीम का प्रदर्शन ऐसा रहता है कि फैंस कभी मायूस नहीं होते। इस देश में क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ियों का पूल या संख्या शायद उतने ही होंगे जितने के भारत के किसी छोटे ज़िले में लेकिन फ़िर भी टीम हमेशा निडर क्रिकेट और झूजारू रवैये से हर किसी को अपना कायल बनाती। ब्रैंडन मैक्कुलम की कप्तानी की हर कोई तारीफ कर रहा है लेकिन मुझे नहीं लगता कि वो धोनी या क्लार्क की लीग में अभी हैं। किवी टीम अपनी परिस्थितियों में हमेशा अच्छा खेलती आई है और इस विश्व कप ने उन्हें बताया कि आने वाले समय में ये बरकरार रहेगा।

द. अफ्रीका की क्या बात करें? इनके टैलेंट पर कभी किसी को कोई शक नहीं रहा है। इस देश के फैंस का दर्द और गुस्सा समझना मुश्किल नहीं है। टीम क्यों नहीं जीत पाती है इसका जवाब किसी के पास नहीं है। लोग इन्हें चोकर्स कहते हैं शायद ये इस बात की गवाही है कि वो इस टीम से कितनी उम्मीदें लगाए रहते हैं। कहते हैं लक एक ही गैंरंटी के साथ आता है कि वो कभी भी बदल सकता है मगर प्रोटियाज़ की किस्मत है कि अभी तक इन से रूठा हुआ है। इन्हें ज़रुरत बस एक लकी कप्तान की है।

वेस्ट इंडीज़ और इंग्लैंड से तो अब इनके फैंस भी मायूस नहीं बल्कि नाउम्मीद हो चले हैं। कई सालों से यहां क्रिकेट राम-भरोसे ही चल रहा है। वेस्ट इंडीज़ में तो ये खेल कब तक चलेगा ये कहना भी मुश्किल हो गया है। टैलेंट की कभी यहां कोई कमी नहीं रही, लेकिन जहां खिलाड़ियों के मन में देश के प्रति खेलने का कोई गौरव न हो, जहां हार के बाद मिल रही हार खिलाड़ि‍यों और अधिकारियों को परेशान न करती हो, जहां किसी भी तरह का कोई सिस्टम नज़र न आता हो, वहां क्रिकेट की दशा और दिशा और भला कैसी हो सकती है। वहीं इंग्लैंड पर दया आती है। जिस खेल को उसने दुनिया भर में फैलाया अब उसी के लिए वो पराया हो गया है। इतने मज़बूत क्रिकेट के ढांचे के होते हुए भी अगर कोई टीम हमेशा मायूस करे तो कमी अधिकारियों और चयनकर्ताओं की ज़्यादा हो जाती है। अपनी गलतियों से न सीखना और शुतूरमुर्ग जैसा रवैया अपनाने वाले इंग्लिश क्रिकेट बोर्ड की जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक इस देश के लिए नतीजे भी नही बदलेंगे।

भारत के बारे में क्या कहना। टीम ने लगातार जीत का रिकॉर्ड बनाया। विरोधी टीमों को ऑल-आउट करने का भी रिकॉर्ड बनाया। जिस तरह का विश्व कप के आयोजन का फॉर्मैट था उससे ये तो तय था कि टीम इंडिया क्वार्टर फाइनल में पहुंच जाएगी। ऊपर से बांग्लादेश के खिलाफ़ क्वार्टर-फ़ाइनल में भिड़ने से आखिरी चार में जाना भी तय हो गया। मगर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ मुकाबले ने दोनों टीमों के बीच के अंतर को भी सबके सामने ला दिया। टीम ने ऐसा प्रदर्शन किया कि फैंस मायूस न हों और घर आने पर आईपीएल की चकाचौंध के बीच सभी सवाल कहीं खो जाएं। आने वाले काफी समय में टीम इंडिया को अपने घर में अपनी पसंदीदा पिचों पर ही खेलना है यानी ऑल इज़ वेल की आवाजें आती रहेंगीं। खिलाड़ियों का प्रदर्शन कैसा था ये इसी से पता चलता है कि जब आईसीसी ने अपनी विश्व कप की टीम बनाई तो किसी भी भारतीय खिलाड़ी को उसमें जगह नहीं मिली।

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वैसे ये सोचने की बात है कि अंडर-19 क्रिकेट हो या फ़िर एमर्जिंग क्रिकेट टूर्नामेट हो, भारत का प्रदर्शन हमेशा शानदार रहता है औऱ हम हमेशा ऑस्ट्रेलिया से बेहतर प्रदर्शन करते हैं लेकिन जब बात इन युवा खिलाड़ियों को महान बनाने की होती है तो हमारा सिस्टम कंगारुओं से मात खा जाता है। इस बीच ट्विटर और फेसबुक को अनुष्का और विराट का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि दोनों ने पिछले कुछ दिनों में इतने बेहतरीन जोक्स दिए हैं कि हार का गम महसूस ही नहीं हुआ।