फ्रांस में तीन महीने लंबी रेल हड़ताल, निजीकरण को लेकर है लड़ाई

राष्ट्रपति मैक्रों रेलवे को सरकारी कंपनी से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में बदल देना चाहते हैं और दूसरी प्राइवेट कंपनियों के लिए भी दरवाज़े खोलना चाहते हैं. इसके लिए वे स्थाई नौकरी की व्यवस्था समाप्त कर रहे हैं.

फ्रांस में तीन महीने लंबी रेल हड़ताल, निजीकरण को लेकर है लड़ाई

रेलवे के निजीकरण को लेकर फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैनुअल मैक्रों का विरोध हो रहा है

फ्रांस में चार हफ्ते से रेल की हड़ताल चल रही है जो जून के अंत तक या अगस्त तक भी जारी रह सकती है. हर सप्ताह दो दिन फ्रांस रेलवे बंद हो जाती है. वहां की रेल भारत की तरह सरकार चलाती है जिसे SNCF कहते हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति रेलवे का निजीकरण कर रहे हैं ताकि नई कंपनियां आएं और प्रतियोगिता बढ़े. दुनिया की कोई भी सरकार हो, निजीकरण से पहले यही तर्क देती है.

राष्ट्रपति मैक्रों रेलवे को सरकारी कंपनी से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में बदल देना चाहते हैं और दूसरी प्राइवेट कंपनियों के लिए भी दरवाज़े खोलना चाहते हैं. इसके लिए वे स्थाई नौकरी की व्यवस्था समाप्त कर रहे हैं. फ्रांस रेलवे में 52 साल की उम्र में रिटायर होने की सुविधा है जिसे 1 जनवरी 2020 से ज्वाइन करने वाले कर्मचारियों के लिए ख़त्म कर दिया जाएगा. 1920 से पेंशन की व्यवस्था है. नए कर्मचारियों के लिए पेंशन की नई व्यवस्था कायम की जा रही है. पुरानी पेंशन स्कीम का असर यह हुआ है कि रिटायर होने के बाद कर्मचारी लंबा जीते हैं जिसका बोझ सरकार के खज़ाने पर पड़ता है.

रेलवे यूनियन इसका विरोध कर रही है. उसका कहना है कि निजीकरण का मतलब नरक होता है. मेंटेनेंस वर्कर का कहना है कि चार साल से सैलरी नहीं बढ़ी है, काम करने की स्थिति काफी ख़राब होती जा रही है. रेल यूनियन ने फ्रांस भर में 133 प्रदर्शनों की तैयारी की है. राष्ट्रपति से इस्तीफा मांगा जा रहा है मगर मैक्रों अपने सुधार कार्यक्रमों पर अडिग हैं.

जानकारों का कहना है कि सरकारी रेलवे के चलाने की लागत काफी ज़्यादा है. उसमें बहुत खामियां हैं. अतीत में राजनीतिक कारणों से निर्णय लिए गए जिसका नुकसान रेलवे को उठाना पड़ा है. मौजूदा ट्रैक के रखरखाव की जगह हाई स्पीड नेटवर्क बनाने पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर दिया गया है. फ्रेंच रेलवे अपने ऑपरेशन लागत का आधा ही कमा पाती है. बाकी पैसा सरकार देती है. अभी मौजूदा कर्मचारियों की सुविधाएं समाप्त नहीं की जा रही हैं मगर रेल यूनियन का कहना है कि हम भविष्य के लिए लड़ रहे हैं और निजीकरण का विरोध कर रहे हैं. भारत में बुलेट ट्रेन भी रेल नेटवर्क पर इसी तरह का बोझ डालेगा.

तर्क दिया जा रहा है कि इस तरह के सुधार जर्मनी, ब्रिटेन, स्वीडन में किए गए जहां रेल के ऑपरेशन का ख़र्चा कम हो गया और रेल गाड़ियों की आपूर्ति भी बढ़ गई. इटली और स्वीडन में प्रतिस्पर्धा के कारण टिकटों में 15 फीसदी की कमी आई है. आज फ्रांस में रेल की हालत खराब है. मार्शे से निस के बीच 40 साल पहले जितना समय लगता था, आज उससे 25 मिनट ज़्यादा लगता है. रेलगाड़ियां देरी से चलती हैं.

फ्रांस में रेल यात्रियों की तकलीफ की भरपाई के लिए जो तरीका निकाला गया है उसके बारे में भारतीय यात्री सोच भी नहीं सकते. यहां भारतीय रेल ट्रेन में 70-70 घंटे बिठा कर आपकी जेब हल्का करा देती है. सैलरी कटवा देती है मगर अफसोस तक नहीं जताती. फ्रांस में हड़ताल से नाराज़ यात्रियों को रेल की तरफ आकर्षित करने के लिए वहां की रेलवे ने तय किया है कि मई से अगस्त के बीच हाई स्पीड ट्रेन का किराया 40 यूरो से कम होगा. तीस लाख टिकट कम दाम पर बेचे जाएंगे. जिनके पास पहले से पास है, उन्हें भी छूट का लाभ मिलेगा और पैसा लौटाया जाएगा.

भारत में भी रेल यूनियन पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली के लिए आंदोलन कर रहा है. कर्मचारी सैलरी न बढ़ने और काम करने की स्थिति में गिरावट होने से काफी नाराज़ हैं. लोको पायलट, ट्रैकमैन से लेकर इंजीनियर तक प्रमोशन न होने से छटपटा रहे हैं. 70 फीसदी गाड़ियां देरी से चलती हैं. यह सब इसलिए हो रहा है ताकि पब्लिक में निजीकरण की भूमिका तैयार हो सके और जनता के पैसे से रेलवे का बना बनाया संसाधन कॉरपोरेट को सौंप दिया जाए. सरकार ने ऐसा कहा नहीं है मगर प्रक्रियाएं बता रही हैं कि भारतीय रेल कहां जा रही है. भारत में भी रेलवे के कर्मचारी इस वक्त अपनी इन मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं मगर चुनाव होगा तो वोट हिन्दू मुस्लिम पर ही देंगे. भारत और फ्रांस में यही एक अंतर है वरना हालात एक जैसे हैं.

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