बाबा की कलम से : टॉय ट्रेन, टीटी बाबू और छुट्टी

इस बार छुट्टियों में हिमाचल जाने का प्रोग्राम बना। मैं ट्रेन से सफर करने में विश्वास करता हूं इसलिए दिल्ली से कालका तक का सफर शताब्दी से किया फिर आगे भी ट्रेन से जाना था वो भी टॉय ट्रेन से। टॉय ट्रेन इसलिए कि एक हसरत थी कि इसमें भी सफर किया जाए और बेटी तो खासा उत्साहित थी।

टॉय ट्रेन नैरो गेज पर चलती है। 4 से 5 डिब्बे होते हैं, यह काफी धीमी गति से चलती है और हर 2-3 मिनट पर एक सुरंग से गुजरती है। लोग खास कर बच्चे उस वक्त काफी उत्साह में चिल्लाते हैं। कालका से शिमला पहुंचने में इस ट्रेन को 6 घंटे लगते हैं। हम जिस ट्रेन में गए थे वह साधारण ट्रेन थी मगर इसमें सोफे वाली ट्रेन भी है। आप चाहें तो पूरा डिब्बा भी बुक करा सकते हैं।

कुछ ट्रेन में पैन्ट्री कार भी है जिसमें आप के पसंद का खाना मिल सकता है। सबकी अलग-अलग टाइमिंग है, आप अपनी सुविधा के अनुसार ट्रेन चुन सकते हैं। इस ट्रेन को अंतरराष्ट्रीय धरोहर में शामिल किया गया है। ट्रेन में बैठा मैं सोच रहा था कि अंग्रेजों ने कैसे यह ट्रैक बिछाया होगा। हम इसकी देखभाल कर सके तो ही हम अपने आने वाले पीढ़ि‍यों को भी इस ट्रेन पर चढ़ने और रोमांचक सफर का मजा लेने दे सकते हैं। ट्रेन में टीटी बाबू ने बताया कि उनकी एक परेशानी मैं रेल भवन में अधिकारियों तक पहुंचा दूं।

टीटी बाबू का कहना था कि इस ट्रेन में 5 डब्बे हैं जो आपस में जुड़े नहीं हैं जिसकी वजह से टीटी को टिकट चेक करने में दिक्कत होती है। उन्हें हर स्टेशन पर उतर कर एक डब्बे में जाना पड़ता है और पूरी ट्रेन चेक करने में गाड़ी शिमला तक पहुंच जाती है और इसका फायदा उठा कर लोग स्टेशन पर उतर कर दूसरे डिब्बे में चढ़ जाते हैं। खैर 3 घंटे के रोमांचक सफर के बाद हम कंडाघाट पहुंच गए जहां से चैल नजदीक है।

मगर कंडा घाट से साधुपुल पहुंचने पर पता चला कि पुल टूट चुका है। दरअसल 100 साल इस पुराने पुल पर तीन ट्रक सेबों से भरे हुए रास्ता भटकते हुए साधुपुल पहुंच गए। तीनों ट्रक पुल पर चढ़ गए। पुराना पुल तीन ट्रकों का भार सहन न कर सका और भरभरा कर बैठ गया। अब एक डायवर्जन के जरिए नदी पार करनी थी। एक तीखी उतराई के बाद जो काफी खतरनाक था, हम अश्विन नदी के सामने थे। नदी में ज्यादा पानी नहीं था केवल टखनों के थोड़ा ऊपर तक होगा इसलिए नदी पार करना आसान था।

अब यही रास्ता है चैल तक जाने का, यही वजह है कि यह एक टूरिस्ट प्‍वाइंट बन गया है। यहां नदी में ही कुर्सी टेबल लगा रहता है, आप नदी के बीच बैठे पांव पानी में और चाय पकौड़ों, मैगी जैसी चीजों का आनंद उठा सकते हैं। मैं चैल से 7 किलोमीटर पहले ही एक रिसॉर्ट में रुका था। सड़क के किनारे ही यह जगह है मगर पुल टूटने के कारण ट्रैफिक न के बराबर है। एकदम शांत जगह है, कमरे में बड़े-बड़े शीशे लगे हैं, परदे उठाइए पलंग पर लेटे हुए पहाड़, जंगल और बादल को निहार सकते हैं।

हम जिस वक्त वहां थे, रोज बारिश होती रही, मौसम में ठंढक, रात में कमरे में आग जलाई जाती थी। दिल्ली की भागदौड़ और ट्रैफिक सहन करने के बाद यह जगह जन्नत से कम नहीं मालूम हो रही थी। चैल छोटी सी जगह है, ड्राइवर ने बताया कि यहां एटीएम भी 6 महीने पहले ही खुला है।

ड्राइवर के कहने पर हम खाना खाने सोनू के ढाबे पर गए, दिल में ये भी था कि ड्राइवरों की ढाबों से सेटिंग होती है मगर जब वहां पहुंचे तो देखा कि यह ढाबा केवल महिलाएं ही संभालती हैं और यहां तवे वाली रोटी ही मिलती है। खाने का क्या कहना दाल मखनी, कढ़ी और पनीर का स्वाद माशा अल्लाह। जब मैं पैसा देने गया और महिला को बोला कि ड्राइवर का भी खाने का बिल ले लें तो उसने कहा कि ड्राइवर ने खुद चुका दिया है। फिर मुझे झटका लगा और याद आया कि हम हिमाचल में हैं और यहां ईमानदारी बची है।

एक दिन के लिए शिमला भी गए, चैल से 2 से ढाई घंटे लगते हैं। शिमला तक सड़क चकाचक है और ट्रैफिक भी खूब है और शिमला से 10 किलोमीटर पहले से ही जाम लगने लगता है। किसी तरह लिफ्ट से मॉल तक पहुंचे तो लगा लाजपत नगर या करोलबाग में आ गए हैं। मॉल पर दुनिया के हर बड़े ब्रांड के स्टोर आपको मिल जाएंगे। खाना खाने के लिए हम कॉफी हाउस पहुंचे जो खचाखच भरा था। डोसा खाया, कॉफी पी और वापस चैल के लिए निकल पड़े।

रिसॉर्ट में उसके मालिक से मुलाकात हुई। मैं यह जानना चाहता था कि यहां धंधा करने का उनका अनुभव कैसा है। उन्होंने बताया कि यह काफी शांत जगह है, आज तक उन्होंने न पुलिस या किसी अन्य अधिकारी को एक पैसे की रिश्वत दी है। लोग ईमानदार हैं। होटल में गेस्ट मोबाइल अक्सर भूल जाते हैं तो स्टाफ उसे रिसेप्‍शन पर जमा करा देता है। उनका कहना था कि ढेरों मोबाइल हमने लोगों को वापिस किया है।

अंत में एक और घटना का जिक्र करना चाहूंगा। हम जब वापस कालका आए तो उसी ड्राइवर को बुलाया जो हमें चैल और शिमला घुमा रहा था। चैल से कालका 62 किलोमीटर है, ढाई तीन घंटे लगते ही हैं क्योंकि सोलन में ज्ञानी जी के ढाबे को कोई मिस नहीं करना चाहता। जब हम कालका पहुंचे तो ड्राइवर को पूछा कितने पैसे उसने बोला 2000 रुपये। मुझे लगा कि शायद कम पैसा ले रहा है क्योंकि उसे 60 किलोमीटर वापिस भी जाना है।

मैं उसे कुछ और पैसे पकड़ाने लगा तो उसने हाथ जोड़ लिया। मैं सोच रहा था कि कैसा आदमी है मगर थोड़ी जिद के बाद उसने पैसे ले लिए मगर हमें स्टेशन तक सामान के साथ छोड़ गया। साथ ही छोड1 गया हमारे पूरे परिवार के लिए एक ऐसा अहसास जिसकी उम्मीद आप चैल जैसे छोटी जगह के लोगों से ही कर सकते हैं वहीं। मिलते हैं ऐसे लोग जो अपनी सादगी और ईमानदारी से आपको छोटा होने का अहसास करा देते हैं।


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com