बच्चों को बाल दिवस मनाने सिर्फ 100 रु. दिये जब्बार भाई, लेकिन ख़बर के बाद आपका फोन नहीं आया!

जब्बार भाई लेकिन ये तरीक़ा ठीक नहीं, अब इस शहर में कौन ख़बर देखकर अगले पल फोन करेगा, कौन बार-बार कहेगा कि मैं अच्छा काम करता हूं.

बच्चों को बाल दिवस मनाने सिर्फ 100 रु. दिये जब्बार भाई, लेकिन ख़बर के बाद आपका फोन नहीं आया!

11 तारीख को तो आपने ये मैसेज भेजा था -  "Back To Pavelian मेरे प्रिये Dost JP के कहने पर मैं अपने पैर के इलाज के लिये BMHRC चला आया. Director Dr Prabha Desigan ने उनको उत्साह और विश्वास देख भर्ती कर लिया. कई तरह के Investigation कराए गये किन्तु आज 11 दिन पाश्चात उन्होंने JP को दिल्ली आने से कहा की ये इलाज हमिदीया में ही मुमकिन हो पाएगा. क्योंकी उनके पास उस तरह के विशेषज्ञ नही हैं. यही बात हमारी Monitoring Committee को भी बताई जाएगी. इससे बडी शर्मनाक और कोई बात नही होगी. Super Specialty कहे जाने वाले इस अस्पताल मे लगभग 13 वर्षो बाद भी आधुनिक सुविधाएं प्राप्त नहीं हैं, कहीं चिकित्सकों के वे इसी तरीके से हाथ उठा देते है. अब मैं हमिदीया के विशेषज्ञ डॉक्टर का इंतजार कर रहा हूं, सादर अब्दुल जब्बार"

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सोचा था मिलने पर कहूंगा, सर मैसेज मैं टाइप करता हूं, आप बहुत गड़बड़ करते हो स्पेलिंग में...  2 महीने से आप फोन नहीं करते थे, ख़बर देखकर और मैं अस्पताल के बाहर मिलने का वायदा करता था. चाचा को खोने के बाद अस्पताल मुझे अवसाद से भर देते हैं. ये डर आपको बताया नहीं, काश बता देता... तो फिर आप लंबा पॉज लेते धीरे से कहते, हां अनुराग लेकिन आपको इससे खुद लड़ना होगा. 

जब्बार भाई लेकिन ये तरीक़ा ठीक नहीं, अब इस शहर में कौन ख़बर देखकर अगले पल फोन करेगा, कौन बार-बार कहेगा कि मैं अच्छा काम करता हूं. य़कीन मानिये ये तमगा जो आप टांकते थे बहुत बहुत याद आएगी. कुछ छूट सा गया आपके साथ. वो हिम्मत जो अस्पताल के बिस्तर से भोपाल गैस पीड़ितों के बेहतर इलाज की बात करता हो. जिसे मेरे माशूक शहर के बड़े तालाब की ऐसी फिक्र हो. जो यादगारे-ए-शाहजहानी पार्क की दास्तान सुनाए. अख़बारों ने लिखा है कि आपके साथ गैस पीड़ितों की आवाज़ चली गई. वाकई, लेकिन क्या सिर्फ गैस पीड़ित...

मैंने तो सुना कि कैसे 1992 के दौर में आप भोपाल की सड़कों पर रात भर पहरा देते थे, हाल ही मैं जब दिग्विजय सिंह से प्रज्ञा तक को घोषणापत्र में गैस पीड़ितों को अनाथ छोड़ दिया गया था तो आपने निराशा जताई थी. अपने पुराने साथी और उनके बेटे जयवर्धन को पार्क की फिक्र बताते हुए मुझसे कहा था कि इसपर काम करना है. सुना था कि कैसे त्रासदी वाले दिन आप 40 किलोमीटर स्कूटर से भागे, मां को छोड़ा पिता के पास आए फिर दूसरों की मदद करने लगे, लेकिन ज़हरीली हवा ने मां-बाप-भाई सबको छीन लिया... आपके फेफड़े, आंखें भी तो...
 
फिर डायबीटिज चली आए, लेकिन आप सेहत के बारे में बस मैसेज कर देते थे. मुद्दों के लिये फोन. मैं हर बार आपको कहता था दादा थोड़ा सेहत पर ध्यान रखें. लेकिन आप कहां मानते थे. सड़क पर जो लड़ाई शुरू की, आपके संघर्ष ने ही तो यूनियन कार्बाइड के करोड़पतियों को वापस आपराधिक प्रकरण के कठघरे में खड़ा किया. आपके गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के पोस्टकार्ड वाली हाल की कहानी ऐसा लगता था जैसे हर पोस्टकार्ड अपने आप में दस्तावेज़ हो. हसीना बी, हमीदा बी, रईसा सबकी तेज़ आवाज़ में आपकी सौम्यता और संघर्ष भी सुन लेता था.
      
पर आपने नहीं सुना. विदा कहने नहीं जा जाऊंगा. करें जो सुपुर्दे खाक करने जा रहे हैं. मैं नहीं... यहीं बैठा रहूंगा... टकटकी लगाए...  20000 से ज्यादा गैस पीड़ित जो नहीं रहे आप शायद उनको सुनने चले गए. लौटना तो फिर बताना कि कैसे लापरवाही और लालच ने उनको हमसे छीन लिया. बताना कि कैसे बग़ैर किसी लालच आप लड़ते रहे. और हां अगर ये प्रदेश, सरकार कुछ करना चाहती है तो यादगार-ए-शाहजहानी पार्क को कूड़ाघर बनने से बचा ले. दादा को पार्क की बहुत फिक्र थी.

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