यह ख़बर 04 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

इंश्योरेंस बिल पर खींचतान, क्या कहते हैं आंकड़े

नई दिल्ली:

संसद में पहली बार एनडीए की सरकार को संख्या की अहमियत का पता चल रहा है। भले ही लोकसभा में बीजेपी के पास 280 सांसद हों, मगर राज्य सभा में महज 42 सांसद हैं।
 
एक नज़र डालते हैं कि इस अहम बिल को लेकर राज्यसभा में आकंड़े क्या कहते हैं? राज्यसभा के कुल 242 सदस्यों में अभी एनडीए के 81 सदस्य हैं, वहीं यूपीए के पास 138 सदस्य हैं। इसके अलावा अन्य 23 हैं, जिनमें 10 मनोनीत 9 निर्दलीय और चार पार्टियों के एक-एक सांसद हैं। तब भी एनडीए बहुमत के लिए ज़रूरी 122 से काफ़ी कम है।

ऐसे में अगर टीएमसी, बीएसपी और सपा भी एनडीए के पक्ष में चले जाएं तो भी एनडीए की संख्या 117 होगी जो बहुमत के लिए ज़रूरी 122 से कम है। वहीं अगर टीएमसी, बीएसपी और सपा वोटिंग के दौरान सदन से ग़ैरहाज़िर रहें तो बहुमत के लिए ज़रूरी आंकड़ा घट कर 104 रह जाएगा, लेकिन तब भी एनडीए के 81 सदस्य होंगे।

अगर बीमा विधेयक पर मंजूरी मिल जाती है, तो  बीमा क्षेत्र में कई बड़े बदलाव होंगे। इसके मुताबिक देसी बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़कर 49 फीसदी हो जाएगी, जो अभी 26 फीसदी तक है। नए बिल के मुताबिक बीमा कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट किया जा सकेगा। इसके बाद विदेशी कंपनियां को रिइंश्योरेंस कंपनियों में भी निवेश की इजाज़त मिलेगी जो बीमा कंपनियों का बीमा करती हैं।
 
फिलहाल देश में चार सरकारी जनरल इंश्योरेंस कंपनियां है, जिन्हें देश के स्टॉक बाजार से पूंजी उगाहने की इजाज़त नहीं है। इससे भारत में रिइंश्योरेंस सेक्टर में विकास होगा, जहां अभी सिर्फ एक जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन यानी जीआईसी ही ये काम करता है। ये सब मनमोहन सिंह की नीति है, जिससे मोदी सरकार भी सहमत है।

ऐसे में सरकार के पास विकल्प क्या है? अब एक उपाय हो सकता है कि दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाए, मगर फिर कितने बार और कितने बिलों पर संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाएगा। एक और विकल्प हो सकता है कि विपक्ष के साथ सौदेबाजी की जाए या फिर बीमा बिल को राज्यसभा की सेलेक्ट समिति को भेजा जाए, या फिर कांग्रेस के साथ सौदेबाजी हो, क्योंकि 1999 में ये बिल वाजपेयी सरकार लेकर आई थी, तब कांग्रेस का विरोध था। फिर जब 2008 में मनमोहन सिंह सरकार यह बिल लेकर आई तब बीजेपी ने इसका विरोध किया था। फिर ये बिल संसद की एक समिति को भेजा गया, जिसके अध्यक्ष यशवंत सिन्हा थे। अब मोदी सरकार यह बिल लेकर आई है, तो कांग्रेस अपना तेवर दिखा रही है।

वक्त-वक्त की बात है और लोकतंत्र में संख्या का महत्व होता है। हालांकि कांग्रेस का एक सहयोगी एनसीपी बीमा बिल के समर्थन में है और बीजेडी भी.. मगर संख्या अब भी बहुमत से काफी कम है। ऐसे में कांग्रेस के साथ सरकार को अपने रिश्ते बनाने होंगे।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

कई मुद्दे हैं जिस पर कांग्रेस से बात हो सकती है, जैसे लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद। कई संसदीय समिति के अध्यक्ष का पद या फिर लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद। यदि इन सब चीजों पर बात बन जाती है तो ठीक है। कांग्रेस कहेगी कि यह तो उनका ही बिल है, जो एनडीए सरकार लागू कर रही है। वरना सरकार इस बिल को कम से कम तीन महीने के लिए भूल जाए या फिर संसद के इस सत्र के बाद संयुक्त सत्र बुलाए।