उमाशंकर सिंह की कलम से : दिल्ली चुनाव में कहां टिकेगी कांग्रेस

पटना:

दिल्ली का चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए भी काफ़ी अहम है। कांग्रेस ने दिल्ली में अपने ढह चुके पुराने गढ़ों में फिर से मज़बूती हासिल करने की पुरज़ोर कोशिश की है, लेकिन इस चुनाव के नतीजे बताएंगे कि दिल्ली में कांग्रेस कहां खड़ी है।

'हम भी हैं रेस में'... वोट डाल कर बाहर निकलने के बाद राहुल ने हाथ कुछ इसी अंदाज़ में लहराया। राहुल तो बिना कुछ बोले निकल लिए, लेकिन प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाला। उन्होंने स्वीकार किया कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस से कहीं ज्यादा ताक़तवर हो गई है, हालांकि साथ ही जोड़ा कि सारे दिन एक से नहीं रहते। प्रियंका गांधी ने कहा कि बुरे दिन आते हैं, लेकिन कांग्रेस की ताक़त को कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।

कालका जी के पोलिंग बूथ पर क़तारों में खड़े वोटर किसकी जीत की इबारत लिखने जा रहे हैं, पता नहीं। राहुल गांधी ने खासतौर पर झुग्गी कॉलोनियां वाले इस तरह के इलाक़ों में कई रोड शो और रैलियां की हैं, जिसमें खासी भीड़ भी जुटी, लेकिन कांग्रेस को पता है कि पांव के नीचे से खिसकी जमीन इतनी जल्द वापस नहीं आने वाली। तभी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सब कुछ जनता के हाथ होने की बात कर रही हैं।

चुनाव में कांग्रेस का चेहरा बने अजय माकन मैदान मारने की कोशिश करते तो नज़र आए, लेकिन उनकी बातों से ज़ाहिर होता है कि कांग्रेस अभी भी खेमेबंदी के खेल से बाहर नहीं आई है।

लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के कई चुनावों में लगातार हार का मुंह देख रही पार्टी को दिल्ली चुनाव क्या कोई नया ऑक्सीजन दे पाएगा या फिर एक और आत्मचिंतन के लिए मजबूर करेगा, यह दस तारीख़ को पता चलेगा।

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वोटर आईकार्ड सबके हाथ में है, लेकिन चेहरे पर किसी के नहीं लिखा कि ये वोट किसको कर रहे हैं। कांग्रेस ने उन इलाक़ों में ख़ुद को खड़ा करने की कोशिश की है, जो कभी उसका मज़बूत गढ़ हुआ करता था। लेकिन हकीकत तो यह है कि 15 साल सत्ता में रहने वाली कांग्रेस आज 15 सीट को तरस रही है।