यह ख़बर 31 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

उमाशंकर सिंह की समीक्षा : मेहबूबा ने मोदी को वाजपेयी बनने की दी चुनौती!

पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती

गवर्नर से मिलने के बाद पीडीपी नेता मेहबूबा मुफ़्ती ने मीडिया के ज़रिए बीजेपी पर दबाव बनाने की सीधी कोशिश की। उन्होंने तो बीजेपी के साथ सरकार बनाने की संभावना से इनकार किया और न ही बीजेपी के साथ जाने की कोई बात ही की। उल्टा 55 विधायकों के साथ की बात कर ऐसा तीर छोड़ा जो कई दिशाओं में एक साथ जाता प्रतीत होता है।

मेहबूबा ने 55 विधायकों के साथ का दावा भी सीधे-सीधे नहीं किया, बल्कि मीडिया में लगाए जा रहे गणित का हवाला देते हुए किया। और मीडिया ये हिसाब पीडीपी के 28 के अलावा कांग्रेस के 12 और एनसी के 15 विधायकों को जोड़ कर लगा रहा है। यानि पीडीपी-कांग्रेस-एनसी के महागठबंधन को सामने रख।

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मेहबूबा सीधे सीधे इस महागठबंधन पर विकल्प के तौर पर स्वीकारती नज़र आयी। बल्कि इसका वो बीजेपी को ये संदेश देने की कोशिश करती नज़र आती हैं कि हमसे गठबंधन कर सरकार बनानी है तो हमारी शर्तें माननी पड़ेगी।

ज्ञात हो कि पीडीपी की तरफ़ से बीजेपी के सामने मुख्य तौर पर जिन शर्तों की बात चर्चा में हैं, उनमें पीडीपी का पूरे पांच साल तक मुख्यमंत्री और अनुच्छेद 370 व अफ्सपा जैसे क़ानून पर कुछ आश्वासन चाहती है। जबकि बीजेपी बारी-बारी से 3-3 साल के लिए मुख्यमंत्री और पहले बीजेपी का मुख्यमंत्री चाहती है। दोनों पार्टियां अपनी शर्तों से पीछे हटने को तैयार नहीं तभी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का कहना है कि सभी पार्टियां अपनी पोज़ीशन पर डटी हैं इसलिए सरकार नहीं बन पा रही है।

मेहबूबा ने राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए अटल बिहारी बाजपेयी के वक़्त का ज़िक्र किया कि जैसे वाजपेयी जी ने जम्मू और कश्मीर को लेकर जो राजनीतिक प्रक्रिया शुरू की थी पीडीपी केन्द्र के साथ मिल कर उसे आगे बढ़ाना चाहती है। ज़ाहिर है वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने वाजपेयी जैसी बड़ी लकीर खींच कर एक चुनौती पेश करने की कोशिश कर रही हैं जिसे पार करने न करने की ज़िम्मेदारी वो मोदी पर ही डालना चाहती हैं। उन्होंने इस जनादेश को 'डिविसिव' बता ये जताने की कोशिश की कि घाटी में हम हैं और जम्मू में बीजेपी और 'डिसाइसिव' कह ये जताने की कोशिश की कि कुल जमा जम्मू और कश्मीर का जनादेश की लोकतान्त्रिक परिणति बीजेपी और बीजेपी के गठबंधन के तौर पर ही होनी चाहिए... जो उन्होंने साफ़ तौर पर नहीं बोला वो ये कि 'पीडीपी की शर्तों पर'।

पीडीपी के सामने दुविधा है कि बीजेपी के साथ सरकार बनाने पर मुख्यमंत्री पद नहीं मिलेगा और उसके साथ नहीं बनाने पर केन्द्र सरकार से मदद में रोड़े अटकाए जा सकते हैं। बीजेपी के साथ जाने पर घाटी में वो अपनी ज़मीन खो सकती है और नहीं जाने पर दिल्ली में अपनी पहुंच। इसलिए सबसे बड़ी पार्टी होते हुए भी उसने अब तक सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया है।

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कांग्रेस पीडीपी को समर्थन का सीधा ऐलान कर चुकी है, जबकि एनसी अभी तक चौसर बिछा कर खेल रही है। वो पीडीपी के साथ गठबंधन का भ्रम भी दे रही है और पीडीपी-बीजेपी के बीच शादी के पहले तलाक़ होने की स्थिति में बीजेपी के साथ भी फेरे ले सकती है। पीडीपी एनसी की इस राजनीति को समझती है इसलिए वो एनसी का साथ लेने से अब तक मना नहीं कर रही क्योंकि अगर कल को एनसी बीजेपी के साथ गई तो पीडीपी घाटी में एनसी के समर्थन के उस फूल को पत्थर बना के मार सके जिसे एनसी ने पीडीपी पर बरसाने का स्वाँग रचा था। कुल मिला कर पीडीपी सरकार बनाने लायक संख्याबल में अपनी हार को जीत में बदलने की कोशिश में है। बीजेपी और एनसी भी लंबा घेरा डाल कर खेल रही है।