42 दिन, 60 नियम, कतारों में मौत : आप कैसे सो पाते हैं, प्रधानमंत्री जी?

42 दिन, 60 नियम, कतारों में मौत : आप कैसे सो पाते हैं, प्रधानमंत्री जी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

42 दिन, 60 नियम और लगभग 100 मौतों के बाद एक सवाल ज़हन में उठ रहा है. जानता हूं, यह गुस्ताखी है, लेकिन फिर भी. सवाल यह है कि आप सो पा रहे हैं, प्रधानमंत्री जी? और अगर सो पा रहे हैं, तो कैसे?

8 नवंबर को नोटबंदी का आपका भाषण मैंने पूरा सुना था. ध्यान से. फिर आपके दावे भी सुने. बहुत-से प्रति-दावे भी सुने, लेकिन उनकी चर्चा फिर कभी. दावों में कहा गया था कि आपकी घोषणा से काला धन रखने वालों की नींद हराम हो जाएगी. दावा गलत भी नहीं था, क्योंकि सच यह है कि नींद तो इस देश की एक अरब 30 करोड़ आबादी की उड़ ही गई है, जबकि काला धन सिर्फ कुछ करोड़ के पास ही रहा होगा.

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काले धन वालों की नींद तो कुछ ही दिन में वापस आ गई, लेकिन एक अरब से अधिक लोगों की नींद जो उड़ी, तो वे अब तक उसके लिए तरस रहे हैं. कोई एटीएम की लाइन में खड़ा है, कोई बैंक की कतार में. कोई अस्पताल में परेशान है, कोई श्मशान में. कोई बेटी की शादी के लिए पैसों के इंतज़ाम को लेकर हलकान है, कोई फसल बेचकर पैसों के इंतज़ार में बैठा है. कोई कारोबार को लेकर, कोई छंटनी में नौकरी जाने को लेकर. जिनके पास नौकरी है, वे वेतन के लिए परेशान हैं, और दिहाड़ी मज़दूर काम न मिलने को लेकर. चैन से सो कोई नहीं पा रहा है. तरह-तरह की आशंकाएं सिरहाने पसरी हुई हैं. कोई सो भी कैसे सकता है?

वैसे तो आंकड़े चुगली करते हैं कि अधिकांश धन चुनिंदा लोगों के पास है. लेकिन फिर भी मान लेते हैं कि 30 करोड़ लोगों के पास अघोषित धन रहा होगा. इनमें से आधे के पास यह अघोषित धन इतना कम था कि वे एकाध हफ्ते में ही निश्चिंत हो गए. साधन भी इतने सहज निकल आए कि चिंता नहीं हुई. बाकी के लोगों को चिंता थी तो वे भी तेज़ी से बाहर निकलने लगे. बैंकों में जमा होने वाले आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. अब तो ख़ैर आपने आंकड़े ही बंद करवा दिए हैं.

अब सुना है कि आपका आयकर का अमला मुस्तैदी से खातों की जांच कर रहा है. मैं अर्थशास्त्री नहीं, लेकिन जितना समझ आता है, उससे लगता नहीं कि आयकर विभाग भी कुछ लाख मामलों से अधिक पकड़ पाएगा. हां, वह कुछ करोड़ लोगों को तंग ज़रूर करेगा, लेकिन हाथ तो फिर कुछ ही लाख आएंगे. कुछ घूस देकर छूट जाएंगे, जिससे आयकर वालों के पास नई व्यवस्था में भी काला धन आ जाएगा. बिल्कुल वैसे ही, जैसे कुछ बैंक वालों के पास आया. कुछ पकड़े जाने के बाद छोड़ दिए जाएंगे, क्योंकि वे 'फूल छाप' वाले होंगे, जैसा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में छपी ख़बर बताती है. वहां आईबी के एक अधिकारी को इसलिए हटा दिया गया, क्योंकि वह एक के बाद एक लोगों को नोटों के साथ पकड़वा रहा था और चर्चा है कि वे सब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के थे. वैसे ही, जैसे देश में ज़्यादातर मामले बीजेपी सदस्यों के ही हैं. तो, जो थोड़े-बहुत मामले पकड़ लिए जाएंगे, उनसे कुछ हज़ार करोड़ ज़ब्त हो जाएंगे, जो इस अर्थव्यवस्था में मूंगफली की तरह ही हैं.

अब उनकी बात करें, जिन्होंने कानूनन अपने पैसे बैंक में जमा कर दिए हैं, लेकिन निकाल नहीं पा रहे हैं, क्योंकि बैंकों में पैसे ही नहीं हैं. नए नोट छपे ही नहीं, तो बेचारे बैंक वाले भी क्या करेंगे. तो वे लोग भी, जिनका पैसा बैंकों में है, डरे हुए हैं. रिज़र्व बैंक की तरफ से आए 59 नियमों के बाद वे हर क्षण डरते रहते हैं कि पता नहीं, क्या नया फरमान आ जाए. लिहाज़ा, वे भी सो नहीं पा रहे हैं.

आप चाहे कुछ न कहें, लेकिन आपके बदलते बयान बहुत कुछ कहते हैं. वे बताते हैं कि काला धन निकालने का आपका अभियान फुस्स हो गया है, इसीलिए अब नकदबंदी, यानी कैशलेस की बात हो रही है. प्रधानमंत्री जी, क्या आप सोचते हैं कि करोड़ों-करोड़ लोगों की नींद बेवजह ही उड़ गई है? क्या आप सोचते हैं कि आने वाले दिनों में आप क्या करेंगे और आपकी सरकार क्या करेगी?

आप दिमाग लगा रहे हैं, यह हम जान चुके हैं. हमने सोचा, थोड़ा दिमाग हम भी लगा लें. यह तो तय है कि अगले कुछ महीने तक नकदी की स्थिति नहीं सुधरेगी. सुधरेगी भी, तो आप कैशलेस की बात कर ही रहे हैं. तो मान लेते हैं कि जमा हुए लाखों करोड़ रुपयों में से अधिकांश बैंकों में ही रहेंगे. यदि मान लें कि आधी रकम, यानी लगभग आठ लाख करोड़ रुपये, बचत खातों में हैं, जिस पर अभी ब्याज़ की दर चार प्रतिशत है, तो साधारण गणित से एक साल में आपको इस बचत पर 32,000 करोड़ रुपये ब्याज़ के रूप में देने होंगे. कहां से आएंगे इतने पैसे? बैंकों से लोग कुछ महीने कर्ज़ तो लेने से रहे, तो फिर बैंक कहां से ये पैसे लाएंगे? अर्थशास्त्रियों के गणित से 1.28 लाख करोड़ रुपये तो नोटबंदी पर ही ख़र्च होने है. यानी अच्छी-खासी चलती अर्थव्यवस्था में डेढ़ लाख करोड़ का गड्ढा बन जाएगा. आप इन सब में भी दिमाग लगा रहे हैं या नहीं?

अभी चंडीगढ़ के नगर निकाय चुनाव में आपकी पार्टी ने जीत पाई है, लेकिन आप उत्तर प्रदेश, पंजाब, और गोवा के चुनाव के बारे में सोचते हैं या नहीं? क्या आपकी नींद इस आशंका से नहीं उचटती कि कहीं उत्तर प्रदेश पर नोटबंदी का साया मंडरा गया तो? कहीं पंजाब और गोवा हाथ से निकल गए तो? क्या आप तब भी इतने ही निरंकुश रह पाएंगे, जितने अभी हैं?

सच बताइएगा, कभी डर का साया आसपास नहीं दिखता कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की चुप्पी टूट गई तो? बीजेपी के भीतर विद्रोह हो गया तो?

ऐसे बहुत से सवाल हैं. हो सकता है, आपकी 'फकीर वाली' बात इस सबका जवाब हो, लेकिन फिर भी हमारे मन में तो यह सवाल बना ही रहेगा, "आप कैसे सो पाते हैं, प्रधानमंत्री जी?"

विनोद वर्मा वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं...

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