तुम तो ऐसे न थे, नरेंद्र - प्रधानमंत्री को एक बुज़ुर्ग का खुला खत

तुम तो ऐसे न थे, नरेंद्र - प्रधानमंत्री को एक बुज़ुर्ग का खुला खत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मास्क लगाए उनके प्रशंसक (फाइल फोटो)

प्रिय नरेंद्र,

माफ करना नरेंद्र भाई, तुम्हें आदरणीय प्रधानमंत्री जैसा कुछ नहीं लिख रहा हूं. मैं उम्र में बड़ा हूं, इस नाते 'आप' की जगह 'तुम' ही ठीक लग रहा है. इसे असम्मान मत समझना. मैं जो कहने जा रहा हूं, वह हरगिज़ न कहता, अगर बात मन से छलकने न लगती. मुझे लगा कि यह सही समय है कि बात कर लूं. तुम्हें पता नहीं कैसा लगेगा, लेकिन मेरा मन हल्का हो जाएगा.

मुझे याद आता है नरेंद्र, कि तुम बचपन से बहुत वीरता दिखाते रहे हो. एक बार तुमने मगरमच्छ को पकड़ लिया था, लेकिन समय के साथ तुम्हारा पुरुषार्थ देखो कैसे बदल गया कि तुम मगरमच्छों को छोड़ रहे हो और छोटी-छोटी अनगिनत मछलियां तुम्हारे जाल में फंसी तड़प रही हैं. कई तो जान भी गंवा बैठीं. मुझे बहुत बुरा लगता है, जब लोग कहते हैं कि अब मगरमच्छ ही तुम्हारे दोस्त हैं. कहां गया वह वीर बालक नरेंद्र? तुम्हारे 56 इंच के सीने में कहीं छिप-दुबक गया दिखता है. निकालो उसे बाहर.

कितने अरमान से तुम्हारी मां ने तुम्हारा विवाह रचाया था. मुझे याद है, तुम्हारी मां अपनी बहू जशोदाबेन पर न्योछावर हुई जाती थीं, लेकिन तुम्हारा अभीष्ट कुछ और था. तुम परिवार से पहले देश के बारे में सोचते थे. सो तुमने देश के लिए घर-परिवार छोड़ दिया. तुम हिमालय पर गए, रामकृष्ण मिशन के साथ रहे. जो नरेंद्रनाथ, यानी विवेकानंद न कर सके, वह तुमने कर दिखाया. विवेकानंद तो ताउम्र अपनी मां का ख्याल करते रहे, तुमने तो वह भी गवारा नहीं किया. लेकिन यह तुम पर जो किसी महिला की जासूसी करवाने का आरोप लगता है न, वह दिल को नागवार गुज़रता है.

भारत की राजनीति बदलने की बहुत ज़रूरत है. तुम्हारा सपना था भी कि इस राजनीति को बदलो. तुम जाति और धर्म की बैसाखी पर होने वाली राजनीति से नफरत करते थे. लेकिन यह क्या कि तुम्हारे प्रधानमंत्री बनते ही तुम्हारी पार्टी ने सबसे ज़्यादा राजनीति इन्हीं मुद्दों पर करनी शुरू कर दी. कभी लव-जेहाद, कभी गोहत्या, कभी हिन्दी बनाम उर्दू और अंग्रेज़ी. और तुम्हें कैसे याद आने लगा कि तुम अति पिछड़े वर्ग से आते हो?

तुम गरीबों की राजनीति के हामी थे. लेकिन चर्चा हमेशा तुम्हारे महंगे सूट की होती रही.

'सूट-बूट की सरकार' के आरोप...
हर कोई नया-नवेला तुम्हारी सरकार को 'सूट-बूट की सरकार' कहता है. लोग आरोप लगाते हैं कि तुम दिन में तीन-चार बार कपड़े बदलते हो. टीवी पर हमें भी ऐसा दिखता है. कहां से आते हैं इतने सारे और इतने महंगे कपड़े तुम्हारे पास? कल किसी ने कहा कि तुम्हारी क़लम भी सवा लाख की है और तुम्हें ऐसी क़लमें रखने का शौक है. तुम्हारे चुनावी प्रचार का खर्च देखकर हर विरोधी दल तुमसे ईर्ष्या करता है. तो तुम राजनीति को किस तरह बदल रहे हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि राजनीति ने तुम्हें ही बदल दिया?

तुम सुदामा की तरह थे. हर सुदामा का एक कृष्ण सखा होता ही होगा. लेकिन सुदामा हर हाल में सुदामा रहता है. लेकिन मैं देखता हूं कि तुम तो देश के हर कृष्ण के मित्र हो. जिस एक प्रतिशत जनता के पास देश की 60 फीसदी धन-संपदा है, वह हर व्यक्ति तुम्हारा सखा है. सुना है, तुम्हारी पोटली भी उन सबके सामने खुली हुई है, जो चाहे जितनी मुठ्ठी भरकर चावल खा ले. सुदामा की पोटली से कृष्ण का सूखा चावल खाने वाली कहानी याद है न? एक मुठ्ठी चावल यानी एक राज्य. कहां गया वह सुदामा नरेंद्र?

तुम इस देश की आशा बनकर उभरे थे. लोग देख रहे थे कि अब देश बदलने वाला है. जैसा कि तुमने कहा था, सबको लग रहा था कि 'अच्छे दिन' आने वाले हैं. तुमने कितनी चतुराई से लोगों को समझा दिया था कि आज़ादी के बाद के 65 साल देश की बर्बादी में बीते.

तुम्हारे आते ही भ्रष्टाचारी जेल में दिखने वाले थे और अपराधियों का राजनीति में प्रवेश असंभव होने वाला था. लेकिन यह क्या कि दर्जनों विचाराधीन अपराधी तुम्हारे ही दल के सांसद हैं. तुम्हारे दल के मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के अनगिनत आरोप हैं, लेकिन वे तुम्हारे साथ मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवा रहे हैं. तुम्हें पता है या नहीं? अब तो तुम्हारा एक मंत्री भी घोटाले में फंस गया सुना है.

तुम्हारे प्रधानमंत्री बनते ही तेल की कीमतें कम होने वाली थीं और किसानों को फसलों की दोगुनी कीमतें मिलने वाली थीं. लेकिन तेल के भाव बढ़ते ही जा रहे हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं. कहां तो पाकिस्तान जैसा पड़ोसी देश रहम की भीख मांगने वाला था, लेकिन वह अभी भी अकड़ रहा है. देखो न, कश्मीर में उसने ऐसा हंगामा मचवाया कि तुम्हारी अपनी गठबंधन वाली सरकार भी पचासों दिन कर्फ़्यू नहीं हटा पाई.

तुमने काले धन पर हमला करते हुए नोटबंदी की. काले धन का कोई हिसाब तो तुम्हारे नाकारा अफसरों ने दिया नहीं, लेकिन देश का हर आम आदमी परेशान हो गया. कतारों में खड़े लोगों ने पता नहीं कितने करोड़ मानव श्रम दिवसों का नुकसान कर लिया. बुरा न मानना नरेंद्र, लेकिन तुम धीरे-धीरे निराशा में बदलते जा रहे हो.

किसी ने फेसबुक पर लिखा था, "एक नरेंद्र हिन्दू धर्म को बदलना चाहता था और असफल हो गया और अब एक नरेंद्र देश की राजनीति को बदलने निकला है और उसका भी यही हश्र होगा..." ऐसा मत होने देना नरेंद्र, हमें बड़ी शर्मिन्दगी होगी.

सच बताना नरेंद्र. जो पहले का नरेंद्र था, वही असली नरेंद्र था या अब जो नरेंद्र दिखता है, वह असली है. यह तुम ही हो या तुम्हारे अनुयायियों की तरह तुम्हारा मुखौटा लगाए कोई और है? क्योंकि तुम तो ऐसे न थे नरेंद्र.

विनोद वर्मा वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं...

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