दंगल यूपी का : क्या होगा अखिलेश यादव का अगला दांव - 10 अहम सवाल, उनके जवाब

दंगल यूपी का : क्या होगा अखिलेश यादव का अगला दांव - 10 अहम सवाल, उनके जवाब

उत्तर प्रदेश में जारी 'समाजवादी दंगल' में रोज नए दांव लग रहे हैं. अखिलेश यादव के पास विधायकों का बहुमत है और उन्होंने समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का अब दावा भी कर दिया है. सपा के राजनीतिक उत्तराधिकार का फैसला यूपी की जनता मार्च-अप्रैल के चुनावों में करेगी, लेकिन इस पारिवारिक दंगल में गेंद अब केंद्र सरकार तथा चुनाव आयोग के पाले में है, सो, आइए पढ़ते हैं, दिलचस्प सियासी दंगल से जुड़े 10 अहम कानूनी और संवैधानिक सवाल तथा उनके जवाब.

चुनाव और उसके बाद कौन-सा गुट करेगा साइकिल की सवारी : समाजवादी पार्टी चुनाव आयोग द्वारा मान्यताप्राप्त राज्यस्तरीय दल है, जिसका चुनाव चिह्न साइकिल है. मुलायम सिंह अब भी खुद को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष मानते हैं, लेकिन 1 जनवरी को राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव ने खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर सपा पर दावेदारी मजबूत कर ली है. अखिलेश और मुलायम के दोनों गुटों द्वारा घोषित विधानसभा के उम्मीदवारों में साइकिल का चुनाव चिह्न किसे मिलेगा, इसका निर्णय अब चुनाव आयोग में होने की संभावना है.

किस कानून के तहत चुनाव आयोग द्वारा होगी कार्रवाई : समाजवादी पार्टी में औपचारिक विभाजन होने पर चुनाव चिह्न (रिज़र्वेशन एवं अलॉटमेंट) आदेश, 1968 के तहत चुनाव आयोग दोनों पक्षों से सुनवाई करके निर्णय लेगा. 1969 में कांग्रेस में टूट के बाद सादिक अली मामले में 1972 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधायकों / सांसदों के समर्थन के आधार पर चुनाव आयोग द्वारा पार्टी ग्रुप को मान्यता देने का निर्णय लेना चाहिए.

उलझन बढ़ने पर चुनाव आयोग साइकिल पर लगा सकता है ताला : पूर्व में उत्तराखंड क्रांति दल एवं तमिलनाडु में एआईएडीएमके पार्टी में बिखराव होने पर चुनाव आयोग द्वारा दोनों गुटों को मान्यता देकर नया चुनाव चिह्न दिया गया था. चुनाव आयोग द्वारा गुटों को मान्यता देने के लिए 1996 के ऐतिहासिक निर्णय के दिशानिर्देश महत्वपूर्ण हैं, जिनमें पार्टी कार्यकर्ताओं के बहुमत का महत्व बताया गया है, परंतु सपा जैसे पारिवारिक दलों में संगठन का आकलन करना मुश्किल काम है. विवाद न सुलझने पर चुनाव आयोग समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न साइकिल को फ्रीज करते हुए अखिलेश तथा मुलायम के दोनों धड़ों को अंतरिम तौर पर नए चुनाव चिह्न अलॉट कर सकता है.

क्या सपा विधायकों की सदस्यता रद्द हो सकती है : अखिलेश गुट के 200 विधायकों को पार्टी से निकालकर मुलायम खुद को और कमज़ोर नहीं कर सकते, इसीलिए उन्होंने अखिलेश को पार्टी से निष्कासित नहीं किया. मुलायम सिंह द्वारा बागी विधायकों को यदि पार्टी से निकाल भी दिया जाए तो जल्द होने वाले चुनाव की वजह से उनकी विधायकी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

क्या अखिलेश विधानसभा भंग करने की सिफारिश करके कार्यवाहक सीएम बन सकते हैं : सपा विधायकों के बहुमत के दम पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सियासी दंगल में नया दांव खेल सकते हैं, जिससे आने वाले चुनाव के दौरान वह कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रह सकें. परंतु अखिलेश को अल्पमत सरकार का मुख्यमंत्री बताकर राज्यपाल उनकी सिफारिश को मानने से इंकार कर सकते हैं.

क्या मुलायम सिंह अब भी मुख्यमंत्री बनने का दावा कर सकते हैं : संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार विधायक दल के नेता को राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है. अखिलेश को सपा के अधिकांश विधायकों के साथ कांग्रेस तथा राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के विधायकों का समर्थन मिलने से उनके मुख्यमंत्री बने रहने पर कोई कानूनी संकट नहीं है. मुलायम सिंह के पास पार्टी और विधायक दोनों का समर्थन नहीं है, इसलिए 5 जनवरी को पार्टी का अधिवेशन रद्द कर दिया है, और अब मुख्यमंत्री पद पर मुलायम का दावा कानून की कसौटी पर शायद ही खरा उतरे.

विधायकों के बहुमत का निर्धारण विधानसभा में करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश : मुलायम सिंह यादव यदि मुख्यमंत्री पद का दावा करें तो अखिलेश यादव को बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल आदेश दे सकते हैं. बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार विधायकों के बहुमत का निर्धारण राजभवन की बजाय विधानसभा में होना चाहिए.

क्या चुनाव अधिसूचना के बाद विधानसभा का सत्र आहूत हो सकता है : चुनाव आयोग ने यूपी सहित पांच राज्यों के चीफ सेक्रेटरी को 28 दिसंबर को चुनाव-पूर्व तैयारी के लिए पत्र लिखा है और चुनावी कार्यक्रम की घोषणा 4 जनवरी को संभावित है. क्या चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद यूपी में विधानसभा का सत्र बुलाए जाने पर संवैधानिक विवाद हो सकता है.

क्या यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है : मुलायम द्वारा कुछ महीने पहले पवन पांडेय को सपा से निकाल दिया गया था, फिर भी वह अखिलेश सरकार में मंत्री बने रहे. अब तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद ही समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का दावा कर रहे हैं, जिससे यूपी में कोई संवैधानिक संकट नहीं है, जिसके आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सके. परंतु बहुमत में अनिश्चितता के नाम पर यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आगामी चुनाव में रणनीतिक बढ़त लेने की कोशिश कर सकती है.

क्या इस दंगल का आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट में होगा : विधानसभा में विधायकों के बहुमत के निर्धारण के बगैर केंद्र सरकार ने यदि यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाया तो अखिलेश यादव उस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं. चुनाव चिह्न के बारे में चुनाव आयोग के निर्णय को यदि किसी भी गुट के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो अंतरिम आदेश से ही उन्हें राहत मिलेगी, क्योंकि अदालत के अंतिम निर्णय आने तक चुनाव आ सकते हैं.

सियासी दंगल से यह साफ है कि मुलायम और अखिलेश के बीच समाजवादी पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई है, जिसमें रेफरी केंद्र सरकार और चुनाव आयोग हैं, परन्तु आखिरी फैसला तो यूपी की जनता ही करेगी.

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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