विराग गुप्‍ता: जजों की नियुक्ति पर अधिकार का 'आधार'

विराग गुप्‍ता: जजों की नियुक्ति पर अधिकार का 'आधार'

जजों की नियुक्ति में अधिकार पर विवाद संविधान की सर्वोपरिता का नहीं, वरन राजसत्ता के एकाधिकार का है। इस जज-नेता विवाद में सरकार पहले राउंड की बाज़ी हार गई जब सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच (जिसमे चीफ जस्टिस शामिल नहीं थे) ने 1030 पेज के फैसले से संविधान (99वां) संशोधन कानून और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)कानून को अवैध और असंवैधानिक करार दे दिया क्योंकि यह न्यायपालिका की आजादी के खिलाफ है।   

सवाल यह है कि क्या कॉलेजियम प्रणाली से नियुक्त जज अभी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त हैं!  पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के अनुसार सुप्रीम कोर्ट न्यायालय के चीफ जस्टिस ने राजनैतिक दवाब के कारण गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की याचिका खारिज कर मोदी सरकार को बड़ी राहत दे दी। दूसरी तरफ टेलीकॉम घोटाले में कोर्ट द्वारा सीबीआई की चार्जशीट रद्द करने पर हुई फजीहत के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल पर निशाना साधा जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शिवराज पाटिल की तथाकथित गलत रिपोर्ट के आधार पर प्रमोद महाजन को फंसाने की साजिश रची। हाल की कुछ घटनाओं से तस्वीर और साफ़ होती है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ ने तीस्ता सीतलवाड़ की अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ाने के अपने खुद के पूर्ववर्ती आदेश को गलत बताया क्योंकि मामले की सुनवाई तीन जजों की अन्य पीठ द्वारा की जा रही थी।

प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के बाद डिजिटल इंडिया की सफलता के लिए आधार के इस्तेमाल की अनुमति हेतु, सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ के सम्‍मुख केंद्र सरकार, आरबीआई, यूआईडीए, सेबी, आईआरडीए, ट्राई, पेंशन एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी, गुजरात व झारखंड व अन्य राज्यों ने याचिकाएं दायर कर सामूहिक दबाव बनाने की कोशिश की। परन्तु 7 अक्टूबर को जजों ने राहत का कोई आदेश पारित करते हुए कहा कि जब तक आधार के लिए निजी जानकारी जुटाने संबंधी निजता के अधिकार के मुख्य मुद्दे पर संवैधानिक पीठ द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता तब तक उनके द्वारा पारित 11 अगस्त एवं पूर्ववर्ती आदेश प्रभावी रहेंगे। इस आदेश के बाद आधार मामले की सुनवाई का अधिकार 9 या 11 सदस्यीय संविधान पीठ को ही था जिसका गठन अभी तक नहीं हुआ। वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान के पुरजोर विरोध के बावजूद आधार मामले की गैरकानूनी सुनवाई चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ द्वारा किस दबाव में की गई। कानूनी आपत्तियों के  बावजूद किन राजनीतिक दबावों में चीफ जस्टिस की पीठ ने अंतरिम आदेश पारित कर आधार कार्ड को स्वैच्छिक रूप से मनरेगा, पीएफ, पेंशन और जन-धन योजना से लिंक करने की इजाजत दी, इसका रहस्योद्घाटन जज-नेता समर के आगामी चरण में शायद हो सके।   

जजों की नियुक्ति पर एकाधिकार हासिल करने की जल्दबाजी में सरकार  'आधार'  जैसे संवेदनशील मुद्दे पर संसद में कोई क़ानून ही नहीं बना पाई। विश्‍व के सबसे बड़े डाटा-बेस वाले आधार कार्यक्रम के क्रियान्वयन को प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से होने और और जनता की सुरक्षा के लिए जब मांग पर विचार के बजाय सरकार द्वारा 60 साल पुराने निर्णय के कुतर्क पर प्राइवेसी के अधिकार पर ही प्रश्‍नचिन्‍ह लगा दिया।   

आरबीआई गवर्नर के नवीनतम वक्तव्यों से यह आभास होता है कि आधार की मान्यता अब पहचान पत्र के तौर पर भी की जा सकेगी। कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन के अनुसार लोगों को बगैर कानूनी जांच और कुछ हजार रुपये खर्च कर आधार कार्ड बनवाया जा रहा है। फर्जी आधार पर पांच करोड़ से अधिक विदेशी घुसपैठियों द्वारा भारतीय नागरिकता पाने का कानूनी रास्ता भी अब खोल दिया गया है। सरकार बनाने के पहले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा, कांग्रेस द्वारा प्रारम्भ आधार प्रोजेक्ट की अनियमितताओं की सीबीआई जांच और राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर के क्रियान्‍वयन की मांग की गई थी। सरकार बनते ही आधार देश की सभी समस्याओं के निराकरण का मूलाधार कैसे बन गया, इस यक्ष प्रश्‍न का जवाब न तो भाजपा नेताओं के पास है और न ही सरकार के पास।    

नंदन नीलकेणी के इस प्रोजेक्ट का लाभ पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को तो मिला नहीं पर आगामी चुनावों में सभी नागरिकों का डिजिटल डाटा भाजपा की सफलता का आधार बन सकेगा, ऐसी आहट स्पष्ट है। अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि देश में सिर्फ 7 करोड़ पैन कार्ड, 5 करोड़ पासपोर्ट और 12-15 करोड़ राशन कार्ड हैं वहीं 92 करोड़ से ज्यादा आधार कार्ड बन चुके हैं पर सबसे बड़ा सवाल राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग आदेश से असहमति जताने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज चेलमेश्वर ने उठाया है। उन्होंने अपने आदेश में लिखा है कि आम लोगों को ऐसा जज चाहिए जो मुकदमों का जल्द निपटारा करे और अदालतों में भरोसा पैदा कर सके. लोकतंत्र के  'आधार'  और निजी सूचनाओं पर कब्जे की जल्दबाजी वाली सरकार क्या निरीह जनता को न्याय दिलाने के लिए ठोस प्रयास कर पाएगी? इस लाख टके के सवाल का जवाब ही भारतीय गणतंत्र के  'आधार' को बचा पाएगा।  

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