केजरीवाल सरकार का एक साल - बवाल और गवर्नंस के सवाल

केजरीवाल सरकार का एक साल - बवाल और गवर्नंस के सवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ('आप') की सरकार का एक साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा सफलता के बड़े-बड़े दावे करते हुए बकाया वादों की विफलता के लिए केंद्र सरकार के असहयोग को जिम्मेदार ठहराया गया। उनके अनुसार एसीबी की कमांड अगर उन्हें मिल जाए तो शीला दीक्षित की तुरंत गिरफ्तारी हो जाएगी; पुलिस का अधिकार मिलने पर कानून एवं व्यवस्था सुधर जाएगी और ज़मीन का अधिकार मिलने पर स्कूल तथा अस्पताल भी बन जाएंगे। तीन विधायकों के साथ सिकुड़ चुकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 'आप' को 'बवाल' बताते हुए जहां 'काला दिवस' मनाया, वहीं विधानसभा के पटल से गायब कांग्रेस ने 'छलावा दिवस' मनाकर विरोध की रस्म पूरी कर ली।

केजरीवाल का छलावा
पूर्व 'आप' नेता योगेंद्र यादव के अनुसार आम आदमी पार्टी की स्थापना लोकतंत्र के मंदिर की पवित्रता को बहाल करने के लिए की गई थी, लेकिन केजरीवाल मूर्तियों के चतुर व्यापारी ही निकले, जो अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए केंद्र सरकार से टकराव कर सहानुभूति हासिल करने की बेजा कोशिश कर रहे हैं। केजरीवाल को केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली की सरकार बनाने के लिए ही जनादेश मिला था और नवीनतम आरटीआई से यह स्पष्ट है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए उन्होंने केंद्र के पास कोई औपचारिक प्रस्ताव भेजा ही नहीं।

फोन पर आरटीआई की सुविधा का वादा करने वाले लोग अब महत्वपूर्ण सवालों का जवाब देना तो दूर, सवालों को ही गायब कर रहे हैं। मोहल्ला सभा के नाम पर विकास की बात करने वाले केजरीवाल ने पार्टी तथा सरकार में केंद्रीयकरण के नए मापदंड बनाकर, राजनीति के सभी कीर्तिमान तोड़ दिए, जहां अब गवर्नेंस के अलावा सभी बातें होती हैं।

मोदी सरकार की जुमलेबाजी
केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेशों से काला धन वापस लाकर हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये जमा करने का वादा पूरा करने की जब बात आई तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को उसे जुमला ही करार देना पड़ा। संसद को एक वर्ष के भीतर अपराधियों से मुक्त करने के लक्ष्य को पूरा करने की बजाए विफलता का ठीकरा सुप्रीम कोर्ट के असहयोग पर डाल दिया गया। स्वच्छता के नाम पर जनता से सेस (अधिकर) वसूलने वाली मोदी सरकार द्वारा अभियान की विफलता के लिए स्थानीय निकायों और राज्य सरकार को दोषी ठहराना तो फिर बनता ही है।

घोषणापत्र पर अमल हेतु कानून के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अनदेखी
लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी द्वारा कांग्रेस में वर्चस्व स्थापित करने, तथा सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया गया था, जिसकी वास्तविकता हम आज भी देख रहे हैं। इसके बाद भारतीय राजनीति में नारों और वादों का एक नया दौर शुरू हुआ, जो अब सभी दलों द्वारा अपना लिया गया है।

अमेरिका और यूरोप में नेताओं के वादों पर वोटरों को उपभोक्ता अधिकार के तहत कानूनी सुरक्षा देने पर गंभीर बहस चल रही है। तमिलनाडु में जयललिता द्वारा मतदाताओं को फ्री वादों से लुभाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव आयोग को निर्देश दिया गया था कि वह राजनीतिक दलों के घोषणापत्र के कंटेन्ट पर नियमन हेतु कानून बनाने की पहल करे और उस पर सभी राजनीतिक दलों की खामोशी लोकतंत्र के लिए दुखद है।

कैसे रुके राजनीति में ठगी
देश में भ्रामक विज्ञापन तथा बाबाओं द्वारा ठगी के लिए कानून हैं, फिर नेताओं द्वारा गलत या झूठे वादे करके सरकार बनाने के विरुद्ध सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की जाती...? मोदी, केजरीवाल और अन्य नेताओं ने बड़े वादे कर सरकार तो बना ली, लेकिन विफलता का ठीकरा विपक्ष पर डालते हुए, जनता का ध्यान भटकाने के लिए बीफ या ऑड-ईवन की सनसनी क्यों पैदा की जा रही है...? संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र तथा राज्यों के अधिकार विस्तार से बताए गए हैं, लेकिन कानून के अनुसार शासन करने की बजाए सिर्फ आरोप की राजनीति चल रही है। राज्यसभा खत्म करने या पुलिस पर नियंत्रण से बदलाव नहीं, अधिनायकवाद ही आएगा। मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस के नारों के शोर और खर्चीले विज्ञापनों में गवर्नमेंट तो दिख रही हैं, लेकिन गवर्नेंस क्यों गायब है...? हर सवाल का जवाब देने का दावा करने वाले नेता इसका जवाब देना शायद ही पसंद करें...!

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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