पनामा लीक्स - अमीरों का टैक्स हैवन और बाकी दुनिया का नर्क

पनामा लीक्स - अमीरों का टैक्स हैवन और बाकी दुनिया का नर्क

पनामा के टैक्स हैवन से कर दस्तावेजों के भारी खुलासे से निकले बड़े नामों से अंतरराष्ट्रीय भूचाल आ गया है, जिनमें 12 मौजूदा या पूर्व राष्ट्र-प्रमुख भी शामिल हैं। पनामा की लॉ फर्म मोसैक फॉन्सेका के माध्यम से 1.15 करोड़ से अधिक दस्तावेज गुमनाम माध्यम से जर्मन अखबार सुडुशे जीतुंग को मिले, जिसने इन्हें अंतरराष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ (आईसीआईजे) के साथ साझा किया। 100 से अधिक मीडिया समूहों के 300 पत्रकारों की जांच के अनुसार 1977 से 2015 के काल में पनामा में 36,957 अवैध भारतीय खाते हो सकते हैं, जिनमें 500 बड़े लोगों का खुलासा हो सकता है।

ब्लैक मनी पर मोदी सरकार की चुप्पी - 2014 के आम चुनावों के दौरान (अब पीएम) नरेंद्र मोदी द्वारा यह वादा किया गया था कि सरकार बनने पर 100 दिन के भीतर विदेशों से ब्लैक मनी भारत लाई जाएगी और हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये जमा होंगे। सरकार बनने पर जब सवाल खड़े हुए तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इसे चुनावी जुमला ही करार दे दिया। पनामा लीक्स से स्पष्ट है कि बाबा रामदेव का 400 खरब से अधिक की ब्लैक मनी का दावा सही भी हो सकता है, जिस पर सरकार प्रभावी कार्रवाई करने में विफल रही है।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के बावजूद टैक्स प्रबन्धन की विफलता - ऑक्सफैम की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 201 बड़ी कम्पनियों में से 188 के खाते पनामा जैसे टैक्स हैवन में हैं, जिनमें टैक्स चोरी की रकम जमा होती है। इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा सही टैक्स दिया जाए तो इससे 190 बिलियन डॉलर से अधिक की सालाना आमदनी हो सकती है। भारत में 15 बिलियन डॉलर से अधिक का ई-कॉमर्स व्यापार है, जिस पर इनकम टैक्स और सर्विस टैक्स की सही वसूली करने के बजाए उस पर एफडीआई की सहूलियत दे दी गई, जिससे बड़े पैमाने पर मन्दी और बेरोजगारी भी फैल सकती है।

पी. नोट्स एवं एफडीआई से टैक्स हैवन को बढ़ावा - देश के शेयर बाजार में एफआईआई द्वारा पिछले वर्ष पी. नोट्स के माध्यम से 2.54 लाख करोड़ से ज्यादा निवेश किया गया, जो टैक्स हैवन के माध्यम से आता है। एफडीआई के माध्यम से पिछले वर्ष 40 बिलियन डॉलर के निवेश का दावा कर जिसे विकास का सूचकांक बताया जा रहा है, पर नीति आयोग भी विकास के इस मॉडल की आलोचना कर चुका है। मोदी सरकार द्वारा भी पुरानी सरकार के नियमों को लागू रखा जा रहा है, जिसके अनुसार पी. नोट्स के निवेश पर केवाईसी नियम लागू नहीं होते और एफडीआई के स्रोत की छानबीन नहीं होती।

राजनीति, उद्योग एवं खेलजगत का नापाक गठजोड़ - पनामा लीक्स की लिस्ट में उद्योगपतियों के अलावा राजनेताओं तथा बॉलीवुड के महारथियों के भी नाम हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फीफा के पदाधिकारी भी शामिल हैं, जिससे आईपीएल और भारतीय क्रिकेट के भ्रष्टाचार पर फिर बहस छिड़ सकती है, जिसमें सभी दलों के नेताओं का गठजोड़ शामिल है। पनामा लीक्स से ऐसे कई भारतीय उद्योगपतियों के विदेशी निवेशों का विवरण सामने आ सकता है, जिन्होंने विजय माल्या की तरह भारतीय बैंकों के कर्जे ही नहीं चुकाए।

विदेशी खातों का खुलासा क्यों नहीं है ज़रूरी - सरकारी अधिकारियों को तो अपने विदेशों खातों की जानकारी देना ज़रूरी कर दिया गया है, परन्तु पद्म पुरस्कार तथा अन्य सरकारी लाभ लेने वाले बड़े लोगों को विदेशी खातों तथा नागरिकता का खुलासा ज़रूरी क्यों नहीं है...? ऐसे नियम राजनेताओं तथा उद्योगपतियों पर भी लागू होने चाहिए, जो बैंकों से कर्ज और सरकारी पैसे में भ्रष्टाचार कर टैक्स हैवन में पैसा जमा करते हैं...? विदेशों में मौजूद संपत्तियों का खुलासा करने के लिए चलाई गई सरकारी योजना के जरिये सिर्फ 3,770 करोड़ का ही खुलासा हुआ है, फिर वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा किस बिना पर 2017 के बाद बदलाव की बात की जा रही है...?

पी साईनाथ के अनुसार भारत में दो लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है। अमर्त्य सेन तथा थॉमस पिकेटी ने अपने विश्लेषण में भारत में गरीबी तथा विषमता के लिए टैक्स हैवन की आपराधिक व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया है। ऑक्सफैम के अनुसार विश्व के 62 रईस लोगों के पास 3.5 अरब से ज्यादा की की सामूहिक संपत्ति है। क्या इसके लिए सरकार की आर्थिक, वित्तीय और टैक्स नीतियां जिम्मेदार नहीं...? क्या पनामा लीक्स का खुलासा सरकार और देश की आंख खोलेगा...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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