टेलीफोन टैपिंग - क्या अरविंद केजरीवाल के दावों की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट

टेलीफोन टैपिंग - क्या अरविंद केजरीवाल के दावों की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट के स्वर्ण जयंती समारोह में टेलीफोन टैपिंग के आरोप के बाद अब न्यायपालिका भी राजनीतिक गंदगी का शिकार हो गई, लेकिन क्या अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए आरोपों की उच्चस्तरीय जांच करवाकर, दोषियों या निराधार आरोप लगाने वालों को दंडित करेगा...?

मार्कंडेय काटजू की तरह अरविंद केजरीवाल को भी सुप्रीम कोर्ट बुलाया जाए : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की उपस्थिति में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जजों के टेलीफोन टैप होने का हल्ला है. सौम्या मर्डर मामले में पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को गलत बताते हुए फेसबुक पोस्ट लिखी, जिसके लिए उन्हें 11 नवंबर को जस्टिस गोगोई की कोर्ट में पेश होना है. इस सनसनीखेज खुलासे के बाद काटजू की तरह केजरीवाल को भी सुप्रीम कोर्ट में बुलाकर उनका बयान होना चाहिए. यदि केजरीवाल के आरोप मिथ्या और राजनीति से प्रेरित हैं, तो उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 505 एवं अन्य कानूनों के तहत दंडात्मक कार्रवाई होनी ही चाहिए...?

टेलीफोन टैपिंग न्यायपालिका की स्वायत्तता पर आघात : नेताओं और अफसरों के टेलीफोन टैप होने के पूर्व में कई प्रमाण आए हैं. आपातकाल के दौरान जजों की स्वतंत्रता भी बाधित हुई थी, परंतु आजादी के 70 वर्ष बाद जजों की टेलीफोन टैपिंग लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद तथा केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा केजरीवाल के आरोपों के खंडन से मामला खत्म नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई निर्णयों में बगैर अनुमति के टेलीफोन टैपिंग को गैरकानूनी तथा मानवाधिकार का उल्लंघन बताया है. जजों की टेलीफोन टैपिंग तो न्यायपालिका पर हमला ही माना जाएगा. न्यायपालिका की स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता संविधान का मूल ढांचा है, जिसके संरक्षण हेतु मुख्यमंत्री केजरीवाल तथा सरकार के मंत्रियों के बयान की उच्चस्तरीय जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा कराई जानी चाहिए.

सरकार और न्यायपालिका में तल्खी क्यों : राजनीतिक दलों और नेताओं में सत्ता हथियाने के लिए विद्वेष स्वाभाविक है, परंतु न्यायपालिका और सरकार के रिश्तों में इतनी तल्खी क्यों...? कुछ महीनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में विज्ञान भवन में ही चीफ जस्टिस ठाकुर रो पड़े थे, तब प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया था कि बंद कमरे में बातचीत करके समस्याएं सुलझाई जानी चाहिए. पिछले महीनों की घटनाओं से स्पष्ट है कि स्थिति बद से बदतर हुई है. पिछले हफ्ते मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने अटॉर्नी जनरल से कहा, कि जजों की नियुक्तियों में विलंब करके सरकार न्यायपालिका को ठप करना चाहती है. जजों की नियुक्ति में वर्चस्व की लड़ाई और राजनीतिक हस्तक्षेप से क्या न्यायिक-तंत्र शहीद हो रहा है...?

सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज और अब न्यायपालिका में भी राजनीति : देश में राष्ट्रीय मुकदमा नीति है, जिसका केंद्र सरकार द्वारा पालन ही नहीं होता. इसके बावजूद प्रधानमंत्री कहते हैं कि सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है, जिनका अदालतों से बोझ कम होना चाहिए. केंद्र सरकार ने जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) बनाया. सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी को इस आधार पर रद्द कर दिया कि सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है और विधि मंत्री की उपस्थिति से जजों की नियुक्ति में हस्तक्षेप होगा.

दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र सरकार की जंग अब दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. जजों की उपस्थिति में हुए टेलीफोन टैपिंग के खुलासे का असली सच शायद ही सामने आए, परंतु केंद्र सरकार के विरुद्ध जजों को राजनीतिक संदेश देने में केजरीवाल सफल दिख रहे हैं. उपराज्यपाल के अखाड़े में पस्त केजरीवाल को इस दांव के बाद क्या अदालती लड़ाई में राहत मिलेगी...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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