नोटबंदी पर बवाल - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 11 सवाल...

नोटबंदी पर बवाल - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 11 सवाल...

नोटबंदी का ऐलान करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

नोटबंदी का निर्णय आज़ाद भारत में अभूतपूर्व है, क्योंकि इससे देश का हर व्यक्ति प्रभावित है. सर्वेक्षणों के अनुसार नोटबंदी से असुविधा के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी का नायकत्व बरकरार है, जिसकी झलक उपचुनाव के परिणामों में भी दिखती है. पीएम ने 10 सवालों के माध्यम से नोटबंदी पर जनता से फीडबैक मांगा है. नोटबंदी के माध्यम से सरकार की कार्यप्रणाली पर भी कई सवाल हैं, जिनपर बहस से बदलाव के नए युग की शुरुआत हो सकती है-

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1- किस कानून के तहत रद्दी कागजों को नोटों की तरह चलाया जा रहा है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर की रात अपने भाषण में 500 तथा 1000 के नोटों को रद्दी कागज का टुकड़ा करार दिया था, फिर किस कानून के तहत रद्द नोटों को रोजाना पारित आदेशों से चलाया जा रहा है? नोटबंदी से भी क्या रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं हुआ? सरकारी बैंकों में पुरानी सरकार के राजनीतिक हस्तक्षेप से 10 लाख करोड़ से अधिक का लोन उद्योगपतियों ने घोटाले से एनपीए बना दिया जिससे बैंक तबाही के कगार पर हैं.

2- काले धन के बड़े मगरमच्छों की पूरी जानकारी, जिन पर सर्जिकल अटैक क्यों नहीं
विदेशों में जमा 30 लाख करोड़ का काला धन (सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर एपी सिंह द्वारा 4 वर्ष पहले किया गया खुलासा), पी-नोट्स की अपारदर्शी व्यवस्था, ई-कॉमर्स में एफडीआई का गोरखधंधा, खेल संघों एवं बीसीसीआई में भ्रष्टाचार, विदेशी व्यापार घोटाला (आरबीआई रिपोर्ट के अनुसार कुल जीडीपी का 25 फीसदी), पनामा लीक्स, तथा 2.23 लाख संदिग्ध ट्रांजेक्शंस पर एफआईयू की नाकामी जैसे मामलों में काले धन के बड़े मगरमच्छों की सरकार को पूरी जानकारी है. गिने चुने लोगों पर प्रभावी कार्रवाई करने की बजाय नोटबंदी से आम जनता को भारी तकलीफ से सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल तो खड़े होते ही हैं?

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3- दो हज़ार के नोटों की डिजाइन ठीक रखने से एटीएम में नहीं करना पड़ता सुधार

एटीएम मशीनों में 2000 के नोटों के लिए नई ट्रे लगाने आदि के तकनीकी सुधार में लम्बा समय और 1593 करोड़ से अधिक के खर्च का की संभावना है. यदि 2000 के नए नोटों का साइज को पुराने 1000 के नोट (क्योंकि वो नोट तो बंद हो गए) के साइज जैसा ही डिजाइन किया जाता तो एटीएम में बदलाव की जरूरत क्यों पड़ती?

4- सरकारी यूपीआई को दरकिनार करके पेटीएम को एकाधिकार क्यों
कैशलेस इकॉनमी के लिए केंद्र सरकार द्वारा विकसित यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस की योजना को दरकिनार करके पेटीएम जैसी कंपनियों को मुनाफा और एकाधिकार की अनुमति देने से सरकार की साख पर सवाल खड़े हो रहे हैं? एक स्टार्टअप कंपनी ने बैंकों की लम्बी लाइन में एजेंट खड़ा करने के लिए ऐप जारी करके क़ानून के साथ भद्दा मजाक किया है. नोटबंदी से जहां इन्टरनेट कंपनियां मालामाल हो रही हैं वहीं बैंक संस्थागत भ्रष्टाचार और कमीशन बाजी से तबाह हो रहे हैं, क्या यह दुखद नहीं है?   

5- 2000 के बड़े नोट जारी करने से, आतंकवाद कैसे कम होगा
जब देश की अर्थव्यवस्था ठप्प सी हो गई हो तो कश्मीर में पत्थरबाजी कम होने को नोटबंदी की सफलता कहना जल्दबाजी होगा. आम जनता को नोटों का इंतजार है पर कश्मीर में कल मारे गए आतंकियों के पास से 2000 के नए नोट बरामद होने की खबर है! क्या 2000 के बड़े नोट से आतंकियों और गुनाहगारों को ज्यादा सहूलियत नहीं मिलेगी?

6- राजनीतिक दलों द्वारा काले धन के इस्तेमाल पर पाबन्दी क्यों नहीं
कांग्रेस-भाजपा समेत अधिकांश राजनीतिक दल काले धन की रोकथाम के लिए इनकम टैक्स के क़ानून का पालन नहीं करते. सरकार द्वारा चुनाव सुधार पर चुनाव आयोग के सिफारिशों की अनदेखी के बाद राजनीति में काले धन का प्रभाव क्या एक साथ चुनाव कराने से ही ख़त्म हो जाएगा?

7 - अफसरशाही में सुधार और पारदर्शिता के बगैर कैसे कम होगा भ्रष्टाचार
वित्त मंत्रालय द्वारा 2012 की रिपोर्ट के अनुसार बड़े नोटों की बंदी से भ्रष्टाचार और काला धन नहीं रोका जा सकता. लोकपाल कानून के तहत अफसरों को परिवारजनों की संपत्ति का सार्वजनिक विवरण देना था, जिसे कुछ महीने पहले सरकार ने क़ानून पारित करके रोक दिया. अफसरशाही को अनुचित संरक्षण के बाद भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रभावी लड़ाई कैसे हो सकती है?

8- नए नोटों की छपाई के लिए नहीं हुए प्रभावी इंतजाम
आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती के अनुसार भारत में चार करेंसी प्रिंटिंग प्रेस को नए नोट छापने में 4 साल का समय लग सकता है, जिस पर 15000 करोड़ खर्च होने की संभावना है. राज ठाकरे ने कहा है कि यदि सरकार द्वारा 10 महीने से नोटबंदी की तैयारी थी, तो नोट छपाई के पेपर का टेंडर 10 दिन पहले ही क्यों निकाला गया? इस विलम्ब से क्या अर्थव्यस्था में मंदी और रोजगार का संकट नहीं बढ़ेगा?

9- जाली नोटों के खात्मे के लिए नोटों को बदलना काफी, फिर नोटबंदी क्यों
पुराने नोटों को यदि समयबद्ध तरीके से बदलने की अनुमति दी जाती तो भी जाली नोट खत्म हो जाते. नोटों का कागज, स्याही तथा मशीनरी विदेशों से भी आता है जहां आतंकी भी जाली नोट छपवा लेते हैं. नए नोटों में सुरक्षा के अतिरिक्त इंतज़ाम नहीं होने से जाली नोट की समस्या कैसे ख़त्म होगी?  

10- कैशलेस इकॉनमी में डाटा सुरक्षा, प्राइवेसी एवं कराधान हेतु क़ानून क्यों नहीं
आधार की अनिवार्यता के बावजूद सरकार प्राइवेसी तथा डाटा सुरक्षा के लिए जनता को कानूनी सुरक्षा कवच प्रदान करने में विफल रही. उबर, गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां भारतीय क़ानून में लचीलेपन का फायदा उठाकर खरबों रुपये के टैक्स की चोरी करती हैं, जिन पर अंकुश लगाने की बजाय छोटे उद्यमियों पर शिकंजा क्या सही कदम है?    

11- नोटबंदी से उदारीकरण को झटका और देश की साख कमजोर
अमेरिका के पूर्व वित्तमंत्री लारेंस एच. समर्स के अनुसार नोटबंदी का कदम तेज रफ़्तार की गाड़ी के टायर को पंचर करने जैसा है. नोटबंदी के बाद देश में इंस्पेक्टर राज से उदारीकरण की रफ़्तार थम सकती है और रुपये की साख कमजोर होने से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारत को भारी नुक्सान हो सकता है. नोटबंदी के अनेक लाभ हो सकते हैं पर अर्थव्यवस्था में मंदी, असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी का प्रकोप तथा जीडीपी में नुक्सान की भरपाई कैसे होगी?  

इनकम टैक्स के आंकड़ों को अगर सही माना जाए तो नगदी कुल ब्लैक मनी का लगभग 6 फीसदी है. ब्लैक मनी भ्रष्टाचार की उपज है जिसके लिए जवाबदेह प्रशासन, न्यूनतम कानून, त्वरित न्याय-व्यवस्था एवं आधुनिक टैक्स प्रणाली जैसे दीर्घकालिक उपायों की जरूरत है. इन पर जोर देने की बजाय नोटबंदी का शॉर्टकट के नुस्खा देश और सरकार के लिए नुकसानदेह है? चुनावी राजनीति बंद करके विपक्ष द्वारा भी क्या नोटबंदी पर संवाद नहीं होना चाहिए, जिसकी पीएम मोदी ने अपने ऐप से सही शुरुआत की है!

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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