राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने दस साल से पुराने सभी डीजल वाहनों का पंजीकरण तत्काल प्रभाव से निरस्त करते हुए एनसीआर में स्थित राज्यों दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश के आरटीओ तथा पुलिस को ऐसी कारों की जब्ती का आदेश दिया है। एनजीटी का आदेश कानूनी नजरिए से त्रुटिपूर्ण है जिससे वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी होने के साथ देशव्यापी प्रदूषण भी बढ़ सकता है।
आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर होने के साथ कानूनी तौर पर असंगत
पिछले 7 अप्रैल 2015 को एनजीटी ने वायु प्रदूषण के मद्देनजर दिल्ली एनसीआर में दस साल पुराने सभी डीजल वाहनों पर रोक लगाई थी पर दिल्ली पुलिस लगभग 3,000 वाहनों को ही जब्त कर पाई। बगैर वाहन मालिकों का पक्ष सुने नाराज एनजीटी ने सभी वाहनों का रजिस्ट्रेशन ही रद्द कर दिया जो कानूनी तौर पर सिर्फ संबंधित परिवहन अधिकारी ही कर सकता है। संविधान के अनुसार प्रभावित पक्षों को सुने बगैर एनजीटी का एकतरफा आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त भी किया जा सकता है। वाहन मालिकों द्वारा 15 साल का शुल्क देकर वाहन का पंजीकरण कराया जाता है तो फिर एनजीटी 10 साल बाद उसे कैसे रद्द कर सकती है? केरल हाईकोर्ट द्वारा एनजीटी के 2015 के आदेश पर रोक लगा दी गई थी। एनजीटी द्वारा क्षेत्राधिकार के बाहर पारित आदेश और अति न्यायिक सक्रियता संविधान के मुताबिक नहीं है।
अदालती आदेश से हलकान जनता को सरकार क्यों न दे मुआवजा
प्रदूषण कम करने के लिए श्रीधरन द्वारा विकसित दिल्ली मेट्रो जैसै सार्वजनिक परिवहन और सीएनजी जैसी तकनीकी लागू करने की बजाय सरकार और अदालतों के मनमाने प्रयोग से जनता हलकान हो रही है। ऑड-ईवन का 'केजरीवाल फार्मूला' भारी प्रचार के बावजूद प्रदूषण कम करने में विफल रहा जिसकी एनजीटी के आदेश से भी पुष्टि होती है। अनुमान के अनुसार डीजल कारें कुल प्रदूषण का 2 फीसदी कारक हैं तथा दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग द्वारा रियलटी चेक में अधिकांश पुरानी कारें परिचालन योग्य पाई गईं। इसके बावजूद एनजीटी ने तुगलकी आदेश जारी कर दिया जिससे दिल्ली में 2.8 लाख, गुड़गांव में 28 हजार, गाजियाबाद में 14,188 और नोएडा में 7,614 लोग बे-कार हो गए और लाखों परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट आ गया है। एनजीटी ने अन्य आदेश 26 नवंबर 2014 से दिल्ली में 15 साल पुराने सभी पेट्रोल वाहनों पर रोक लगाई थी, जिनका एनजीटी के नए आदेश से पंजीकरण रद्द हो सकता है। देश में वाहनों को स्क्रैप घोषित करने की कोई नीति नहीं है। क्या सरकार एनजीटी के आदेश से पीड़ित वाहन मालिकों को मुआवजा देगी?
वाहन उद्योग को 1 लाख करोड़ का अनुचित प्रोत्साहन क्यों
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन, जापान और अमेरिका में वाहन के बाजार में मंदी है। वाहनों पर बैन के अदालती आदेश के दौर में, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी अमेरिकी कार कंपनी टेस्ला को भारत में आमंत्रित करने के साथ नई कारों की खरीद पर सब्सिडी देने की योजना बना रहे हैं। दिल्ली सरकार द्वारा ऑड-ईवन लागू करने से एप आधारित टैक्सियों का बाजार बढ़ा और कई लोगों ने दूसरी कार भी खरीद ली। एनजीटी के आदेश के बाद दिल्ली-एनसीआर की लाखों गाड़ियां पड़ोसी राज्यों में सस्ते दाम पर बिक कर इस्तेमाल होंगी। पुरानी गाड़ी बेचकर नई गाड़ी खरीदने से वाहन उद्योग को लगभग एक लाख करोड़ रुपए का नया बाजार मिल सकता है, जिसके लिए सातवें वेतन आयोग से उपजी नकदी का प्रबंध कर दिया गया है।
प्रदूषण पर समग्र दृष्टि तथा ठोस प्रयासों का अभाव
सीएसई ने 20 साल पहले अपनी रिपोर्ट में बढ़ते वाहनों से दिल्ली को मरता हुआ शहर बताया था। इसके बावजूद सरकार द्वारा सार्वजनिक परिवहन को विकसित नहीं किया गया तथा निजी वाहनों की खरीद को सस्ते बैंक लोन से प्रोत्साहित किया गया। वर्ष 2014 के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 89 लाख वाहन रजिस्टर्ड हैं, जिनमें अधिकांशतः गैर-कानूनी तरीके से सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर पार्क किए जाते हैं। भारी दंड लगाकर निजी वाहनों की संख्या को हतोत्साहित करने की बजाय लोगों को नई कार खरीदने के लिए प्रेरित करने से देश में 18 करोड़ वाहन हो गए हैं। देश की राजधानी के अधिकांश नॉयज़ बैरियर खराब हैं तथा सरकारी डीटीसी की बसें ज्यादा हल्ला करती हैं। इसके बावजूद एनजीटी सरकार के खिलाफ पेनल्टी लगाने में क्यों विफल रही?
संविधान की समानता के खिलाफ है यहआदेश
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में SEZ इकाइयों को घातक प्लास्टिक स्क्रैप आयात करने की अनुमति देने से भारत कचरे की अंतर्राष्ट्रीय मंडी बन सकता है। महानगरों की उपभोक्ता संस्कृति की देश के अन्य भागों की गरीबी, भुखमरी तथा पलायन हेतु जवाबदेही तय होनी ही चाहिए! संविधान के अनुच्छेद 14 से जब सभी लोग समान हैं तब दिल्ली के लिए हानिकारक वाहनों को देश के अन्य भागों में चलाने की इजाजत क्यों दी जा रही है? एनजीटी का आदेश संविधान और लोकतंत्र के लिए सुखद संकेत नहीं है...।
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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