रेल बजट : क्या सुरेश प्रभु जीडीपी बढ़ाकर जनता को राहत दे पाएंगे?

रेल बजट : क्या सुरेश प्रभु जीडीपी बढ़ाकर जनता को राहत दे पाएंगे?

प्रतीकात्मक फोटो

संसद का बजट सत्र प्रारम्भ हो गया है और रेल बजट 25 फ़रवरी को पेश होगा। रेलमंत्री प्रभु ने कहा है कि रेल-बजट तो वित्तीय खर्च का लेखा-जोखा होता है इसलिए इसमें नई ट्रेनों और स्टेशनों की घोषणा नहीं होनी चाहिए? पर हकीकत यह है कि पुरानी योजनायें 6-8 लाख करोड़ फंड की कमी से पहले ही ठप पड़ी हैं तो फिर नयी योजनाओं की घोषणा का क्या औचित्य? इसके बावजूद सोशल मीडिया से रेल बजट के व्यापक प्रचार निर्देश जारी किये गए हैं पर क्या इससे असल चुनौतियों को नज़रअंदाज किया जा सकता है?  

बुलेट ट्रेन पर जापानी कर्ज के लिए लेनी पड़ सकती है संसद की मंजूरी
 पिछले वर्ष रेलवे की पूरे देश से आमदनी लगभग 1.6 लाख करोड़ थी जबकी बुलेट-ट्रेन अकेले का बजट लगभग 98 हजार करोड़ है। रेलवे ने 2014-15 में लगभग 11790 करोड़ का क़र्ज़ लिया, पर बुलेट ट्रेन के लिए जापान से 80 हजार करोड़ का लोन लिया जा रहा है। संविधान के अनुच्छेद 293 और केन्द्रीय वित्त आयोग के मुताबिक राज्यों द्वारा अपनी जीएसडीपी का 3 फीसदी से अधिक कर्ज लेने पर रोक है। भारत सरकार के ऊपर जीडीपी का 66 फीसदी से अधिक कर्ज है। बुलेट ट्रेन के लिए जापानी लोन को नियमों के अनुसार संसद की मंजूरी लेंगी चाहिए और क्या रेलमंत्री इसके लिए रेल-बजट में प्रावधान करेंगे?  

कर्ज से उपजा छटनी का संकट
माल भाड़े व्यापार में रेलवे का हिस्सा  62 से घटकर 36 फीसदी और यात्री कारोबार में रेलवे का हिस्सा 28 से घटकर 14 फीसदी ही रह गया है।1980 के पहले रेलवे में 40 लाख कर्मचारी होते थे जिनकी संख्या घटकर अब लगभग 13.5 लाख हो गई है। कमाई का 91 फीसदी हिस्सा वेतन-भत्तों,  कर्ज पर ब्याज और अनुत्पादक कार्यों में ही खर्च हो जाता है और एलआईसी जैसी वित्तीय संस्थानों से मिले क़र्ज़ के दम पर ही रेलवे अब नए रोजगार सृजन में भी विफल हो रही है।

मृतप्राय रेलवे नेटवर्क के निजीकरण की जुगत
 एक्सिस कैपिटल की अध्ययन रिपोर्ट ‘रेलवे 360 डिग्रीः एक्चुअली वाट हैपेन्स’ में 2030 तक का रोडमैप तैयार किया गया है जिसमे निजीकरण पर भी जोर दिया गया है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने जलपान,  स्वच्छता, माल ढुलाई,  निजी कोच खरीद जैसे 17 क्षेत्रों में एफडीआई की मंजूरी दे कर टुकड़ों में निजीकरण के प्रयोग को आगे बढ़ाया है। मेट्रो-मैन ई. श्रीधरन के अनुसार निजीकरण और बुलेट ट्रेन की बजाय सामान्य ट्रेनों की स्पीड,  क्षमताओं का विस्तार तथा आम जनता की सुविधाओं में वृद्धि के प्रयास करने से रेलवे देश की अर्थव्यवस्था में अपना रुतबा फिर हासिल कर सकती है।

मानवरहित रेलवे क्रासिंग में हज़ारों मौतों को रोक कर 1% बढ़ सकती है जीडीपी
परिवहन-मंत्री गडकरी के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं को रोकने से जीडीपी में 1.6 फीसदी का इजाफा हो सकता है पर सरकार भारत में रेल दुर्घटनाओं को नज़रअंदाज क्यों कर देती है जो विश्व में सर्वाधिक हैं। देश में कुल 31,846 रेलवे क्रासिंग में 13,530 मानवरहित रेलवे-क्रासिंग हैं जिनमे न कोई गेट है और न किसी गार्ड की तैनाती है। इनकी वजह से 40 फीसदी ट्रेन एक्सीडेंट और 60 फीसदी मौतें होती हैं और इन्हें 37 हज़ार करोड़ के फंड से ठीक किया जा सकता है। रेलवे एक्ट तथा संविधान में भी जनता की सुरक्षा के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं पर सरकार अपनी लापरवाही से मौत की आपराधिक जिम्मेदारी शायद ही कभी लेती हो? स्मार्ट-सिटी और बुलेट-ट्रेन के दौर में सुदूर इलाकों में रहने वाली आम जनता की रेल-दुर्घटनाओं से जान बचा कर, जीडीपी बढ़ाने का चमत्कार क्या प्रभु आने वाले रेल बजट में कर पायेंगे?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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