चंद्रमोहन का ब्लॉग : एक के बदले दो आयलान दिए हैं हमने, बोलो... मेरा भारत महान

चंद्रमोहन का ब्लॉग : एक के बदले दो आयलान दिए हैं हमने, बोलो... मेरा भारत महान

सुनपेड गांव में मारे गए दलित परिवार के बच्चे दिव्या और वैभव (फाइल फोटो)।

नई दिल्ली:

समंदर किनारे औंधे मुंह पड़े उस बच्चे के शव की वो तस्वीर तो शायद सबके ज़हन में अभी भी ताज़ा  ही होगी....जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया...। जी हां, मैं सीरियाई बच्चे आयलान कुर्दी की बात कर रहा हूं....जो इस्लामिक स्टेट की क्रूरता से जन्मे सीरियाई शरणार्थी संकट का शिकार हो गया। दुनियाभर में इस बच्चे की मौत पर कई लोग ग़मगीन हो गए। कई लोगों ने इस बच्चे की आत्मा की शांति की दुआएं मांगीं। भारत में भी आयलान कुर्दी की मौत पर शोक जताया गया। ... वो दिन था और आज का दिन है...दुनिया ने हमें एक आयलान कुर्दी दिया था...लेकिन बल्लभगढ़ की क्रूरता के बाद हमने दुनिया को बदले में दो लौटा दिए...।

बल्लभगढ़ में एक परिवार के दो मासूम बच्चों को जिंदा जला दिया गया। जिनकी उम्र खिलौनों से खेलने की थी उन्हें आग की तपिश से झुलसा दिया गया। पुलिस सूत्रों की मानें तो मामला आपसी रंजिश का था इसलिए इस घटना को अंजाम दिया गया। यहां मैं उस परिवार की जाति या समुदाय का कोई जिक्र इसलिए नहीं कर रहा क्योंकि यहां मैं बात सिर्फ बच्चों की कर रहा हूं। बच्चे कहीं के भी हों, किसी भी जाति के या किसी भी धर्म के हों...खुदा का अक्स होते हैं।

हाजिरी देने फिर पहुंच जाएंगे समाज के पहरेदार...
बच्चा वह आयलान कुर्दी भी था और बच्चे ये दोनों भी थे। निर्दोष वह भी था, निर्दोष यह भी हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि आयलान के बचपन को समुद्र लील गया और इन दोनों के बचपन को आग में झुलसा दिया गया। मुझे समझ नहीं आ रहा उन दरिंदों की हैवानियत को किस तरह बयां करूं जिन्हें इन दोनों बच्चों के मासूम चेहरे देखकर रहम तक नहीं आया। हमने, आपने और समाज ने कुछ खोया हो या न खोया हो, लेकिन एक घर के आंगन ने दो मासूम बच्चों का बचपन खो दिया। एक मां-बाप ने दिल का वह सुकून खो दिया जो उन्हें अपने बच्चों को देखकर मिलता। एक गली ने बच्चों का वह अल्हड़पन खो दिया जो खेल-खेल में बच्चे अपने पीछे छोड़ जाते थे। अब उस आंगन के पास सिर्फ कुछ नेताओं का जमावड़ा बचा है जो समाज के पहरेदार बनकर वहां पहुंचे हैं। वह कुछ दिन बाद फिर एक और घटना पर अपनी हाजिरी देने पहुंच जाएंगे।

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खो चुके मासूम बचपन को याद रखेगा समय  
समझ से परे है कि हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जो संवेदनहीन हो चुका है, जहां हम देश का विकास तो चाहते हैं पर मानसिक विकास आज भी जर्जर इमारत की तरह मरम्मत के इंतजार में है। ...फिर एक एफआईआर दर्ज की जाएगी, फिर कुछ लोगों को पुलिस खानापूर्ति के लिए पकड़कर अपनी पीठ थपथपाएगी, फिर हम इस पर निंदा करेंगे और हमेशा की तरह न्याय की मांग होगी। लेकिन जो जा चुका उसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी। हम, आप और यह कुदरत सब तमाशबीन की तरह फिर सबकुछ सहन कर जाएंगे। आज जो नेता इस पर अपनी सियासी रोटी सेंक रहे हैं और वे लोग जो चाय के ठेले पर चाय की चुस्की भरकर इस पर चर्चा कर रहे हैं, सभी कल इन बच्चों को भूल जाएंगे...पर समय नहीं भूलेगा...न आयलान को भूला है न ही इन दोनों फरिश्तों को भूलेगा।