गौ-रक्षा तो हो जाएगी, लेकिन हमारी रक्षा कौन करेगा...

गौ-रक्षा तो हो जाएगी, लेकिन हमारी रक्षा कौन करेगा...

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

राजस्थान में जान गंवाने वाले पहलू खान, दादरी में पीट-पीट कर मौत के घाट उतारे गए अखलाक और भी कई नाम... मुझे उन सभी परिवारों से सहानुभूति है, जो इस तरह की घटनाओं के शिकार बने. और साथ ही मुझे उन लोगों से भी सहानुभूति है, जो ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं. वो लोग शायद मानवता के नहीं किसी और ही शक्ति के वश में होकर इस तरह के कृत्य करते हैं.

मानव सदियों से धर्म के नाम पर मर मिटने को तैयार रहा है. कभी-कभी सोचती हूं कि धर्म आखिर है क्या. धर्म एक समय में विकासशील सभ्यताओं द्वारा बनाए गए कुछ नियम ही तो होंगे, तो उन्हें एक सामाजिक ढांचे में, समान और सुरक्षित रूप से रहने का सहारा देते हों. हर सभ्यता, हर बस्ती ने अपने लिए कुछ नियम बनाए होंगे. पर समय के साथ-साथ वे धर्म में परिवर्तित हुए होंगे. हो सकता है कि मेरी सोच गलत हो, लेकिन जरा सोचिए समाज के उन नियमों का क्या लाभ जो समाज के आधार मनुष्य को, उसकी मनुष्यता को ही नष्ट कर दें. कुछ रूढ़ि‍यों, रिवाजों, धर्मों के पीछे हम यह क्यों भूलें कि धर्म मनुष्य के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं.

आज जब गाय लिखकर गूगल किया, तो उसने जवाब दिया – ‘एक प्राणी’. लेकिन जब मैंने मनुष्य लिख कर सर्च किया, तो गूगल ने खुद ही मुझे कई ऑप्शन दे दिए, जिनमें से एक था मनुष्यता. जिसे कई लोग भूल गए हैं, एक प्राणी मात्र के लिए.

गाय कई मायनों में लाभकारी जीव है इसमें कोई संदेह नहीं. लेकिन यह बात भी हम मनुष्य मान चुके हैं कि जीवन चक्र में सबसे महत्वपूर्ण मानव ही है. धरती पर हर जीव की जिंदगी का अपना महत्व है. हम केवल अपनी सुविधा और सहूलियत के लिहाज से भला किसी प्राणी के जीवन को महत्वपूर्ण और किसी के जीवन को सस्ता कैसे बना सकते हैं. इस लिहाज से तो केवल गौमांस ही क्यों, हर मांसाहार पूरी तरह बंद हो जाना चाहिए.

बहुत से लोग होंगे, जो मेरी इस बात का समर्थन करेंगे. लेकिन मैं ऐसे विचार वाले लोगों के उन ‘अंध-समर्थकों’ से एक सवाल पूछना चाहती हूं - ‘अगर पृथ्वी पर सभी शाकाहारी हो गए, तो कितने लोगों की भूख मिट पाएगी.’ क्योंकि धरती अपनी आबादी का पेट भरने के लिए उस अनुपात में अन्न नहीं उपजा पाएगी. ऐसे में भूखा वो गरीब ही मरेगा, जो गाय पालकर पेट भरता है. महंगे रेस्तरां में गौमांस का स्वाद लेने वाला अमीर तो तब भी अपने लिए अन्न का जुगाड़ कर ही लेगा.

इसलिए मैं न सिर्फ उन तथाकथित गौरक्षकों से बल्कि उन सब से, जो उन्हें किसी न किसी रूप में समर्थन देते हैं, निवेदन करती हूं कि एक बार सोचिए- क्या होगा अगर गाय को बचाते-बचाते हम ही नष्ट हो जाएंगे. शायद गाय तो बच जाएगी, पर हम मानव अपनी मानवता को नष्ट कर बैठें.

अनिता शर्मा एनडीटीवी खबर में डिप्‍टी न्‍यूज एडिटर हैं.

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