संसद में हंगामा है बरपा, लोकतंत्र पर काला धब्बा कब लगता है...

संसद में हंगामा है बरपा, लोकतंत्र पर काला धब्बा कब लगता है...

लोकसभा का दृश्य (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

आपके दिमाग़ में उस वक्त क्या तस्वीर बनती है, जब नेता कहते हैं कि फलां कार्यवाही लोकतंत्र पर काला धब्बा है। लोकतंत्र का काला धब्बा किसे कहते हैं और यह कब और कैसे लगता है।

क्या आप यह मानते हैं कि हमारा लोकतंत्र एक सफेद बोर्ड की तरह है। जिस पर कभी कभार काला धब्बा पड़ जाता है। आप कैसे तय करते हैं कि आपातकाल वाला काला धब्बा बड़ा है या बाबरी मस्जिद के ध्वंस वाला काला धब्बा।

2008 में लोकसभा के पटल पर नोटो की गड्डी रखने से पड़ा काला धब्बा बड़ा है या 1984 के दंगे वाला काला धब्बा। भ्रष्टाचार, जातिवाद और धनबल की राजनीति से लगने वाले काले धब्बे को मिला लें तो लोकतंत्र का पूरा बोर्ड ही ब्लैक लगने लगता है।

काला धब्बा हमारी राजनीति के अलोकतांत्रिक होने का प्रतीक माना जाता है। लोकसभा से कांग्रेस के 25 सांसदों को निलंबित किया गया तो इसे लोकतंत्र की हत्या से लेकर काला धब्बा तक कहा गया। मॉनसून सत्र में संसद के दोनों सदन हर दिन एक ही मुद्दे पर स्थगित होते जा रहे हैं। सदन में कांग्रेस के अलावा भी कई दल अपनी मांगों को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं, वेल तक जा रहे हैं और बैनर भी दिखा रहे हैं।

हर दिन और हर बार स्पीकर की चेतावनी के बाद भी कांग्रेस के सांसद काली पट्टी बांध कर आ जाते हैं, वेल में जाकर नारे लगाते हैं और बैनर भी दिखाते हैं। इस्तीफे की मांग को लेकर लेफ्ट के सांसद भी आवाज़ उठाते हैं, मगर वेल में नहीं जाते और बैनर नहीं दिखाते। बड़ा मोदी मेहरबान तो छोटा मोदी पहलवान। भ्रष्टाचार पर खूब भाषण, ललित गेट पर मौनासन, प्रधानमंत्री चुप्पी तोड़ो।

सोमवार को कांग्रेस के सांसद कुछ बड़े आकार का बैनर लेकर आ गए। इस सत्र में बैनरबाज़ी इतनी हुई है कि 23 जुलाई को बीजेपी के भी कई सांसद लोकसभा में बैनर लेकर आ गए। चूंकि ऐसे वक्त में कैमरा हटा लिया जाता है, इसलिए उस समय की तस्वीरें नहीं हैं। 24 जुलाई को सदन के बाहर बीजेपी के नेता भी जवाबी पोस्टर लिए घूम रहे थे, जिस पर लिखा था उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, किसानों की ज़मीन दामाद को बांटे।

सी फॉर कांग्रेस सी फॉर करप्शन। इस तरह से कांग्रेस बीजेपी में उस दिन इज़ इक्वल टू हो गया। समाजवादी पार्टी और आरजेडी ने भी वेल में जाकर प्लेकार्ड दिखाए हैं कि जाति की जनगणना जारी की जाए। इसी सदन में निलंबन के अगले दिन यानी मंगलवार को तेलंगाना के सदस्य बैनर लेकर आ गए। तेलंगाना के सदस्य कई बार अलग हाईकोर्ट की मांग वाले बैनर लेकर आ रहे हैं।

मंगलवार को जब स्पीकर ने बोलने की अनुमति दी तब भी तेलगांना के सांसद छोटे आकार के बैनर दिखा रहे थे, जिसे प्लेकार्ड बोला जा रहा है। वाईएसआर कांग्रेस के सांसद भी वेल में चले गए और नारे लगाने लगे। प्लेकार्ड दिखाने लगे। इनकी मांग थी कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए।

मॉनसून सत्र से पहले बजट सत्र का आंकड़ा देखेंगे तो पिछले 15 साल का सबसे कामयाब सत्र रहा है फिर मॉनसून सत्र में ऐसा क्या बदल गया कि विपक्ष वो विपक्ष नहीं रहा और सरकार वो सरकार नहीं रही। दिक्कत यह है कि जैसे ही आप कांग्रेस से पूछेंगे वो बीजेपी से पूछने लगती है। यहीं पर आ जाता है इज़ इक्वल टू की थ्योरी।

इज़ इक्वल टू वो थ्योरी है जिसके तहत बीजेपी कांग्रेस पर भ्रष्टाचार या सदन न चलने के आरोप लगाएगी तो कांग्रेस भी सेम आरोप बीजेपी पर लगा देगी। प्रमाण के साथ। इज़ इक्वल टू थ्योरी के ज़रिए राजनीतिक दल केमेस्ट्री के पेपर में फिजिक्स का फार्मूला लिख देते हैं और आराम से पास भी कर जाते हैं। कुछ इज़ इक्वल टू वक्ताओं के बोलने से पहले ही लीक कर देता हूं ताकि उनका समय बच सके।

मार्च 2013 में राबर्ट वाड्रा के मामलों की जांच की मांग को लेकर बीजेपी लोकसभा और राज्यसभा में आवाज़ उठा रही थी। लोकसभा में बीजेपी के सदस्य सदन में बैनर लेकर आ गए थे। इस पर लिखा था वित्त मंत्री जी दामाद का फार्मूला लागू कीजिए, घर बैठे कमाइए। मई 2013 का लोकसभा में नेता विपक्ष के रूप में सुष्मा स्वराज का बयान था कि पहले कानून मंत्री और रेल मंत्री का इस्तीफा होगा फिर सदन चलेगा।

इस बार कांग्रेस कह रही है कि सुषमा स्वराज पहले इस्तीफा दें फिर सदन चलेगा। इज इक्वल टू थ्योरी की ये इंतहा है। हम जैसे लोग तब भी दुखी थे, जब बीजेपी विपक्ष में रहते हुए सदन नहीं चलने देती थी और अब भी दुखी है जब कांग्रेस सदन चलने नहीं दे रही है। 2012 में कोयला खदानों के मामले को लेकर 19 दिन का मॉनसून सत्र सिर्फ 25 घंटे चला था। 2009 से 2014 के बीच 900 घंटे बर्बाद हुए थे। तब राहुल गांधी और कांग्रेस के सांसदों ने संसद परिसर में लगी गांधी की मूर्ति के सामने प्रदर्शन किया था।

ज्यादातर प्लेकार्ड अंग्रेजी में थे, जिसमें लिखा था प्लीज़ हियर अस। डू नॉट डेमोलिश डेमोक्रेसी। एक प्लेकार्ड हिन्दी में भी था जिस पर लिखा था कि हमारी आशाओं को न कुचलें। सरकार में आने के बाद बीजेपी सांसद बैनर लेकर खड़े हैं कि सोनिया संसद में बहस करो, जनता का पैसा हो तरस करो। क्वात्रोची की काली कमाई, इटली में किसने भिजवाई।

दोनों पार्टी के कॉपीराइटर घोर नकलची हैं। एक दूसरे का स्लोगन देखकर उसी तर्ज पर जवाबी स्लोगन लिखते हैं। 22 जुलाई को कांग्रेस के एक सांसद ने सदन के भीतर तख्ती दिखा दी जिस पर लिखा था मानवता के आधार पर अपराधियों के वफादार हो गए, देश के प्रधानमंत्री अब भ्रष्टाचारियों के चौकीदार हो गए।

कांग्रेस उग्र हो गई है। राहुल गांधी ने कहा कि हमे संसद के बाहर फेंक दें, हमारे लिए पूरा देश पड़ा है, लेकिन इस्तीफे की मांग से पीछे नहीं हटेंगे। निलंबन के कारण कई विपक्षी दल कांग्रेस के साथ गए हैं। इस्तीफे की मांग से किनारा करने वाली समाजवादी पार्टी के सांसद मुलायम सिंह यादव ने स्पीकर से निलंबन वापस लेने की गुज़ारिश की और बाहर आकर कांग्रेस का साथ भी दिया।

बाद में खबर आई कि मुलायम सिंह यादव बीच का रास्ता निकालने का प्रयास करने लगे। इसी सत्र में कांग्रेस के सांसद अधीर रंजन चौधरी को एक दिन के लिए निलंबित किया गया था। जब वे स्पीकर की मेज़ तक जा पहुंचे तब सरकार इनके खिलाफ कार्रवाई ले आई, जिस पर मतदान होते होते रह गया। 25 सांसदों के निलंबन के लिए सरकार प्रस्ताव लेकर नहीं आई थी। मंगलवार को बीजेपी संसदीय दल की बैठक में कांग्रेस की रणनीति के ख़िलाफ प्रस्ताव पास किया गया।

सीपीएम के राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी ने कहा है कि इस मामले में स्पीकर ने भेदभाव किया है। सरकार संसद का माखौल उड़ा रही है। इंडियन एक्सप्रेस के आईडिया एक्सचेंज में स्पीकर महाजन ने कहा है कि 25 सांसदों का निलंबन भलाई के लिए किया गया है। जब पूछा गया कि बीजेपी भी तो विपक्ष में रहते हुए यही रणनीति अपनाती थी तो स्पीकर ने कहा कि सही है कि पिछली संसद में बीजेपी ने किया, लेकिन उससे पहले कांग्रेस ने किया था।

मेरे पास रिकॉर्ड है। मेरे बेटे ने करा, तुम्हारे बेटे ने करा, अब हमारे पोते पोती भी करें क्या... क्या यही चलता रहेगा ये मेरा सवाल है। आपने एक ग़लत परंपरा शुरू की इसे कहीं न कहीं तो खत्म करना पड़ेगा। वाजपेयी सरकार के समय तहलका के स्टिंग ऑपरेशन के बाद कांग्रेस ने दो हफ्ते तक संसद नहीं चलने दी थी।

तब तो बजट के पास होने पर संकट आ गया था। कांग्रेस गुजरात मॉडल का ज़िक्र कर रही है। हमारे सहयोगी राजीव पाठक ने बताया कि पिछले दस साल में गुजरात में प्राय सभी बजट सत्र में विरोधी पक्ष के विधायकों को निलंबित किया गया है। कुल मिला कर दस साल में 259 बार विधायकों को निलंबित किया गया है।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

कायदे से अन्य विधानसभाओं में निलंबन का रिकॉर्ड सामने रखना चाहिए था। जैसे 2010 में बिहार विधानसभा से 67 विधायकों को बचे हुए पूरे सत्र के लिए निलंबित किया गया था। पर इज़ इक्वल टू से इस सवाल पर क्या फर्क पड़ जाता कि निलंबन से क्या हासिल होता है और वापस ले लेने से क्या हासिल होता है। हंगामा न हो रास्ता क्या है।