रेलवे में दस लाख नौकरियों का दावा कब पूरा होगा ?

देश के ढाई करोड़ नौजवान 31 मार्च से इंतज़ार कर रहे हैं कि रेलवे के ग्रुप-डी और ग्रुप-सी की जो परीक्षा का फॉर्म भरा था वो परीक्षा कब होगी.

रेलवे में दस लाख नौकरियों का दावा कब पूरा होगा ?

भारत का नौजवान जिन सवालों पर नेताओं को बोलते सुनना चाहता है, नेता पूरी कोशिश में लगे हैं कि उन सवालों पर न बोला जाए. टीवी के ज़रिए सवालों से देश को बहकाकर वहां ले जाया जा रहा है जहां उस बहस का कोई मतलब नहीं मगर उस बहस में चंद मिनटों का रोमांच ज़रूर है. लम्हों को धोखा देकर पीढ़ियों को बर्बाद किया जा रहा है. अच्छी बात यही है कि भारत के नौजवानों ने भी कसम खा ली है कि राजनीति के इस खेल को नहीं समझना है वरना इंदौर की डॉक्टर स्मृति लहरपुरे ने फीस के जिस दबाव में आत्महत्या की है, उस सवाल पर नेताओं को फर्क भले न पड़े, नौजवानों का सर शर्म से झुक जाना चाहिए था. अच्छी बात है कि कुछ मेडिकल संस्थानों के छात्रों ने स्मृति लहरपुरे के समर्थन में प्रदर्शन किया है. देश के ढाई करोड़ नौजवान 31 मार्च से इंतज़ार कर रहे हैं कि रेलवे के ग्रुप-डी और ग्रुप-सी की जो परीक्षा का फॉर्म भरा था वो परीक्षा कब होगी.

31 मार्च फॉर्म भरने की अंतिम तारीख थी. फॉर्म भरने के बाद अप्रैल बीत गया, मई बीत गया, जून बीत गया मगर परीक्षा की तारीख का एलान नहीं हुआ है. रेल मंत्री ने 13 अप्रैल से लेकर आज तक रेलवे के जितनी भी उपलब्धियों पर ट्वीट किया है उसमें से एक भी ट्वीट इस बात पर नहीं है कि रेलवे की ग्रुप-सी और डी की परीक्षा कब होगी और चार साल में रेलवे ने कितने लोगों को नौकरी दी. 5 अक्तूबर 2017 के इंडियन एक्स्प्रेस में, लाइव मिंट में, बिजनेस स्टैंडर्ड में रेल मंत्री पीयूष गोयल का बयान छपा है कि रेल मंत्रालय के इकोसिस्टम में दल लाख लोगों को नौकरियां दी जा सकती हैं.

16 फरवरी को रेल मंत्री ने ट्वीट किया कि रेलवे में नौकरी की सूनामी आ गई है. रेलवे में भर्ती का महाअभियान शुरू हो गया है. अब आप बताइये 16 फरवरी से 26 जून आ गया उस महाअभियान का ये नतीजा है कि ग्रुप-सी और डी के 90,000 से अधिक पदों के लिए परीक्षा की तारीख का पता नहीं है. अगर पांच महीने में परीक्षा की तारीख का एलान नहीं हो सका है तो राम ही बता सकते हैं कि परीक्षा कब पूरी होगी और कृष्ण ही बता सकते हैं कि रिज़ल्ट कब निकलेगा और विष्णु ही बता सकते हैं कि नियुक्ति पत्र कब मिलेगा.

पीयूष गोयल किस इकोसिस्टम में दस साल नौकरियां पैदा करने की बात कर रहे हैं. अगर छह महीने में या एक साल में 90,000 नौकरी की प्रक्रिया पूरी होती नहीं दिख रही है तो 10 लाख नौकरियां कब देंगे. अगर तारीखों का एलान भी प्राइम टाइम के दबाव में होगा तो यह सरकार के लिए अच्छा नही है और प्राइम टाइम में ज़िक्र किया है इसलिए तारीखों का एलान नहीं करेंगे यह देश के नौजवानों के लिए अच्छा नहीं है. आप उन माता पिता से पूछिए जिनके बच्चे रेलवे की परीक्षा का फॉर्म भरकर रोज़ अखबार खोलते हैं कि आज शायद परीक्षा की तारीख निकली होगी. 13 अप्रैल से रेल मंत्री के ट्वीट देख रहा था, उनमें रेलवे की कई उपलब्धियों का ज़िक्र है, मगर नौकरी का ज़िक्र ही नहीं है, जबकि रेलवे की पहचान और उसका एक काम रोज़गार का सृजन भी करना है. 

बिहार के आरा ज़िले में ये नौजवान दिन रात परीक्षा की तैयारी में व्यस्त हैं. इनकी तैयारी की ईमानदारी देखिए, एक-एक पल मुड़ी गड़ाए हुए तैयारी में लगा रहे हैं. कई तो ऐसे हैं जो चार साल से तैयारी कर रहे हैं मगर न तो वैकेंसी आई और न ही नौकरी मिली. इस बार ग्रुप-सी और डी का फॉर्म भरने के बाद उम्मीद बढ़ी है तो तारीख का पता नहीं है. अगर ऐसा ही चला तो इस साल इस परीक्षा की प्रक्रिया पूरी होने और नियुक्ति पत्र मिलने की उम्मीद कम दिख रही है. ये तस्वीर इसलिए दिखा रहा हूं ताकि आपको ये न लगे कि भारत के बेरोज़गार नौजवान केवल हिन्दू मुस्लिम के डिबेट में फंसे हैं, बहुत हैं जो नौकरी की चिन्ता में दधिची की तरह हड्डी गला रहे हैं.

हमने रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड की वेबसाइट पर जाकर देखा कि ग्रुप-सी और डी की परीक्षा कब होगी तो इस बारे में एक नोटिस मिला जो 31 मई को जारी हुई है. इसमें कहा गया है कि अप्रत्याशित रूप से 2 करोड़ 37 लाख आवेदकों के कारण फॉर्म के स्क्रूटनी की प्रक्रिया चल रही है. 31 मई के बाद से इससे संबिधित कोई नोटिस नहीं है. छात्र आए दिन पूछते रहते हैं कि हमारी परीक्षा कब होगी ज़रा प्राइम टाइम में पूछ दीजिए. हमने ढाई करोड़ नौजवानों की तरफ से पूछ दिया कि परीक्षा कब होगी.

फरवरी में रेल मंत्री ने कहा था कि रेलवे में सूनामी आ गई है. क्या आपको पता है कि 6 मार्च 2018 की रेलवे की संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रुप-सी और डी के 2 लाख 20 हज़ार से अधिक पद ख़ाली हैं. वैकेंसी निकली 90,000. आधे से भी कम. 21 मई को रेल मंत्री के एक ट्वीट से पता चलता है कि रेलवे में सिपाही और सब इस्पेक्टर के लिए 9000 पदों की वैकेंसी निकली है. परीक्षा नहीं हो रही है, केवल फॉर्म निकल रहे हैं. 

5 अप्रैल को ट्वीट करते हैं कि महाराष्ट्र के लातुर में रेल कोच की नई फैक्ट्री बन रही है. इस प्रोजेक्ट से 30,000 नौकरियां निर्मित होंगी. कब पूरा होगा और कब मिलेगी किसी को पता नहीं मगर 30,000 का डेटा आपको दे दिया गया है. क्या कोई ऐसी रेल कोच की फैक्ट्री है अभी भारत में जहां से 30,000 नौकरियां निर्मित हो रही हैं. ये पता चले तो 5 अप्रैल के ट्वीट को और बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. 

29 मार्च को अभी तक निकली भर्तियों पर उनका आखिरी ट्वीट है कि अभी तक 1 लाख 10 हज़ार बहाली निकल चुकी है. जो निकली है उसकी परीक्षा कब होगी, इस पर भी रेल मंत्री को लगातार ट्वीट करते रहना चाहिए ताकि ढाई करोड़ नौजवानों को पता चले कि इम्तेहान होगा और नौकरी भी मिलेगी. खैर नौकरी खोजने वाले जानते हैं कि नेता नहीं बोलेंगे और उनके पास बोलने के लिए कुछ नहीं है इसलिए वे नेताओं की रामायण छोड़कर अपनी ज़िंदगी का महाभारत लड़ने के लिए पलायन कर रहे हैं. पलायन रोकने के दावे वाले चुनावी पोस्टरों फट चुके हैं और सरकार ने अभी तक एक भी डेटा नहीं दिया है या ट्वीट किया है कि कितने लोगों का पलायन रूका है.

ये स्टिल तस्वीरें आज की नहीं हैं, 13 से 15 जून के बीच अलग-अलग लोगों द्वारा ली गई हैं, जब बिहार के सहरसा से पलायन करने वालों की भीड़ रेलवे स्टेशन पहुंच गई. पांच दिनों के भीतर सहरसा रेलवे की कमाई दो करोड़ पार कर गई. इस दौरान बिहार के कई रेलवे स्टेशनों से हज़ारों की संख्या में मज़दूरों ने उन राज्यों के लिए पलायन किया जहां काम मिलने की उम्मीद थी. अकेले सहरसा स्टेशन पर 80,000 से अधिक टिकट बिक गया. इन्हीं पांच दिनों में पटना रेलवे स्टेशन का राजस्व 1 करोड़ 88 लाख था और सहरसा का राजस्व दो करोड़ से अधिक हो गया. 13, 14, 15, 16 और 17 जून को सहरसा स्टेशन से हर दिन करीब 40 हज़ार से अधिक टिकट बिके हैं. ये सारे मज़दूर हरियाणा और पंजाब की ओर रवाना हुए हैं जहां धान रोपने के लिए इनकी ज़रूरत है. 

कम से कम हरियाणा और पंजाब को इन मज़दूरों का शुक्रिया अदा करना चाहिए. उन्होंने न सिर्फ सहरसा स्टेशन को राजस्व दिया, बल्कि इन दो राज्यों को भी अपनी मेहनत से समृद्ध करने जा रहे हैं. क्या आप किसी नेता को जानते हैं जो इस पलायन को रोक सकता है. मुझे बताइयेगा. जब ऐसी भीड़ नहीं होती है तब सहरसा रेलवे स्टेशन का औसत राजस्व 15 से 16 लाख रुपये का ही होता है मगर 13 से 17 जून के बीच दो करोड़ पहुंच गया. बेशक वहां के अधिकारियों ने स्टेशन का प्रबंधन बेहतर किया होगा तभी इतने यात्रियों के आने के बाद भी कोई हंगामा नहीं हुआ या फिर कोई दुर्घटना नहीं हुई. यही नहीं हर साल जून के महीने में सहरसा से पलायन करने वाले यात्रियों की संख्या बढ़ जाती है. हमारे सहयोगी कन्हैया सहरसा रेलवे स्टेशन गए ताकि वहां से जाने वाले मजदूरों से बात कर सकें, उनका हाल जान सकें. इसी बहाने आपको रोज़गार पर नए सिरे से सोचने और देखने का मौका भी मिल जाए. 

26 जून की सुबह सहरसा स्टेशन का बाहर से ये हाल देखिए. वैसे भारत के स्टेशन ऐसे ही होते हैं मगर बिहार से बाहर जाने वाली रेलगाड़ी के इंतज़ार में ज़मीन पर लोग सो रहे हैं. कोई घर से बनाकर खाना लाया है जो खा रहा है. रेल मंत्री ने कहा है कि रिजर्व क्लास वाले यात्रियों को संडे के दिन भोजन के समय जब गाड़ी लेट होगी तो खाना मिलेगा. ऐसे ग़रीब मज़दूरों के लिए खाने का इंतज़ाम पहले होना चाहिए. इनका खाना तो गाड़ी में चढ़ने से पहले ही ख़त्म हो जाता है. स्टेशन के अंदर भी यही हाल है. जो जहां पड़ा हुआ है वहीं निढाल है. ये जिस जनसेवा जननायक एक्सप्रेस से जाते हैं उसका रिकॉर्ड भी जान लीजिए. नेशनल ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम के अनुसार 27 नवंबर के बाद इस ट्रेन की सहरसा से चलने की औसत देरी चार घंटे है और अमृतसर पहुंचने की औसत देरी 11 घंटे 33 मिनट है. टिकट काउंटर पर जनरल की टिकट लेते हुए लोगों को आप देख सकते हैं. यहां की भीड़ बता रही है कि खिड़की तक पहुंचने में कितना वक्त लगता होगा. उसके बाद शुरू होता है यार्ड में खड़ी इस लंबी गाड़ी में सीट लेना. सोचिए यहां 13 से 17 जून के बीच क्या हाल रहा होगा. मीडिया और अर्थशास्त्रियों ने देश को समझने देखने का कितना बड़ा मौका खो दिया. 

अब जब पलायन हो रहा है तब क्या कोई राजनेता बोल रहा है, ये आपको देखना है. अगर इस वक्त चुनाव होता तो हर पोस्टर में होता कि अब नहीं होगा पलायन. बस आ जाए मेरी सरकार. जब रेल अधिकारी कहते हैं कि हर साल जून के महीने में यात्रियों की वृद्धि होती है. हर साल इसी तरह राजस्व बढ़ जाता है. हमारी रेल सीरीज़ में हमारी कोशिश है कि एक तरह से आप दर्शकों और रेल मंत्रालय को फीडबैक चला जाए, अगर रेल मंत्रालय को लगता है कि कुछ बातों का जवाब देना ज़रूरी है तो उनके अधिकारी हमें किसी भी रुप में बयान दे सकते हैं हम अवश्य चलाएंगे. 23 जून को प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट किया है कि रेलवे हर महीने 80 लाख लोगों को 700 स्टेशनों पर वाई फाई की सुविधा दे रहा है. एक अखबार में छपी खबर का लिंक देकर ट्वीट किया है. ज़ाहिर है यह भी एक कामयाबी है. 80 लाख लोगों को वाई फाई सुविधा हर महीने मिल रही है. सामान्य बात नहीं है.

एक महीने में 80 लाख लोगों को भारतीय रेल वाई फाई की सुविधा दे रही है. आगे बढ़ने से पहले इसे याद रखें. ज़ाहिर है जब प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया है तो बड़ी बात होगी. अब आप इसी कामयाबी को इस नज़र से देखिए. 
हर दिन 2 करोड़ 30 लाख़ रेलयात्री सफर करते हैं. महीने में करीब 69 करोड़ सफर करते हैं. महीने में 80 लाख यात्री वाई फाई का इस्तमाल करते हैं. 69 करोड़ यात्री का 80 लाख कितना प्रतिशत हुआ. 1 प्रतिशत से कुछ अधिक यात्री वाई फाई का इस्तमाल करते हैं. आप कह सकते हैं कि 700 स्टेशनों पर यह सुविधा है वैसे तो कई हज़ार स्टेशन हैं, लेकिन यात्री की संख्या के हिसाब से देखें तो यह कामयाबी कुछ भी नहीं है. 

चार साल से डिजिटल इंडिया पर ज़ोर है और प्रधानमंत्री एक प्रतिशत रेल यात्री को वाई फाई की सुविधा देकर ट्वीट करें तो फिर इसका जवाब रेल मंत्री पीयूष गोयल को देना चाहिए कि चार साल में वाई फाई देने पर कितना खर्च आया. क्या यह सुविधा जनरल बोगी के यात्रियों के लिए है, बिना एसी कोच के यात्रियों को भी है. जो भी है कई सवाल हो सकते हैं रेल मंत्री को जवाब देना ही चाहिए कि आखिर क्या वजह है कि आप चार साल में सिर्फ एक प्रतिशत यात्रियों को वाई फाई की सुविधा दे पाए. कहीं आपने ये तो नहीं सोचा था कि कोई पत्रकार हिसाब ही नहीं लगाएगा, 700 स्टेशनों पर 80 लाख यात्रियो को वाई फाई देने की खबर को ही बड़ी कामयाबी मान लेगा. 

अब आप देखिए कि 13 अप्रैल से लेकर जून महीने तक रेल मंत्री ने रेलवे की कामयाबियों के कई ट्वीट किए हैं. इनमें से एक भी ट्वीट नौकरी को लेकर नहीं है, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि उन्होंने सुरक्षा के सवाल को महत्वपूर्ण बना दिया है. उनके हर ट्वीट में या हर दूसरे ट्वीट में सुरक्षा का ज़िक्र रहता है. जो कि अच्छी बात है. वे अपने ट्वीट में कई प्रकार की उपलब्धियां बताते हैं मगर ये कैसे हो गया कि इतनी उपलब्धियों के बाद भी ट्रेनों का लेट चलना जारी है. आखिर ट्रैक निर्माण पर ध्यान क्यों नहीं गया. जब इसी की वजह से रेल गाड़ियां चालीस-चालीस घंटे लेट रही हैं तब. 

12598 छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस गोरखपुर जनसाधारण एक्सप्रेस 23 जून को 47 घंटे 54 मिनट की देरी से गोरखपुर पहुंची है. 15706 चंपारण हमसफर एक्सप्रेस 24 जून को 21 घंटे 9 मिनट की देरी से कटिहार पहुंची है. 15654 जम्मूतवी गुवाहाटी एक्सप्रेस 25 जून को 21 घंटे 23 मिनट की देरी से गुवाहाटी पहुंची है. 14258 काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस 23 जून को 17 घंटे 55 मिनट लेट थी. जो ट्रेन 48 घंटे की देरी से चलती हो उस पर किसी को डाक्यूमेंट्री बनानी चाहिए. भागलपुर गरीब रथ का नाम तो टॉर्चर रथ कर देना चाहिए. रेल मंत्री ने कहा है कि 15 अगस्त से रेलवे की नई टाइम टेबल आएगी. इसके लिए विचार-विमर्श चल रहा है. हमारे सहयोगी परिमल ने बताया है कि एक नए फॉर्मूले पर विचार चल रहा है जिसके तहत एक जैसी स्पीड वाली ट्रेनें ग्रुप में छूटेंगी. 15-20 मिनट के अंतराल पर छूटेंगी ट्रेनें. कई ट्रेनों की टाइमिंग में बदलाव होगा. बड़े स्टेशनों से पहले ट्रेनें टर्मिनेट की जाएंगी, ताकि स्टेशन पर ट्रेनों की भीड़ न बढ़े. दोबारा खुलने से पहले भी ट्रेनों का इस्तेमाल होगा. बीच के समय में छोटी दूरी के लिए भी इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि स्टेशन, यार्ड में ट्रेनों की भीड़ न हो

उम्मीद है रेलवे के इस प्रयास का असर लेट चलने वाली ट्रेनों पर दिखेगा. 26 अक्तूबर 2017 के फाइनेंशियल एक्सप्रेस में रेल मंत्री का बयान छपा था कि एक लाख करोड़ का रेलवे सुरक्षा फंड है जिसे पांच साल की जगह दो साल में खर्च किया जाएगा. इस बयान से तो लगता है कि एक लाख करोड़ का फंड बन गया है. ऐसा ही बयान वे 29 मई के क्वोरा सोशल साइट पर लिखते है कि एक लाख करोड़ का सुरक्षा फंड बनाया गया है जिसमें से 16000 करोड़ खर्च हो गया है. रेल मंत्री ही बता सकते हैं कि एक लाख करोड़ का सुरक्षा फंड कहां से बन गया जिसके लिए रेलवे को खुद से 95000 करोड़ जुटाने थे. इस बार अलग से रेल बजट नहीं था, आम बजट का ही हिस्सा था. उसका अध्ययन करते हुए 12 मार्च 2018 को पीआरएस लेजिस्लेटिव ने एक ब्लॉग लिखा है, 2017 में रेल संरक्षा फंड बनाया गया, जिसमें हर साल 20,000 करोड़ जमा करने की बात थी. सरकार को अपनी तरफ से 1000 करोड़ देना था और बाकी रेलवे को जुटाने थे. 2017-18 के रेल बजट से पता चलता है कि सरकार ने इस वित्त वर्ष में एक पैसा नहीं दिया. 2018-19 के बजट पत्र से पता चलता है कि सरकार ने 5000 करोड़ दिए. 

18 जून के प्रेस कांफ्रेंस में रेल मंत्री कह रहे हैं कि सुरक्षा के लिए रेल बजट में कोई बजट नहीं है. असीमित बजट है. फिर रेल बजट में सुरक्षा फंड के लिए एक लाख करोड़ जुटाने के लिए जो लिखा है वो क्या है. जिसके लिए सरकार ने मात्र 5000 करोड़ दिए हैं वो क्या है. उसमें तो नही लिखा है कि अनलिमिटेड बजट है. क्या बजट का कोई महत्व नहीं है. क्या प्रधानमंत्री के पास कोई अलग से फंड है? बजट पत्र में लिखा है कि हर साल 20,000 करोड़ जुटाया जाएगा, रेलवे अपने संसाधनों से 95000 करोड़ जुटाएगी. क्या इतना पैसा प्रधानमंत्री अपनी तरफ से दे देंगे. इससे पहले तो रेल मंत्री कह रहे थे कि पांच साल का बजट दो साल में खर्च करेंगे. तब तो अनलिमिटेड बजट की बात नहीं कही. 2017-18 में 73 दुर्घटनाएं हुई हैं. जब रेल मंत्री यह कहने लगते हैं कि ट्रेन लेट चल रही हैं, क्योंकि रफ्तार धीमी कर दी गई है और दुर्घटनाएं कम हो गई हैं तो वो वे अपनी ही कामयाबी का रंग फीका कर रहे हैं. सारी ट्रेनें रोक दीजिए, दुर्घटना होगी ही नहीं. 2016 में रेल दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों की संख्या दस साल में सबसे अधिक थी. उसके बाद इतना सुधार हुआ है तो तारीफ होनी चाहिए मगर क्या दुर्घटनाओं में अचानक कमी आई है? स्टेंडिंग कमेटी और रेल बोर्ड के दस्तावेज़ को देखने के बाद पता चलता है कि लगातार रेल दुर्घटनाओं में कमी आ रही है. 

2000-01 = 473
2004-05 = 234
2008-09 = 177
2013-14 = 118
2014-15 = 135
2015-16 = 107
2016-17 = 104
2017-18 = 73


आंकड़ों के विश्लेषण में त्रुटी हो सकती है अगर कोई सुधार बताएगा तो हम ज़रूर करेंगे. हमारा इरादा कुछ और नहीं बल्कि बस इतना है कि रेल यात्रियों की परेशानी कम हो और आंकड़ों को देखना और समझना हमीं ही नहीं आप भी ठीक से सीख जाएं. इन सब आंकड़ों को समझने देखने में शिवांक हमारी मदद कर रहे हैं. हम उनका शुक्रिया अदा करना चाहते हैं.


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