सरकारी नौकरियां आख़िर हैं कहां - भाग 9

आप कोचिंग में एडमिशन ले चुके होते हैं, इस उम्मीद में कि इस साल भर्ती निकलेगी और यह ख़बर आ जाए कि 5 लाख पद समाप्त होंगे, तो दिल पर क्या बीतेगी.

सरकारी नौकरियां आख़िर हैं कहां - भाग 9

नौकरियों पर हमारी सीरीज़ का यह 9वां एपिसोड है. इन नौजवानों की ज़िंदगी में पढ़ने के अलावा कोई और वक्त नहीं होता है. सुबह उठना और शाम तक कोचिंग में रहना और फिर तैयारी में लग जाना. इसके बीच जैसे ही ख़बर आई कि सरकार 5 साल से खाली पड़े पदों को ख़त्म कर देगी, नौजवानों में बेचैनी बढ़ गई है. आप कोचिंग में एडमिशन ले चुके होते हैं, इस उम्मीद में कि इस साल भर्ती निकलेगी और यह ख़बर आ जाए कि 5 लाख पद समाप्त होंगे, तो दिल पर क्या बीतेगी. अगर इसी फॉर्मूले पर राज्य सरकारें चल पड़ी तो भारत के नौजवानों के लिए सरकारी नौकरियों के रास्ते पहले से कहीं ज़्यादा संकरे हो जाएंगे. 

लिहाज़ा नौजवान रात भर नौकरियां ख़त्म करने के आदेश का नोटिफिकेशन अंडर लाइन कर भेजने लगे. उन्होंने वहां घेरा बना दिया जहां मोस्ट अर्जेंट लिखा था. गाली देने वालों ने मेरा नंबर जन जन तक पहुंचा दिया है. वहाट्स अप पर छात्र लिखने लगे कि जिस वक्त में रोज़गार बड़ा मसला हो उसी वक्त में ख़ाली पदों को ख़त्म करने का आदेश मोस्ट अर्जेंट यानी अति आवश्यक रूप में आए तो क्या समझा जाए. आपने जहां ये यह ख़बर पढ़ी है, वापस दोबारा उस अखबार को उठा कर देखिए, देखिए कि आपकी नौकरी से संबंधित ख़बरों को अख़ाबर ने कहां और कैसे जगह दी है, जिस अखबार के लिए आप बिना सोचे कई साल से महीने का चार सौ पांच सौ दिए जा रहे हैं, वो आपकी नौकरी जाने की ख़बर को छिपाने के लिए कितना सोचता है और बताने का कितना प्रयास करता है.

वित्त मंत्रालय ने 16 जनवरी को अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों को आदेश जारी किया है कि जो भी पद पांच साल से लगातार ख़ाली पड़े हैं उन्हें ख़त्म कर दिया जाए. नेता इंकार करेंगे, पत्रकार मुंह मोड़ लेंगे, लेकिन कोचिंग सेंटर से लेकर हॉस्टलों में जाकर पता कीजिए, आज वे इसी ख़बर की चर्चा कर रहे हैं और उनका मन उदास हो गया है.

नौकरियों की सीरीज़ में हमने यही जाना कि किस तरह तीन-तीन साल यहां तक सात-सात साल लग जाते हैं भर्तियां पूरी होने में. इस हिसाब से तो न जाने कितने पद समाप्त हो जाएंगे. यह देरी चयन आयोगों की वजह से होती है. मंत्रालयों के फैसले के कारण से होती है. अगर-समय पर पर्याप्त संख्या में नौकरियां नहीं निकलेंगी, प्रक्रिया पूरी नहीं होंगी तो इसमें भारत के नौजवानों की क्या ग़लती है. जिस दिन यानी 16 जनवरी को वित्त मंत्रलाय ने पदों को समाप्त करने वाला आदेश जारी किया था, उस दिन वित्त मंत्रालय के हवाले से एक दूसरी खबर मीडिया में आई थी. यही कि 1 मार्च 2016 तक केंद सरकार के विभागों में 4 लाख से अधिक पद खाली पड़े थे. हमारे सहयोगी कर्मवीर और अमितेश दिल्ली के बत्रा सिनेमा गएं, जहां कोचिंग संस्थानों की भरमार है. उन नौजवानों से पूछा कि ख़ाली पदों को समाप्त किए जाने की ख़बर पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है.

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जिस व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी में सांप्रदायिक ख़बरें घूमा करती हैं उसी में उनका एक मैसेज मिला जो पढ़ कर सुनाना चाहता हूं. हमने इस पत्र को थोड़ा संपादित कर दिया है फिर भी कुछ हिस्सा इस तरह से घूम रहा है. माननीय मुख्यमंत्री महोदय, हम युवाओं की क्या ग़लती है, जिसका खमियाज़ा युवा प्रतियोगी झेल रहा है. हम बात कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश पुलिस कंप्यूटर ऑपरेटर की जिसकी भर्ती आपके मुख्यमंत्री बनने के तीन महीने बाद निकली. जब परीक्षा हुई तो सबको घर से 150 किमी दूर सेंटर दिया गया. हमने इधर-उधर से पैसे मांग कर परीक्षा दी, हमने टाइपिंग की तैयारी शुरू कर दी. फिर चार महीने बाद 29 जनवरी 2018 को पुलिस बोर्ड ने भर्ती की सारी प्रक्रिया ही रद्द कर दी. अब इसमें प्रतियोगी की क्या ग़लती है जिसका वहन वो करे. परीक्षा कराई विभाग ने, ग़लतियां की विभाग ने, फिर उत्तरमाला में भी उत्तर दिए ग़लत तो विभाग को इसका दंड मिलना चाहिए, प्रतियोगी क्यों झेले. हमने 400 रु में परीक्षा फॉर्म भरा. 600 रु परीक्षा देने जाने का किराया पड़ा. 1000 रु प्रति माह देकर तीन महीने टाइपिंग सीखी. साइबर कैफे पर 2 बार रिज़ल्ट देखने, फॉर्म भरने, उत्तर माला देखने में 500 रु खर्च किए. इस तरह हमारे कुल 2500 रु ख़र्च हो गए. हमारा तो पैसा भी गया और वक्त भी.

अचानक आए इस फैसले से ये नौजवान वाकई हिल गए हैं. इनके सपने टूट गए हैं. इनके साथ ऐसे कैसे होने दिया जा सकता है. यही नहीं पिछले एपिसोड में हमने 12460 बीटीसी शिक्षकों की हालत दिखाई थी, वे भी तमाम योग्यताओं के बाद भी नौकरी के लिए मारे मारे फिर रहे हैं. भले बेरोज़गारी का मुद्दा राजनीति के लिए महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन इन नौजवानों के लिए रोज़गार भी ज़रूरी नहीं है. आज इस देश में बेरोज़गारों ने अगर दूसरे बेरोज़गारों से हाथ मिलाया होता तो उनकी ये हालत न होती. अंग्रेज़ी के बड़े-बड़े एंकर उनके पीछे भाग रहे होते. बीटीसी शिक्षकों को खुद से पूछना चाहिए कि क्या वे कंप्यूटर ऑपरेटर से हमदर्दी रखते हैं, क्या पुलिस सेवा के लिए बैचैन युवाओं को आत्महत्या कर रहे शिक्षा मित्रों से हमदर्दी है. इसी सवाल में इस बात का जवाब है कि आप बेरोज़गार नौजवानों की ऐसी हालत क्यों हो गई है. 
सेंट्रल बैंक आफ इंडिया के लिए प्रोबेशनरी ऑफिसर का इम्तहान पास कर चुके 50 जवान रोज़ फोन करते हैं उनकी आवाज़ में नौकरी खुशी चली गई है. प्रतियोगी परीक्षा पास करने का गौरव चला गया है. वे लाचार की तरह एक एक दिन गिन रहे हैं. 

1 अप्रैल 2017 को इनका रिज़ल्ट आया था, अभी तक इनकी ज्वाइनिंग का पता नहीं. 300 पीओ बने थे. पहले अगस्त में और फिर इस जनवरी में 250 की ज्वाइनिंग हो गई. मगर 50 बच गए हैं. अगर 31 मार्च तक ज्वाइनिंग नहीं हुई तो उनका स्कोर रद्द हो जाएगा. हो सकता है कि 31 मार्च तक हो जाए, लेकिन इस तरह की आशंका में उनका जीना क्या ठीक है, क्या कोई एक लेटर भेज कर नहीं बता सकता कि हम आपको इतनी तारीख तक बुलाएंगे. 2 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र से एक ख़बर छपी थी. न्यू इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स आफ इंडिआ, हिंदुस्तान टाइम्स में. ख़बर थी कि महाराष्ट्र सरकार अपने वर्कफोर्स में यानी नौकरियों में 30 प्रतिशत की कटौती करने जा रही है. इतनी बड़ी ख़बर सिर्फ और सिर्फ गोदी मीडिया के दौर में छिप सकती थी. टीवी के एंकर इसीलिए एक फिल्म में आपको उलझा कर रखे हुए थे. सब ड्रामा था और आप उस ड्रामे में फंसाए गए. अब एंकर आपको अगले दस दिन तक मिडिल क्लास की टैक्स माफी की खबरों और सपनों में उलझा कर रखेंगे मगर आपकी नौकरी की बात नहीं करेंगे. 

2 दिसंबर 2017 की खबर ये थी कि महाराष्ट्र सरकार के वित्त मंत्रालय ने तमाम विभागों को नोटिस भेजा है कि वे 30 प्रतिशत कटौती के साथ अपनी योजना सरकार को सौंपे. सरकार को सातवें वेतन आयोग का भार उठाने में मुश्किलें आ रही हैं. इसलिए कर्मचारियों की संख्या कम की जा रही है. वेतन आयोग के साथ साथ डिजिटाइजेशन, कंप्यूटरीकरण और आउटसोर्स यानी ठेके पर काम देने के कारण नौकरियों की अब ज़रूरत नहीं है. महाराष्ट्र में 19 लाख कर्मचारी हैं. अब इसमें साढ़े पांच से छह लाख कमी जाएगी. इसके बाद भी सरकार कहती है कि यह जॉब कट नहीं है. 30 प्रतिशत नौकरी कम हो जाए, इस पर हंगामा तक नहीं हुआ. 

हमारे नौजवानों की पोलिटिकल क्वालिटी वाकई बहुत ख़राब हो चुकी है. वे सिर्फ हिन्दू मुस्लिम टॉपिक में एक्सेल यानी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. नौकरी के टॉपिक पर लाचार नज़र आते हैं. एक पैटर्न तो हुआ कि भर्ती निकालो, एक दो साल उम्मीद बेचो, इम्तहान में उलझाए रखो और फिर इम्तहान रद्द कर दो, तब तक वोट ले लो. दूसरा पैटर्न यह लग रहा है कि सरकारी पदों को समाप्त किया जाए. क्या नौजवानों को यह सब पता है, जब वे कोचिंग के लिए लाखों फूंक रहे हैं, अपनी जवानी झोंकने का फैसला कर रहे होते हैं तो क्या उन्हें पता होता है कि भर्ती कम होगी, नौकरी नहीं निकलेगी. 29 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमिशन ने मात्र 69 पदों की भर्ती निकाली है, जबकि आबादी कितनी है महाराष्ट्र की, 9 करोड़ से ज्यादा. हमने दिल्ली में कोचिंग करने आए कुछ नौजवानों से बात की वे सरकारी के पीछे क्यों जीवन बर्बाद कर रहे हैं.

स्टाफ सलेक्शन कमिशन ने दो-दो बार जवाब देकर कहा है कि 28 फरवरी तक एसएससी सीएचएसएल 2015 की परीक्षा में जो पास हो चुके हैं, उनकी अलग-अलग विभागों में ज्वाइनिंग हो जाएगी. वैसे ज्वाइनिंग कराने का काम अलग-अलग मंत्रालयों का है. इसके बाद छात्र थोड़ी देर के लिए खुश हुए और लगे विभागों को फोन करने. इलेक्ट्रॉनिक मंत्रालय, राजस्व विभाग, कृषि मंत्रालय, पर्यटन रक्षा मंत्रालाय सब जगह ज्वाइनिंग होनी है मगर मामला अटका हुआ है. वैसे पोस्टल विभाग से अच्छी ख़बर मिलती दिख रही है. छात्रों से ही हमें एक सर्कुलर मिला जिसे कंफर्म करने में थोड़ा समय लग गया. किसी ने ऑन रिकॉर्ड तो नहीं बोला, लेकिन दो-दो पोस्ट मास्टर जनरल ने ऑफ रिकॉर्ड इसकी पुष्टि कर दी है. 
पोस्टल विभाग के कार्मिक विभाग के सहायक महानिदेशक सत्य नारायण दास के नाम से एक सर्कुलर जारी हुआ है इस सर्कुलर में कहा गया है कि पोस्टल एसिस्टेंट / सॉटिंग एसिस्टेंट जो सीएचएसएल 2015 के जरिए नियुक्ति हुए थे उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया 28 फरवरी 2018 तक पूरी कर ली जाए. इसमें यह भी लिखा है कि हमने 12 जनवरी 2018 को भेजे गए पत्र में ज्वाइनिंग की प्रक्रिया रोकने के लिए कहा था. अब केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने भी मंज़ूरी दे दी है. इसलिए ज्वाइनिंग की प्रक्रिया को शुरू कर दीजिए और 28 फरवरी तक सारी प्रक्रिया पूरी कर ली जाए. गुज़ारिश की जाती है कि इस पर तेज़ी से काम हो. इस पत्र की तारीख 29 जनवरी है. 

यह पत्र भारत के सभी 13 पोस्टल सर्किल को भेजा गया है. अगर 28 फरवरी तक इनकी ज्वाइनिंग हो जाती है तो यह कम बड़ी बात नहीं है. 9 दिन के प्राइम टाइम से अगर 28 फरवरी तक 5205 नौजवानों की ज्वाइनिंग हो जाती है तो यह खुशी की बात है. आप दर्शकों के लिए ज़्यादा क्योंकि आपने वही वाला टॉपिक छोड़कर नौकरियों पर हमारी सीरीज़ का साथ दिया है. पोस्टल विभाग के अधिकारी अगर अपने इस पत्र को शब्दश लागू कर दें, बीच में न मुकरें तो वे 5000 ज़िदगियों में खुशियां भर सकते हैं. दुनिया को भी लगे कि डाक विभाग की चिट्ठी कभी लेट नहीं होती है. हम इसका श्रेय नहीं लेंगे बस नौकरियों पर प्राइम टाइम की यह सीरीज़ दो तीन महीने के लिए और बढ़ा देंगे. 

एसएससी वाले चेयरमैन साहब को थोड़ा और परेशान करेंगे. वैसे उन्होंने कुछ तो अच्छा काम कर ही दिया है. कम से कम जवाब तो दिया बहुत से चेयरमैनों ने तो मुझे जवाब देने लायक मैन भी नहीं समझा. सीएजी भी आनाकानी कर रहा था यहां 1000 लड़कों की ज्वाइनिंग होनी है. आज एक नौजवान ने बताया कि सीएजी से सकारात्मक जवाब मिला है. 1000 के डोसियर पहुंच गए हैं. बस ज्वाइनिंग की सूचना नहीं आई है. उम्मीद करता हूं सब जल्दी जल्दी होगा. जो छात्र ज्वाइन करेंगे वो दहेज न लें और रिश्वत न लें और हिन्दू मुस्लिम न करें. अगर आप बेरोज़गार अपने अलावा दूसरे नौजवानों की समस्या से जुड़ेंगे तो आपकी ताकत समझी जाएगी, असर होगा, सिर्फ अपना अपना देखेंगे तो असर नहीं होगा.

वाकई हमें खुशी हो रही है कि पोस्टल विभाग 5,205 नौजवानों को ज्वाइनिंग लेटर दे देगा. इस खबर से बाकी 15000 नौजवान आस लगा सकते हैं जो मेरिट लिस्ट में आने के बाद भी अगस्त 2017 से ज्वाइनिंग लेटर का इंतज़ार कर रहे हैं. 
फरवरी का महीना इनके जीवन में वाकई वसंत की तरह आएगा. हर आती जाती हवा ज्वाइनिंग की चिट्ठी की ख़ुश्बू से लिपटी होगी. भारत के एकमात्र ज़ीरो टीआरपी एंकर की तरफ से नौजवानों को असीम शुभकामानाएं. मेरी टीआरपी तो ज़ीरो है ही मगर इसे देखने वाले नौजवान इस देश के हीरो हैं. बंगाल पोस्टल सर्किल से अलाटमेंट की खबर आई है. 

यह सर्कुलर एक छात्र ने व्हाट्स अप के ज़रिए भेजा है. यह लिस्ट 31 जनवरी को ही निकली है. इंडिया पोस्ट वेस्ट बंगाल सर्किल की साइट पर है. जिसमें करीब 386 सफल अभ्यर्थियों को डिविज़न अलाट कर दिया गया है. यह काम बहुत तेज़ी से हुआ है. लिस्ट में आप नाम देख सकते हैं रोल नंबर देख सकते हैं और जगह का नाम जहां इनकी पोस्टिंग होगी. इस लिस्ट से पता चलता है कि सीएचएसएल रैंक 1187 वाली शि्‌लल्पा विश्वास की कोलकाता जीपीओ में पोस्टिंग हुई है. अभ्यर्थियों का कहना है कि इसके बाद तो ज्वाइनिग की चिट्ठी भी जल्दी आ जाएगी. सहायक निदेशक डाक सेवा का मुहर लगा है इस लिस्ट पर. इस लिस्ट में शामिल शिल्पा, अमित बरनवाल, नीतीश कुमार, दीया घोष, अंबर कुमार, दीपशिखा दास, मोरसलिन रहमान, बब्लू कोइरी, नईम अहमद, अयान चटजी आप सबको बधाई. 

30 जनवरी को पटना में नौजवानों ने बिहार पब्लिक सर्विस कमिशन के बाहर तिरंगा लेकर प्रदर्शन किया. इसका नाम अस्तित्व बचाओ आंदोलन नाम रखा है. छात्रों की मांग है कि बीपीएससी अपनी कार्यशैली में सुधार करे और परीक्षाओं को नियमित समय पर पूरी करे. बीपीएससी अपनी परीक्षाओं की सालाना कैलेंडर जारी करे ताकि सबको पता रहे कि कब पीटी होगी, कब मेन्स परीक्षा होगी और कब रिज़ल्ट निकलेगा. बीपीएससी के सचिव ने इन छात्रों से बात भी की, मगर छात्र अभी संतुष्ट नहीं हैं.

ईपीएफओ एम्पलॉयी पेंशन फंड ऑर्गेनाइजेशन, एनपीएश नेशनल पेंशन स्कीम, ईएसआईसी, एम्पलॉयी स्टेट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन, हम आप जब नौकरी करते हैं तो इसमें हमारा पेंशन जमा होता है. कंपनियां एक हिस्सा जमा करती हैं और एक हिस्सा हम जमा करते हैं. केंद्र सरकार ने 2016 में एक योजना बनाई प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना. जिसके तहत तय हुआ कि अगर कंपनियां 15,000 तक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को इन योजनाओं से जोड़ेंगी तो सरकार कंपनियों के हिस्सा अपनी तरफ से जमा कर देगी. इससे एक नया आंकड़ा तैयार हुआ. आईआईएम बेंगलुरु के प्रोफेसर प्रफुल्ल घोष और सौम्य कांति घोष ने इसी डेटा के आधार पर दावा किया कि 6 लाख हर महीने नौकरियां पैदा हुई हैं. 

प्रधानमंत्री मोदी ने भी ज़ी न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में इस रिसर्च का ज़िक्र किया था. मगर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के महेश व्यास ने उनके रिसर्च को चुनौती दे रहे हैं. महेश व्यास का कहना है ईपीएफ के आंकड़े से सही-सही नहीं पता चलता है कि कितनी नई नौकरियां पैदा हुई हैं. मामला तकनीकि है मगर मेहनत तो करनी पड़ेगी समझने के लिए. कई बार एक आदमी का कई खाता खुल जाता है. फिर जो लोग स्टेट इश्योरेंस में पंजीकरण कराते हैं वो ईपीएफओ में भी करा लेते हैं, इसलिए आप चाह कर भी सही से नहीं गिन सकते और गिन रहे हैं तो इसकी पूरी प्रक्रिया आपको बतानी पड़ेगी. यह सब जाने बिना सारी दुनिया को बता दिया गया कि एक महीने में 7 लाख नौकरियां पैदा हुईं जबकि पैदा नहीं हुईं जैसा कि महेश व्यास कहते हैं.


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