प्राइम टाइम : किसानों की दुर्दशा के लिए कौन है ज़िम्मेदार?

किसानों को आंदोलन करना पड़ता है, कोर्ट में जाना पड़ता है, रास्ता जाम करना पड़ता है तब जाकर बीमा की राशि मिलती है.

प्राइम टाइम : किसानों की दुर्दशा के लिए कौन है ज़िम्मेदार?

फाइल फोटो

14 मई को राजस्थान के एक किसान भागीरथ शर्मा ने मुझे व्हाट्सऐप किया कि फसल बीमा के नाम पर किसानों को ठगा जा रहा है. बैंक ने उनसे 2301 रुपये प्रीमियम की राशि काट ली है मगर बीमा कंपनी कहती है कि 216 रुपया ही प्रीमियम का जमा हुआ है. भागीरथ शर्मा का यह मेसेज आज भी मेरे पास है. उनसे आज भी बात की तो उन्होंने बताया कि 2017 की बरसात में जब उनकी फसल नष्ट हो गई, उसकी आज तक बीमा राशि नहीं मिली है. बल्कि दूसरी फसल भी खराब हो चुकी है, उसकी भी बीमा राशि नहीं मिली है. मैं तो इसी सवाल में उलझा रहा कि बीमा कंपनी का बिजनेस है. बैंक वाले बीमा कंपनी के बदले बीमा राशि क्यों वसूल रहे हैं. क्या बैंक के मैनेजर बीमा कंपनी के एजेंट हैं. क्या बैंकों के इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ उठा कर बीमा कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं. चूंकि हम न्यूज़ एंकर हर विषय को समझने और परखने की योग्यता नहीं रखते हैं तो भागीरथ जी से और भी सवाल किए. उन्होंने मई 2018 के आस पास पत्रिका और भास्कर की खबरों की क्लिपिंग भेज दी जो मार्च से लेकर अगस्त के बीच छपी थी.

कोटा ज़िले के हाड़ौती के बारां ज़िले की अटरू तहसील का एक गांव है नरसिंहपुर. इस गांव के कई किसानों की उड़द और सोयाबीन की फसल नष्ट हो गई थी. छह महीने से किसान बीमा राशि लेने के लिए चक्कर लगा रहे थे. कभी बीमा कंपनी जाते तो कभी बैंक तो कभी कृषि विभाग. भागीरथ शर्मा ने कहा कि कृषि विभाग ने बीमा कंपनी को तीन तीन पत्र भेजे कि इन किसानों की सौ फीसदी फसल नष्ट हो गई है. सारी खबरें अखबारों में छप रही हैं लेकिन इसके बाद भी बीमा का पैसा नहीं मिला. यही नहीं किसानों ने बताया कि बैंकों ने जो प्रीमियम राशि काटी है वो पूरी की पूरी बीमा कंपनी को नहीं पहुंची है. 2000 का प्रीमियम कटने के बाद बीमा कंपनी के पास 300 रुपये पहुंचे तो इसका मतलब है कोई बड़ा घोटाला है. यही नहीं सभी किसानों के किसान क्रेडिट कार्ड से बीमा की राशि तो ले ली गई मगर बीमा कंपनी ने यह कह कर लौटा दिया कि सबकी फसल का बीमा नहीं हुआ है. भागीरथ शर्मा के किसान क्रेडिट कार्ड से 4.51 एकड़ फसल के लिए 2301 रुपये की प्रीमियम राशि काट ली गई. लेकिन जब सोयाबीन और उड़द की फसल नष्ट होने पर बीमा कंपनी से संपर्क किया गया तो बताया गया कि भागीरथ शर्मा की 4.51 एकड़ ज़मीन का बीमा नहीं हुआ है. मात्र 0.4 एकड़ ज़मीन का ही बीमा हुआ है. 216 रुपये ही प्रीमियम मिला है, 2301 नहीं. किसान कोर्ट चले गए और कोर्ट ने बीमा कंपनी पर मुकदमा दायर करने के आदेश दिए मगर आज तक कुछ नहीं हुआ. किसानों को बीमा की राशि नहीं मिली.

भागीरथ शर्मा ने एक और बात बताई कि किसान ने फसल बोई है सोयाबीन की मगर बैंक ने बीमा का प्रीमियम काटते हुए उड़द लिख दिया है. यह भी हुआ है ताकि किसान इन्हीं सबमें उलझे रह जाएं और बीमा कंपनी को पैसे न देने पड़ें. भागीरथ जी ने यह बताया कि पिछले साल जो बीमा कंपनी ज़िले में थी, वो इस साल नहीं है. उसकी जगह नई कंपनी आ गई है. इसी तरह 26 अगस्त 2018 के भास्कर में एक खबर छपी है मध्य प्रदेश के दतिया से. जिसमें लिखा है कि बीमा का प्रीमियम देने के बाद भी 3000 किसानों को क्लेम नहीं मिला. आज ही हरियाणा के सिरसा में किसान कंज्यूमर कोर्ट पहुंच गए. क्योंकि करीब 2000 किसानों का बीमा कंपनी ने प्रीमियम लौटा दिया ताकि क्लेम की राशि नहीं देनी पड़े. अखिल भारतीय स्वामीनाथन संघर्ष समिति के विकल्प पचार ने इसके बारे में बताते हुए कहा कि यह कैसे हो सकता है कि जुलाई 2017 में प्रीमियम राशि लेने के दस महीने के बाद बीमा कंपनी प्रीमियम राशि ही लौटा दे, इसलिए हम उपभोक्ता अदालत गए हैं. यही नहीं सिरसा ज़िले में 2017 में 68000 किसानों ने कपास का बीमा कराया. प्रति एकड़ के हिसाब से किसानों ने प्रीमियम दी 500 रुपये और सरकार ने दी 1500. तो प्रीमियम की राशि हो जाती है 2000 प्रति एकड़. कपास की फसल खराब हो गई. कई महीनों बाद जब बीमा की राशि नहीं मिली तो सिरसा के किसान आंदोलन पर उतर आए. किसी का 18000 रुपये प्रति एकड़ बीमा क्लेम था तो किसी का 22000. कुल मिलाकर यह राशि 310 करोड़ की होती है. बीमा कंपनियां और बैंकों के बीच चक्कर काटते काटते किसान यह खेल समझ गए और पानी की टंकी पर पांच छह किसान चढ़ गए. तब जाकर उन्हें यह राशि मिली है. करीब 320 करोड़ की राशि किसानों ने ले तो ली, मगर अपने दम पर. इसके बाद भी अभी 2000 किसानों को क्लेम की राशि नहीं मिली है क्योंकि बीमा कंपनी ने उनका प्रीमियम लौटा दिया है.

किसानों को आंदोलन करना पड़ता है, कोर्ट में जाना पड़ता है, रास्ता जाम करना पड़ता है तब जाकर बीमा की राशि मिलती है. अभी 25 नवंबर को भास्कर में खबर छपी है कि मध्य प्रदेश के अशोकनगर ज़िले में 70 किसानों को बीमा का क्लेम मिलेगा वो भी 2016 का, और वो भी उपभोक्ता अदालत के आदेश पर. किसानों ने खेती से ज्यादा चिट्ठी पत्री कर ली, दफ्तरों के चक्कर लगा दिए तब जाकर मिलने का आदेश हुआ है, अभी मिला नहीं है. यही नहीं पिछले साल जो बीमा कंपनी होती है वो इस साल बदल जाती है. यह भी पता चलता है कि बीमा कंपनी ज़िले में अपना प्रतिनिधि नहीं रखते हैं. किसान किससे बात करे, कहां जाए.

किसान नेता विकल्प पचार का कहना है कि हरियाणा के 12 ज़िलों में किसानों ने करीब 380 करोड़ रुपये बीमा के प्रीमियम के दिए मगर क्लेम की राशि बंटी मात्र 45 करोड़. हमारे साथ आज पी साईनाथ हैं. जिनका मानना है फसल बीमा योजना राफेल से भी बड़ा घोटाला है, चूंकि पी साईंनाथ हैं तो हम कोशिश करेंगे कि खेती से जुड़े अन्य मसलों पर भी बात हो जाए. एक मुद्दा है किसानों की आमदनी दुगनी करने का. 2022 यानी अब से सिर्फ 4 साल बाद किसान डबल कमाने लगेगा. लेकिन अभी कितना कमा रहा है क्या हम जानते हैं. यह डबल इनकम किस किसान की होगी. बड़े किसान की, छोटे किसान की, खेतिहर मज़दूर की. 25 जून 2017 को देवेंद्र शर्मा का एक लेख है. जिसमें वे बताते हैं कि यह आंकड़ा 2016 के आर्थिक सर्वे का है.

17 राज्यों में किसानों की सालाना औसत आमदनी मात्र 20,000 है. यानी किसानों की औसत आमदनी 1300 रुपये महीने से ज्यादा नहीं है. क्या 2022 में किसानों की औसत आमदनी 2600 होने वाली है. वो भी चार साल बाद. एक सवाल और भी सरकार के कृषि मंत्री खुद से ट्वीट कर सकते हैं, बता सकते हैं कि चार सालों में किसानों की औसत आमदनी कितनी बढ़ी है, इससे पता चल जाएगा कि हम दोगुनी करने के लक्ष्य के कितने करीब हैं. देवेंद्र शर्मा ने 25 नवंबर 2018 को डाउन टू अर्थ में एक लेख लिखा है जिसमें कहा है कि global analytical company CRISIL के अनुसार 2009 से 2013 के बीच न्यूनतम समर्थन मूल्य में औसत वृद्धि दर 19.3 प्रतिशत थी. लेकिन 2014 से 2017 के बीच मात्र 3.6 प्रतिशत की ही औसत वृद्धि हुई है.

कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने लिखा है कि अगर आय दुगनी करनी है तो खेती के सेक्टर को 2022-23 तक 13 प्रतिशत की वृद्धि करनी होगी. ज़ाहिर है यह संभव नहीं है. इस बार सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर देने का दावा कर रही है, क्या किसानों को मिल रहा है, कई जगहों से खबरें आ रही हैं कि नहीं मिल रहा है. अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर बेचने के लिए मजबूर हैं. मार्च में 40,000 किसानों ने नाशिक से मुंबई की पदयात्रा की थी, जिनका मुंबई वालों ने खुलेदिल से स्वागत किया था. दिल्ली में भी किसानों का मार्च निकला था. फिर से किसान दिल्ली आ रहे हैं. 29 और 30 नवंबर को रामलीला मैदान में. वे अपनी समस्याओं पर देश का ध्यान चाहते हैं. अच्छी बात यह है कि शहर के लोग किसानों की बात सुन रहे हैं. समझ रहे हैं.

एम्स के डाक्टरों ने किसानों के लिए फ्री हेल्थ कैम्प लगाने की योजना बनाई है. इसके लिए आपस में दवाओं को जमा किया जा रहा है. होस्टल के बाहर बक्से रखे हैं जिसमें छात्रों से कहा गया है कि जो भी दवा है वो इसमें दे दें ताकि किसानों के काम आ सके. डॉ. हरजीत सिंह भट्टी ने बताया है कि बड़ी संख्या में डाक्टर इस काम के लिए आगे आ रहे हैं. रेज़िडेंट डाक्टरों की इस पहल में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के रेज़िडेंट डाक्टर भी किसानों के लिए दिल्ली आ रहे हैं. 200 किसानों के संगठन को मिलाकर आल इंडिया किसान संघर्ष कार्डिनेशन कमिटी बनी है वही इस मार्च का आयोजन कर रही है.


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