बिहार में शिक्षा की ऐसी हालत की जिम्‍मेदारी कौन ले?

जो छात्र 12वीं पास नहीं कर पाये वो आईआईटी-जेईई पास कर गये. ये वो छात्र हैं जिनको मैथ्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री में 8, 12 और 16 अंक मिलतें हैं लेकिन आईआईटी-जेईई पास कर जाते हैं.

बिहार में शिक्षा की ऐसी हालत की जिम्‍मेदारी कौन ले?

बिहार में इस साल 12वीं बोर्ड के नतीजों में सिर्फ 35 फीसदी छात्र पास हुए और 65 फीसदी फेल. ये वो आंकड़ा है जो इस राज्य के भविष्य को आंकता है. बांका के एचकेवी स्कूल के 80 प्रतिशत बच्चे फेल हुए. इसके पास के राजपुर गांव के सभी 55 छात्र फेल हो गये. बक्सर, भागलपुर और कैमूर में छात्रों ने खुदकुशी की. तो आखिर राज्य सरकार के स्कूलों में सुधार के दावों के बावजूद इतनी बुरी हालत कैसे हुई? इसके बचाव में सरकार का कहना है कि पिछले साल के नकल और घोटालों के बाद इस साल सख्ती बरती गई. इस साल वो बदनाम करने वाली नकल करती हुई तस्वीरें नहीं देखने को मिलीं. कड़ी निगरानी के बीच इस बार परीक्षा हुई. सीसीटीवी कैमरे लगे तो परीक्षा केंद्र से पहले छात्रों की तलाशी तक ली गई. उत्तरपत्रिकाओ में बार कोड भी लगाये गये. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि इंटर की परीक्षा में किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं हुई, ये एक सकारात्मक पहलू है.

लेकिन फिर सवाल इस साल के नतीजों पर भी उठ रहे हैं. जो छात्र 12वीं पास नहीं कर पाये वो आईआईटी-जेईई पास कर गये. ये वो छात्र हैं जिनको मैथ्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री में 8, 12 और 16 अंक मिलतें हैं लेकिन आईआईटी-जेईई पास कर जाते हैं. बड़े पैमाने पर फेल होने पर राज्य की सड़कों पर छात्रों का प्रदर्शन हुआ. सरकार को आश्‍वासन देना पड़ा कि एक महिने में दोबारा जांच हो जाएगी. सवाल ये भी उठा कि उत्तर पत्रों की जांच कैसे हुई.

नीतीश कुमार सराकर ने इस साल बजट का 20 फीसदी हिस्‍सा शिक्षा के लिए आवंटित किया है. इस साल के लिए 25,000 करोड़ दिये गये. शिक्षा का बजट 2005-06 में 4261 करोड़ था तो साल 2016-17 के लिए 21,897 करोड़ था. यानी सरकार सुधार की कोशिश में है कि सुधार लाया जाये.

जानकारों का कहना है कि सरकार ने इस साल आत्ममंथन कर नकल पर कदम उठाये. जिस प्रकार 1970 में केदार पांडे और 1980 में बिंदेश्‍वरी दूबे ने उठाये थे, जिसके बाद भी नतीजों में भारी गिरावट देखी गई थी. लेकिन बिहार में बड़ी कमी अच्छे शिक्षकों की भी रही. 40 प्रतिशत स्थान अभी भी खाली पड़े हैं.

करीब दो दशक से बिहार में एक के बाद एक शिक्षा घोटाले हुए. 1995 के बीएड डीग्री घोटाले में दो से ढाई लाख में बीएड की डीग्री बांटी गई. 6 एफआईआर हुई. इस मामले में तब के शिक्षा मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव को साल 2000 में जेल जाना पड़ा जबकि‍ तब के शिक्षा राज्य मंत्री जीतन राम मांझी को अग्रिम जमानत मिली थी. 25 नवंबर 2005 को एनडीए की पहली सरकार में मांझी ने शपथ ली लेकिन पिछले दाग पर इस्तीफा देना पड़ा था.
- 2002 के मेडिकल प्रवेश परीक्षा पेपर लीक मामले में 22 नवम्बर 2003 को दिल्ली से डॉ. रंजीत उर्फ सुमन कुमार सिह को सीबीआई ने गिरफ्तार किया. मुम्बई में प्रिन्टिंग प्रेस से पेपर लीक कराया जाता था. मामला चल रहा है.
- शिक्षकों की बहाली पर पटना हाईकोर्ट ने 29 अप्रैल 2015 को जांच के आदेश दिये. 2011 से 2013 के बीच 94 हजार शिक्षकों की बहाली के लिए वेकेन्सी निकाली गई. 40 हजार फर्जी सर्टिफिकेट जांच के दायरे में हैं. अब तक 3000 शिक्षकों से इस्तीफा लिया जा चुका है.
- पिछले साल ही विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद जेल में हैं. उनकी पत्नी और पूर्व विधायक उषा सिन्हा जेल से बाहर हैं और मास्टर माइन्ड बच्चा राय पर आरोप गठन की प्रक्रिया चल रही है.
- इस वर्ष के बीएसएससी पर्चा लीक मामले में आयोग के सचिव परमेशवर राम और अध्यक्ष आईएएस अधिकारी सुधीर कुमार को गिरफ्तार किया गया है.
   
घोटालों के अलावा शिक्षा का स्तर पड़ोस के राज्यों से भी खराब है. बिहार में अगर 35.2% छात्र बारहवीं बोर्ड में पास हुए हैं. तो झारखण्ड में 12वीं में 52.36 प्रतिशत पास हुए. छत्तीसगढ़ में 73.43 प्रतीशत, मध्यप्रदेश में इस साल 58 प्रतिशत पास हुए. ऐसे आंकड़े सिर्फ बिमारू राज्यों से नहीं हैं, अन्य में भी हाल ज्यादा भिन्न नहीं हैं. एसर और प्रथम की रिपोर्ट के अनुसार आठवीं कक्षा के छात्र कक्षा दो की पुस्तकें ही पढ़ पाते हैं. स्कूल में सुविधाएं न होने से पढ़ाई भी छोड़ देते हैं. लेकिन बिहार में बड़ा सवाल शिक्षकों का है. सुपर 30 के आनंद कुमार का कहना है कि समय आ गया है कि राज्य में शिक्षकों का इम्तिहान होना चाहिए. जो स्कूलों में कार्यरत हैं उनका भी.

समस्याएं और भी हैं. 2015 की केन्द्र की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य ने उच्च शिक्षा को भी नजरअंदाज किया है. देशभर में बिहार में सबसे कम कॉलेज हैं. 2013-14 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में एक लाख छात्रों के लिए केवल 6 कॉलेज हैं. (18-23) उम्र के बीच और देश का औसत है 26 कॉलेजो का है. बगल का राज्य झारखण्‍ड भी बेहतर है. 7 कॉलेज प्रति लाख.

तो चाणक्य, आर्यभट्ट, नालंदा और विक्रिमशिला की भूमि में विद्या का ये हाल बेहाल करने वाला है. क्या छात्र हमारे वोट बैंक नहीं हैं? क्या राजनीति के दांवपेच में शिक्षा वोट नहीं दिलाती है? शिक्षा माफिया से निजात बहुत ज़रूरी है जो पैसे लेकर बिना अटेन्डेस के छात्रों को पास करा देते हैं. वो माता-पिता भी है जो पैसे के बल पर बच्चों को पास कराते रहते हैं. तो शायद हम सब को आत्ममंथन कि ज़रुरत है कि शिक्षा के इस हाल के लिए जिम्मेदारी कौन ले... सरकार, छात्र, शिक्षक या अभिभावक?

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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