'हिंदू' राहुल से बीजेपी क्यों बेचैन?

ताजा विवाद राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर शुरू हुआ है. शुरुआती दो दिन बीजेपी नेता यह सवाल पूछते रहे कि राहुल वाकई इस यात्रा पर गए भी हैं या नहीं.

'हिंदू' राहुल से बीजेपी क्यों बेचैन?

कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी

क्या बीजेपी को राहुल गांधी के हिंदू दिखने से परेशानी है? यह सवाल इसलिए क्योंकि जब से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदिरों के दर्शन शुरू किए और अब कैलाश मानसरोवर यात्रा पर गए हैं, बीजेपी उनकी हर छोटी-बड़ी बात पर नुक्ताचीनी कर रही है. ताजा विवाद राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर शुरू हुआ है. शुरुआती दो दिन बीजेपी नेता यह सवाल पूछते रहे कि राहुल वाकई इस यात्रा पर गए भी हैं या नहीं. फिर जब राहुल गांधी ने वहां के कुछ फोटो ट्वीट किए तो सोशल मीडिया पर कहा गया कि ये फोटो गूगल से उठा कर चेप दिए गए हैं. ये भी पूछा गया कि जब चीन में ट्वीटर चलता ही नहीं है तो राहुल ट्वीट कैसे कर सकते हैं. इसके बाद आज जब राहुल गांधी के कुछ ऐसे फोटो आए जिनमें वे खुद दिख रहे हैं तो बीजेपी नेताओं ने इन फोटो पर भी शक जताया. उन्होंने आरोप लगाया कि ये फोटोशॉप किए गए हैं क्योंकि राहुल के हाथ में जो छड़ी है उसकी छाया नहीं दिख रही. ये आवाज उठाने वालों में केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं.

लेकिन शक की कोई गुंजाइश न रहे इसलिए कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल से ही राहुल गांधी की एक के बाद एक कई फोटो जारी कर दिए. इन फोटो में वे कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए कई भारतीय श्रद्धालुओं से मिल जुल रहे हैं. राहुल कितना चले, यह बताने के लिए फिटबिट का एक स्क्रीन शॉट भी जारी कर दिया गया. इसमें बताया गया कि वे इस यात्रा के दौरान अभी तक 46433 कदम चल चुके हैं और उन्होंने 4446 कैलोरी बर्न की. एक वीडियो भी जारी किया गया. इसमें राहुल गांधी श्रद्धालुओं के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं. यह सारा तामझाम इसलिए ताकि बीजेपी के इन आरोपों की हवा निकाली जा सके कि राहुल यात्रा पर गए ही नहीं हैं और किसी गुमनाम जगह पर बैठ कर फोटोशॉप किए अपने फोटो डाल रहे हैं.

दरअसल, बीजेपी हर हाल में यह साबित करना चाहती है कि राहुल गांधी के मन में श्रद्धा नहीं है बल्कि वे सियासी स्टंट करने के लिए मंदिरों और अब कैलाश मानसरोवर के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन ताजा मामले में लगता है कि बीजेपी ने खुद अपना ही मखौल उड़वा लिया है. राहुल गांधी के करीबी सूत्रों के अनुसार वे 12 दिन की इस यात्रा पर सुरक्षा के तामझाम के बिना ही गए हैं. वैसे तो उन्हें प्रधानमंत्री की ही तरह एसपीजी सुरक्षा मिली हुई है लेकिन इस यात्रा में उन्होंने अकेले ही सफर करने का फैसला किया क्योंकि वे इसे अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय बता रहे हैं. अधिकांश यात्री कैलाश मानसरोवर यात्रा टट्टू की पीठ पर करते हैं लेकिन राहुल ने पूरा रास्ता पैदल ही चलने का फैसला किया है.

राहुल गांधी गत 31 अगस्त को इस यात्रा के लिए नेपाल रवाना हुए थे जहां से उन्होंने कैलाश के लिए प्रस्थान किया था. 26 अप्रैल को कर्नाटक की यात्रा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष के विमान में तकनीकी खराबी आने के कारण विमान बाईं ओर तेजी से झुक गया और तेजी से नीचे आने लगा था इसके बाद हालांकि विमान संभल गया और सुरक्षित नीचे उतरा. इसके तीन दिन बाद 29 अप्रैल को गांधी ने एक रैली के दौरान कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने की घोषणा की थी. कांग्रेस ने सुरक्षा कारणों से राहुल गांधी की यात्रा का ब्योरा गोपनीय रखा गया था.

वैसे राहुल के धार्मिक दौरों को लेकर विवाद पहली बार नहीं उठे हैं. गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर में जाने पर भी विवाद हुआ था. तब यह आरोप लगाया गया था कि राहुल गांधी का नाम मंदिर में रखे गए गैर हिंदुओं के रजिस्टर में लिख दिया गया था. विवाद के तूल पकड़ने पर कांग्रेस ने राहुल गांधी के कई फोटो जारी किए थे. इन फोटो में राहुल गांधी ने जनेऊ पहनी हुई है. इसके बाद कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दावा किया था कि राहुल सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि जनेऊधारी हिंदू हैं.

हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी की श्रद्धा का यह प्रदर्शन सियासी भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि 2014 के चुनाव में सफाए के बाद कांग्रेस में हार के कारणों की समीक्षा के लिए बनी समिति के अध्यक्ष ए के एंटनी ने कहा था कि कांग्रेस का कुछ अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति झुकाव होने की धारणा बनने से लोगों के मन में संदेह पैदा हुआ. इस साल मार्च में मुंबई में इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि 'बीजेपी लोगों को यह भरोसा दिलाने में कामयाबी हो गई कि कांग्रेस मुस्लिम पार्टी है. यह पूछने पर कि क्या राहुल की मंदिर यात्राएं हिंदुत्व पर बीजेपी के एकाधिकार को रोकने की कोशिश हैं, सोनिया गांधी ने बेहद साफगोई के साथ कहा था कि हां थोड़ा बहुत ऐसा है क्योंकि हमें कोने में धकेल दिया गया है. इसीलिए चुपचाप मंदिर जाने के बजाए वो थोड़ा बहुत जनता की नजरों में रहे.'

कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि ऐसे में जबकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह हिंदुत्व के आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं, यह जरूरी है कि कांग्रेस हिंदुओं के नजदीक जाती दिखे. यही वजह है कि कमलनाथ मध्य प्रदेश में हर पंचायत में गौशाला खोलने की बात कर रहे हैं तो वहीं राहुल गांधी अपनी विदेश यात्रा में आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर देते हैं. वे यह दिखाना चाहते हैं कि आरएसएस का हिंदुत्व भारतीय मूल्यों और दर्शन के खिलाफ है और देश की सनातनी परंपरा की असली कमान कांग्रेस के हाथों में है. लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा कर कांग्रेस बीजेपी के बुने जाल में ही नहीं फंस रही है? पर शायद चुनाव नजदीक आते ही ऐसा भी हो कि राजनीतिक विमर्श इसी पर सिमट जाए कि हिंदुत्व किसकी बपौती है. पर हैरानी यह है कि कांग्रेस को उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष और अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा करने वाली पार्टी मानने वाले उसके वामपंथी सहयोगी दल कायापलट की कांग्रेस की कोशिशों पर फिलहाल चुप हैं.

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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