आखिर नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी की जंग से पीछे क्यों हटीं प्रियंका गांधी वाड्रा...

उनकी पार्टी में फैसले करने के लिए सर्वोच्च पद पर उनके बड़े भाई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विराजमान हैं, और उनकी मां सोनिया गाधी के पास 'वीटो' की ताकत है...

आखिर नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी की जंग से पीछे क्यों हटीं प्रियंका गांधी वाड्रा...

प्रियंका गांधी वाड्रा हाल तक कहती रहीं, "अगर पार्टी ने कहा तो वाराणसी से चुनाव लड़ूंगी..."

पहले अटकलें चली थीं, फिर संकेत दिए गए थे, और फिर प्रियंका गांधी वाड्रा ने खुद भी कह दिया था कि अगर पार्टी (कांग्रेस) चाहेगी, तो वह वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी, लेकिन आखिरकार अब ऐसा नहीं हो रहा है.

उनकी पार्टी में फैसले करने के लिए सर्वोच्च पद पर उनके बड़े भाई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विराजमान हैं, और उनकी मां सोनिया गाधी के पास 'वीटो' की ताकत है, तो मुमकिन है, घर में रात्रिभोज के समय हुई बातचीत, या कई बार हुई बातचीत, के बाद यह फैसला किया गया हो.

'प्रियंका हां' या 'प्रियंका नहीं' का जो खेल शुरू हुआ, उसे राहुल गांधी की 'सस्पेंस अच्छा होता है' वाली टिप्पणी के बाद बल तो मिला, लेकिन आखिरकार वह उस समय अफवाह में बदलकर रह गया, जब कांग्रेस ने वाराणसी से फिर अजय राय को मैदान में उतार दिया. पिछले आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ अजय राय तीसरे स्थान पर रहे थे, और उन्हीं का नामांकन करवाकर कांग्रेस ने प्रियंका और राहुल की ओर से पेश की गई 'तूफानी संभावना' के बाद मोदी को पूरी तरह वॉकओवर दे डाला है.

अजय राय का नामांकन प्रधानमंत्री के विशाल रोड शो से सिर्फ दो घंटे पहले हुआ, जो दरअसल विजय जुलूस सरीखा था. कांग्रेस के इस फैसले से होने वाले अपमान से यह तो तय हो गया है कि अब अधिकतर कांग्रेस नेता इस सवाल से बचते नज़र आएंगे कि क्यों प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम लिस्ट से काट दिया गया.

पसंद साफ थी. देश के सबसे शक्तिशाली नेता के सामने लड़ना उनके राजनैतिक करियर की शानदार शुरुआत होता. हार भी जातीं, तो यह तय था कि उन्हें 'प्रशिक्षु' राजनेता की तरह नहीं, गंभीर, मज़बूत और लड़ने में सक्षम आक्रामक नेताओं की कतार में शुमार किया जाता, जो मुश्किल मुकाबलों से नहीं कतराते हैं. अगर वह मोदी की जीत का अंतर कम कर पातीं, तो वह निश्चित रूप से कांग्रेस का वही 'ब्रह्मास्त्र' साबित होतीं, जिसका दर्जा उन्हें पार्टी में उनके प्रशंसकों ने दिया है.

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भारी भीड़ के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को वाराणसी में रोड शो किया...

बहरहाल, अब तो वह हथियार इस्तेमाल ही नहीं किया गया...

सो, अब सोचते हैं, किस वजह से प्रियंका गांधी वाड्रा पीछे हटीं...?

इस आलेख के लिए जिन कांग्रेस नेताओं से मैंने बात की, उन्होंने मुझे इस किस्से के दो संस्करण बताए. फैसला करने की प्रक्रिया से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है, प्रियंका कभी भी गंभीरता से दौड़ में शामिल नहीं थीं, और नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनकी उम्मीदवारी के बारे में पार्टी में शीर्ष स्तर पर चर्चा तक नहीं हुई. उत्साहित कार्यकर्ताओं की ओर से यह एक मांग या आग्रह के रूप में शुरू हुआ था, और भाई-बहन के बयान सिर्फ कार्यकर्ताओं के जोश को बढ़ाए रखने और BJP को कन्फ्यूज़ करने के लिए दिए गए थे. लेकिन चूंकि 'मोदी बनाम प्रियंका' जंग की कहानी शुरू ही प्रियंका ने की थी, और 'कांग्रेस के भीतरी लोगों' ने उसे जिलाए रखा, और फिर राहुल और प्रियंका, दोनों ने ही इस बारे में खुलकर बात की, इसलिए इस थ्योरी पर विश्वास करना मुश्किल है.

एक अन्य नेता का कहना है, प्रियंका तो लड़ना चाहती थीं, लेकिन राहुल और सोनिया उनका राजनैतिक करियर एक हार के साथ शुरू करवाने की इच्छुक नहीं थे. कई अंदरूनी सर्वे में साफ दिखा कि वाराणसी में मोदी अजेय हैं, और इसके बावजूद प्रियंका अपने परिवार से अलग सोच रखती थीं. एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता के मुताबिक, अगर राहुल गांधी अमेठी (उत्तर प्रदेश) और वायनाड (केरल), दोनों सीटों पर जीत जाते हैं, तो प्रियंका को अमेठी में होने वाले उपचुनाव में लड़ाया जाएगा.

लेकिन क्या वास्तविक नेता इतनी ढालों और सुरक्षाचक्रों के पीछे छिपाकर रखे जाते हैं...? हारना और जीतना तो जननेताओं के साथ होता ही है. यह सवाल कीजिए, और कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है.

उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के तहत वाराणसी लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी (SP) के खाते में आई थी, और SP अध्यक्ष अखिलेश यादव खुशी-खुशी प्रियंका गांधी वाड्रा को संयुक्त गठबंधन प्रत्याशी मानकर उनके समर्थन में अपने हल्के-फुल्के प्रत्याशी को हटाने को तैयार थे.

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कांग्रेस ने कथित रूप से प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव लड़ाने पर चर्चा की थी, लेकिन सावधानीवश ऐसा नहीं किया गया...

परिवार की तरफ से वाराणसी की संभावना पर विराम लगा दिए जाने के बाद पार्टी नेता अब कह रहे हैं कि प्रियंका उन 18 सीटों पर जमकर प्रचार करेंगी, जहां कांग्रेस को अपनी जीत की संभावना नज़र आ रही है. अगर यह मानकर चला जाए कि मोदी ही BJP के प्रमुख प्रचारक हैं, तो उन्हें वाराणसी में बांधकर रख देना भी प्रियंका की जीत ही माना जाएगा.

इसी कहानी को दिया गया यह दूसरा मोड़ कोरी कल्पना लगता है कि प्रियंका गांधी को चुनाव नहीं लड़वाकर कांग्रेस दरअसल उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की मदद करना चाहती है. गठबंधन की मदद करने का बेहतरीन तरीका तो यह होता कि उत्तर प्रदेश में अमेठी और रायबरेली को छोड़कर कांग्रेस किसी भी सीट से चुनाव ही नहीं लड़ती, और हर जगह लड़ाई को BJP बनाम संयुक्त विपक्ष बना दिया होता.

लेकिन इसके बजाय कांग्रेस महागठबंधन के ही वोट काटेगी. आंकड़े बताते हैं कि त्रिकोणीय मुकाबलों में BJP को हमेशा लाभ मिला है.

BJP नेता और केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने खुश होकर ब्लॉग लिखा, "प्रियंका गांधी वाड्रा डरकर मुकाबले से बाहर हो गईं..." अब चुनाव के बचे हुए चरणों में BJP को कांग्रेस द्वारा खुद पर किए इस गोल से फायदा उठाते देखिए, खासतौर से उत्तर प्रदेश के बचे हुए अंतिम चरणों में, जहां संभवतः 2019 का विजेता तय होगा.

अब यह कांग्रेस की आदत बन गई है कि वह सबसे बुरे हालात में पहुंचकर रुक जाती है. ताज़ातरीन उदाहरण है - कर्तव्यपरायण पुत्री ने परिवार के फैसले के सामने सिर झुका दिया है.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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