मसूद अज़हर से सियासी लाभ के लिए भारत ने चीन और पाक की शर्तें क्यों मानी

22 अप्रैल को अमरीका ने घोषणा कर दी कि भारत को ईरान से तेल आयात की छूट मिली हुई थी, वह 2 मई के बाद वापस ले ली जाएगी.

मसूद अज़हर से सियासी लाभ के लिए भारत ने चीन और पाक की शर्तें क्यों मानी

नई दिल्ली:

इंडियन एक्सप्रेस में शुभाजीत रॉय की एक ख़बर है. आप पाठकों को यह ख़बर पढ़नी चाहिए. इससे एक अलग पक्ष का पता चलता है और इस मामले में आपकी जानकारी समृद्ध होती है. इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि अज़हर पर प्रतिबंध लगाने के लिए कब कब और क्या क्या हुआ.

भारत को मसूद अज़हर पर प्रतिबंध चाहिए था. इस पर भी अध्ययन कीजिए कि इस प्रतिबंध को हासिल करने के लिए भारत को सियासी लाभ के अलावा क्या मिला. बदले में भारत ने पाकिस्तान और चीन की जो बात मान ली, और ईरान से अपना नाता तोड़ा क्या वो करना चाहिए था. चुनाव जीतने के लिए यह सब किया गया या फिर भारत के लंबे हितों के लिए. रिपोर्ट के साथ मेरी भी टिप्पणी साथ-साथ है.

1 मई को अज़हर को ग्लोबल आतंकी की सूची में डाला गया. उसके 10 दिन पहले ही तय हो गया था कि इस बार हो जाएगा. चीन विरोध नहीं करेगा. कूटनीतिक प्रयासों का बड़ा हिस्सा न्यूयार्क में हुआ. सभी छह देशों के अधिकारी इसमें शामिल थे. इसके बहाने हर कोई अपना गेम खेल रहा था. भारत ने तो यही कहा था कि हम आतंक के सवाल पर मोलभाव नहीं करते हैं. लेकिन आगे की रिपोर्ट पढ़ने के बाद ख़ुद तय करें कि भारत ने मोल भाव किया या नहीं.

अज़हर पर बातचीत के लिए चीनी वार्ताकार पाकिस्तान पहुंचता है. चीन भारत को बताता है कि पाकिस्तान ने पांच शर्तें रखीं हैं. ये शर्तें थीं, तनाव कम हो, बातचीत हो, पुलवामा पर हमले को अज़हर से न जोड़ा जाए, कश्मीर में हिंसा न हो. भारत ने पाकिस्तान की शर्तों को नहीं माना.

इस बीच अज़हर को लेकर भारत की बेचैनी को चीन समझ गया. उसने अपनी तरफ से एक शर्त जोड़ दी. भारत से कहा कि वह बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट का समर्थन करे. 2017 में भारत ने विरोध कर दिया था. भारत का तर्क था कि पाकिस्तान और चीन के बीच जो गलियारा बन रहा है वह इसी बेल्ड एंड रोड का हिस्सा है. यह प्रोजेक्ट भारत की भौगोलिक संप्रभुता में दखल देता है क्योंकि यह पाक अधिकृत कश्मीर से गुज़रता है.

अब इस गेम में चीन अड़ गया. चीन ने यह भी कहा कि वह पाकिस्तान को लेकर कोई स्टैंड नहीं लेना चाहेगा. भारत ने समझाया कि मसूद अज़हर तो सिर्फ एक व्यक्ति है. इसमें पाकिस्तान कहां आता है.

इस बीच आपरेशन बालाकोट होता है. पाकिस्तान भी जवाबी कार्रवाई करता है. विंग कमांडर अभिनंदन को वापस कर दिया जाता है. दोनों देशों के बीच तनाव कम हो जाता है. तनाव कम करने की पाकिस्तान की पहली शर्त पूरी हो जाती है. अब बाकी शर्तों पर बात होनी थी. पाकिस्तान नहीं चाहता था कि पुलवामा और कश्मीर में आतंकी गतिविधियों का ज़िक्र आए. भारत ने पहले मसूद अज़हर के खिलाफ प्रस्ताव पुलवामा के कारण ही बढ़ाया था.

अप्रैल के बीच में बेल्ड एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत आगे बढ़ती है. अमरीका ने चीन से कहा कि जल्दी फैसला करे वर्ना इस पर संयुक्त राष्ट्र में खुला मतदान होगा. चीन इसके लिए तैयार नहीं था.

भारत इधर तैयार हो गया कि वह चीन के बेल्ट एंड रोड के बारे में कोई बयान नहीं देगा मगर अपनी स्थिति से समझौता नहीं करेगा. जिस प्रोजेक्ट को भारत अपनी संप्रभुता में दखल मानता है उस पर बयान क्यों नहीं देगा भारत. क्या इसलिए कि इससे चुनाव नहीं जाता जा सकता है और मसूद अज़हर से चुनावी जीत का रास्ता साफ होता है.

इधर पाकिस्तान संकेत करता है कि उसे मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित होने से एतराज़ नहीं. क्योंकि उसकी बाकी शर्तें पूरी हो चुकी थीं. चीन और पाकिस्तान को लगा कि अज़हर पर प्रतिबंध से पाकिस्तान की स्थिति बेहतर होगी. संदेश जाएगा कि पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के लिए गंभीर पहल कर रहा है. पाकिस्तान ने मसूद अज़हर के खाते सीज़ कर दिए हैं.

22 अप्रैल को अमरीका ने घोषणा कर दी कि भारत को ईरान से तेल आयात की छूट मिली हुई थी, वह 2 मई के बाद वापस ले ली जाएगी. भारत विरोध नहीं करता है. ईरान का साथ देने की बात नहीं करता है. ईरान ही एक ऐसा देश था जो भारत को उसकी मुद्रा में तेल देता था.

अमरीका ने कहा कि आतंक के मसले पर दिल्ली की मदद कर रहा है तो बदले में भारत ईरान पर प्रतिबंध की नीति का सपोर्ट करे. अज़हर के लिए भारत ने ईरान का साथ छोड़ दिया.

22 अप्रैल को विदेश सचिव विजय गोखले बीजिंग जाते हैं. दोनों देशों के बीच डील होती है. मसूद अज़हर से पुलवामा हमले को अलग कर दिया जाता है.

मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी तो घोषित किया गया. मगर इसलिए नहीं कि उसने भारत पर आतंकी हमला किया है. इसलिए कि उसके संबंध अल-क़ायदा से रहे हैं. तालिबान से रहे हैं.

भारत इसे अपनी जीत बता रहा है. जीत के पीछे हुए मोलभाव को भारत से ही छिपा रहा है. अब अगर प्रधानमंत्री मोदी इसे तीसरी सर्जिकल स्ट्राइक बताएंगे तो लोगों को जाने का हक है कि प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावी लाभ के लिए पाकिस्तान ऐऔर चीन की शर्तें क्यों मानीं. गनीमत है कि ऐसी बातें हिन्दी अख़बारों में नहीं छपतीं और हिन्दी चैनलों पर नहीं बताई जाती. जनता अंधेरे में है. प्रधानमंत्री उसे टार्च दिखा कर सूरज बता रहे हैं.

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