अरब में ख़रब की तलाश में मोदी..

अरब में ख़रब की तलाश में मोदी..

नई दिल्ली:

कुछ वक्त पहले दुबई जाने का मौका मिला था। हर जगह टैक्सियों से लेकर दुकानदार और पर्यटन से जुड़े व्यवसाय में हिंदुस्तानी छाए हुए हैं। बोलचाल से लगता ही नहीं कि आप भारत से बाहर हैं। ऐसे में दुबई समेत संयुक्त अरब अमीरात में  बसने वाले 26 लाख भारतीयों की 34 साल बाद क्यों सुध आई भारत सरकार को? सबसे ज़्यादा भारतीय यहीं बसते हैं और 50 बिलियन डॉलर हर साल देश भेजते हैं। इनके हित, इनके अधिकार और भारत के साथ यूएई के आपसी रिश्ते क्यों हमारी विदेश नीति में अब अहम हो गए हैं?

अहमियत सिर्फ भारतीयों की ही नहीं अरब से आने वाले विदेशी निवेश की भी है। बीते 2 सालों में यूएई से हमारा आपसी कारोबार 13 बिलियन डॉलर घटकर 60 बिलियन डॉलर हो गया है जो कि 2013 में 73 बिलियन डॉलर था। भारत यूएई का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है तो अमेरिका और चीन के बाद यूएई, भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है।

कच्चे तेल के मामले में अभी यूएई भारत की 9 फीसदी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करता है। इसमें बढ़ोत्तरी की पूरी पूरी गुजांईश है और यूएई के मंत्री सुल्तान बिन सईद अल मंसूरी ने पीएम के साथ बैठक के मौके पर आज कहा है कि यूएई भारत की किसी भी कच्चे तेल की ज़रूरत को पूरा करने को तैयार है। दुनिया में हम कच्चे तेल के निर्यात में चौथे नंबर पर हैं । ऐसे में यूएई के साथ बेहतर कारोबारी साझेदारी हमारी बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों  के लिए आगे चल कर गारंटी का काम कर सकती है।

संयुक्त अरब अमीरात के पास निवेश के लिए पैसे का एक ऐसा भंडार है जो दुनिया के बहुत कम मुल्कों ने खासतौर पर निवेश के लिए अलग रखा है। अबु धाबी इनवेस्टमेंट अथॉरिटी के पास 800 बिलियन डॉलर का फंड खास तौर पर निवेश के लिए अलग रखा गया है । इसी तर्ज पर दुबई इनवेस्टमेंट अथॉरिटी के पास 500 बिलियन डॉलर की रकम निवेश के लिए अलग रखी गई है।

इसे Sovereign wealth fund कहा जाता है जो कि दुनिया भर में स्टॉक, बोंड, रियल एस्टेट, कीमती धातुओं के सेक्टर और हेज फंड्स में निवेश के लिए अलग रखा गया है। ऐसा फंड वही देश बना सकते हैं जिनके पास बजट से अतिरिक्त पैसा हो और जिनकी कोई अंतरराष्ट्रीय देनदारी न हो। भारत की नज़र इसी फंड पर है और निवेशकों को लुभाने के लिए आज मोदी ने अरबी उद्योगपतियों को भारत में सौर ऊर्जा, किफायती मकानों , डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग में निवेश का न्यौता दिया।

इसके अलावा क्लीन एनर्जी की दिशा में मसदर शहर ने एक इतिहास कायम किया है। ये दुनिया का पहला कार्बन फ्री शहर है जहां साफ आबो हवा , रिन्युएबल यानि अक्षय ऊर्जा पर जोर है। ये एक कार फ्री सिटी कही जाती है जहां शानदार पब्लिक ट्रांस्पोर्ट है जो कि सौर ऊर्जा से चलता है। न के बराबर प्रदूषण और साफ और सुरक्षित जीवन यहां की खासियत है। यहां से भारत में स्मार्ट सिटी परियोजना को लेकर काफी कुछ सीखा जा सकता है।

बारिकी से मसदर शहर का मुआयना कर रहे पीएम ने इस इलाके को  बनाने बसाने में कारगर रही तकनीक को जाना। ये कितनी हद तक भारत में लागू हो पाएगी कहना मुश्किल है लेकिन सोच और साझेदारी के बेशुमार मौके यूएई और भारत के बीच मौजूद हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में यूएई और खासकर दुबई की कामयाबी शानदार है। हर इमारत, हर पुल, हर सड़क और शहरी विकास अपने आप में सुनियोजन की कहानी कहता है।

सामरिक तौर पर भी इस साझेदारी की अहमियत कम नहीं। भारत के कई कुख्यात अपराधी दुबई , यूएई में शरण लेकर अपना धंधा चला रहे हैं। दाऊद के यूएई की कई कंपनियों में शेयर हैं, कई बेनामी संपत्तियां हैं। पीएम मोदी चाहेंगे कि उस पर कार्यवाई की जाए। इस्लामिक स्टेट के बढ़ते कदमों की आहट ने भारत को चौकन्ना कर दिया है। अरब क्षेत्र में यूएई के साथ मज़बूत रिश्ते आईएस के खिलाफ रणनीति के लिए ज़रूरी है। यूएई इसके लिए अहम पड़ाव है । अगला पड़ाव सऊदी अरब हो सकता है जिसका इस्लामिक स्टेट पर खासा प्रभाव माना जाता है।

इतना सब कुछ होते हुए भी भारतीय प्रधानमंत्री को 34 साल लग गए यहां आने में । ये प्रधानमंत्री मोदी की पहली यात्रा है सार्क से बाहर किसी इस्लामिक देश की। इससे पहले बांग्लादेश गए थे पीएम । मोदी ने  अबू धाबी में ऐतिहासिक शेख ज़ायेद मस्जिद भी देखी। ये यूएई का सबसे अहम धार्मिक स्थल है । कभी इस्लामिक टोपी पहनने से इंकार करने वाले मोदी जब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद को देखने पहुंचे तो इसके कायल हो गए। शेख ज़ायेद मस्जिद की विज़िटर्स बुक में मोदी ने इस्लाम को शांति और सदभावना का प्रतीक बताया । ये देश के मुसलमानों के लिए क्या कोई संदेश था ? है तो अच्छा है और नहीं है तो सोच बदलना इतना आसान कहां ....  

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खैर पीएम की सोच एक मामले में बिलकुल साफ और खरी है । ये है कारोबारी सोच और इस मामले में भारत को वो दुनिया के सामने अच्छे से रख तो रहे हैं लेकिन दुनिया भर से निवेशकों को बुलाने और यहां टिकाने के लिए देश के अंदर बेहतर कारोबारी माहौल चाहिए। जब देश का उद्योगजगत सुधारों की सुस्त रफ्तार पर सब्र खोने लगा हो तो बाहर से आने वाले निवेशक क्यों आएगें। यूएई दौरा अच्छी पहल है  हमारे लिए, हमारी ज़रूरतों के लिए और हमारे उन 26 लाख लोगों के लिए जिन्होनें यूएई में मिनी इंडिया बसा रखा है।