सुशील महापात्रा की कलम से : सिर्फ ललित मोदी ही क्यों?

ललित मोदी का मुद्दा फिर एक बार सामने आया है। ललित मोदी के साथ-साथ बीजेपी भी एक बार फिर से घिरते हुए नज़र आ रहे हैं। वैसे भी ललित मोदी के लिए 'विवाद' कोई नई बात नहीं है।

ललित मोदी हर वक़्त कुछ न कुछ ऐसा करना चाहते हैं, जिसकी वजह से वह मीडिया में छाए रहें। लंदन में रहते हुए भी ललित मोदी ने भारत के क्रिकेट को चलाने की कोशिश की।

पिछले साल राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव के दौरान ललित मोदी ने खुद अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीता भी। यह माना जा रहा था कि वसुंधरा राजे के करीबी होने की वजह से ललित मोदी और उनकी टीम को इस चुनाव में जीत मिली थी, लेकिन बाद में बीसीसीआई के कड़े रुख के वजह से ललित मोदी को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था और सिर्फ उनको इस पद पर से निष्कासित ही नहीं बल्कि बीसीसीआई ने उनको यह भी धमकी भी दे डाली थी कि अगर ललित मोदी राजस्थान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष पद पर रहेंगे, तो राजस्थान को रणजी ट्रॉफी में खेलने का मौका नहीं दिया जाएगा।
 
आईपीएल और ललित मोदी:
आईपीएल की सफलता के पीछे ललित मोदी का ही सबसे बड़ा हाथ था। साल 2007 में जब आईसीएल का गठन हुआ तब कई खिलाड़ी आईसीएल से जुड़े और टीम के साथ खेले। कपिल देव को आईसीएल का चेयरमैन बनाया गया था। तब बीसीसीआई को यह डर सता रहा था कि आईसीएल की वजह से क्रिकेट के ऊपर बीसीसीआई का जो कब्ज़ा है वह कहीं खत्म न हो जाए इसलिए इस डर के कारण बीसीसीआई ने भी अपनी एक अलग से लीग बनाना चाही।

बीसीसीआई की तरफ से खिलाड़ियों को यह भी निर्देश दे दिया गया था कि जो भी खिलाड़ी आईसीएल में खेलेगा उसे बीसीसीआई द्वारा आयोजित किसी भी मैच में खेलने का मौका नहीं मिलेगा। बीसीसीआई ने दूसरे देश के बोर्ड को भी यह निर्देश दिया था कि उनके खिलाड़ी भी इस आईसीएल प्रतियोगिता में न खेलें और फिर इसके बाद साल 2008 में आईपीएल का गठन हुआ और ललित मोदी को इसकी कमान सौंपी गई।

ललित मोदी के शातिर दिमाग ने आईपीएल को सफलता की चरम सीमा पर भी पहुंचाया। आईपीएल में इतना पैसा आया कि हर देश के खिलाड़ी आईपीएल में खेलने के लिए बेचैन दिखे। आईपीएल के सामने आईसीएल टिक भी नहीं सका। इस नए प्रकार की टी-20 प्रतियोगिता (आईपीएल) में खिलाड़ियों को पैसों में ख़रीदा गया, अपना मनपसंद खिलाड़ी खरीदने के लिए टीम मालिकों की तरफ से जमकर बोलियां भी लगाई गईं।

साल 2008 के आईपीएल सत्र में चेन्नई सुपर किंग्स ने महेंद्र सिंह धोनी को 6 करोड़ में ख़रीदा गया। धोनी के अलावा ऑस्ट्रेलिया के एंड्रू साइमंड्स, श्रीलंका के सनथ जयसूर्या को करोड़ों रुपये में ख़रीदा गया। और परिणामस्वरूप आईपीएल की कमाई भी बढ़ती चली गई।

अब आईपीएल में सिर्फ पैसा ही पैसा था। वहीं अगर सबसे महंगे खिलाड़ी की बात करें तो पिछले साल तो युवराज सिंह को दिल्ली डेयरडेविल्स ने सबसे ज्यादा 16 करोड़ में ख़रीदा था, जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आईपीएल में किस कदर कमाई हो रही है। बीसीसीआई की कमाई भी काफी तेजी से बढ़ने लगी।
 
आईपीएल को सफलता मिलने के बाद ललित मोदी अपने आपको इसका मालिक समझने लगे थे। मोदी इससे जुड़ा हर फैसला खुद लेते थे, जो बीसीसीआई को कतई रास नहीं आया।

बीसीसीआई मौका ढूंढ रहा था कि ललित मोदी कोई गलती करे और उन्हें आईपीएल से हटाया जाए। बीसीसीआई इस मामले में खुशनसीब भी रहा क्योंकि साल 2010 के आईपीएल फाइनल के बाद ललित मोदी के पास बीसीसीआई का नोटिस पहुंच चुका था जिसमें उन्हें बताया गया था कि उन्हें आईपीएल से हटाया जा रहा है।
 
क्यों हटाए गए थे ललित मोदी ?
ललित मोदी की यह गलती थी कि वह ट्वीट करके साल 2011 में खेलने वाली दो फ्रैंचाइज़ी कोच्चि टस्कर्स और पुणे वॉरियर जैसी दो नई टीमों के नाम की घोषणा कर दी थी और घोषणा ही नहीं बल्कि इस के साथ-साथ कोच्चि फ्रैंचाइज़ी के शेयर धारकों के नाम भी ट्वीट कर दिए थे, जो आईपीएल की आचार संहिता के खिलाफ था।

इस तालिका में सुनंदा पुष्कर का भी नाम था, जो उस वक़्त शशि थरूर की गर्लफ्रेंड थीं, जिससे शशि थरूर पर भी सवाल उठने लगा था कि सुनंदा के जरिए थरूर आईपीएल की फ्रैंचाइज़ी के मालिक बनना चाहते हैं। यह बात इतनी आगे बढ़ गई थी कि शशि  थरूर को मंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था। उस वक़्त देश में कांग्रेस की सरकार थी। ललित मोदी के खिलाफ कांग्रेस ने भी अपनी कमान कस ली थी। उस समय भी ललित मोदी के खिलाफ कई आरोप लगाए गए थे, जिसमें से   मनीलॉन्डरिंग सबसे बड़ा आरोप था और इसी जांच से बचने के लिए ललित मोदी भारत छोड़ कर लंदन चले गए।
 
ललित मोदी ने जो गलती की है, उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए, लेकिन इससे कई सवाल बीसीसीआई पर भी खड़े होते हैं, जैसे बीसीसीआई को चलाने के तरीके, कौन-कौन वह लोग हैं, जो बीसीसीआई को चलाते हैं, क्या ललित मोदी की  गलतियों के बारे में बीसीसीआई को जानकारी नहीं थी या फिर ललित मोदी को बलि का बकरा बनाया गया?
 
इतिहास के नजरिए से देखा जाए तो बीसीसीआई को चलाने वाले अधिकतर राजनेता या फिर उद्योगपति ही रहे हैं। 1928 में गठित हुई बीसीसीआई में अब तक बने 35 अध्यक्ष में से सिर्फ 8 ही क्रिकेटर रहे हैं, वरना अधिकतर इस पद पर कोई न कोई राजनेता या फिर उद्योगपति ही रहा है। सिर्फ बीसीसीआई ही क्यों भारत में बने राज्य क्रिकेट संघ के अध्यक्ष भी अधिक बार राजनेता ही रहे हैं।
 
इसके अलावा, विवादों से नाता सिर्फ ललित मोदी का ही नहीं बल्कि बीसीसीआई भी कई बार सवाल के घेरों में आया है। एन श्रीनिवासन जब बीसीसीआई के अध्यक्ष थे, तब भी उन पर कई आरोप लगे थे। अध्यक्ष पद पर रहते हुए श्रीनिवासन ने आईपीएल में अपनी आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स का गठन किया, जो बीसीसीआई के संविधान के खिलाफ था।

जब बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एसी मुत्थैया ने इस पर सवाल खड़े किए, तो श्रीनिवासन ने अपने आपको बचाने के लिए बीसीसीआई के संविधान में संशोधन कर डाला, सिर्फ इतना ही नहीं साल 2008 में श्रीनिवासन जब बोर्ड के सदस्य थे, तब भी पैसों से जुड़े मामलों की हेरा-फेरी को लेकर उन पर सवाल उठाया गया था। हाल ही में कुछ दिन पहले श्रीनिवासन को बीसीसीआई का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था, लेकिन अब वह आईसीसी के अधक्ष है।
 
विवादों ने कभी बीसीसीआई का पीछा नहीं छोड़ा। भारत जैसे देश में जहां एक आम आदमी अपनी कमाई का कुछ हिस्सा टैक्स के रूप में देता है, वहां बीसीसीआइ जैसी अमीर संस्था अपने आप को एक परोपकारी संस्था कहकर टैक्स से बचने की कोशिश करती रहती है, तभी तो बीसीसीआई के ऊपर 369 करोड़ का टैक्स बकाया पड़ा हुआ है।
 
बीसीसीआइ में चयन समिति के अलावा और कहीं क्रिकेटर नज़र नहीं आते है, लेकिन यह भी कहा जाता है कि टीम का चयन बीसीसीआइ की अगुवाई के बिना हो ही नहीं सकता। जो भी बोर्ड के खिलाफ आवाज़ उठाता है, बोर्ड उसका वेतन  बंद कर देता है या मिलने वाले पैसे पर प्रतिबन्ध लगा देता है। भारत जैसे देश में जहां लोग क्रिकेट को धर्म मानते है, उस क्रिकेट को चलाना व बोर्ड का भविष्य उन लोगों के हाथ में है, जिन्हें क्रिकेट की समझ कम है।
 
मैं यह नहीं कहता कि बीसीसीआई की वजह से क्रिकेटरों को कोई फायदा नहीं पंहुचा है। आईपीएल की आय में अधिक  इज़ाफे की वजह से पुराने खिलाड़ियों को भी बहुत मदद की गई है, जो एक अच्छी बात है। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि इतनी कमाई होने के बावजूद जो मदद की गई है क्या वह काफी है?

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बीसीसीआई के अंदर पारदर्शिता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। अगर ऐसे में ललित मोदी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, तो बीसीसीआई के उन सदस्य के खिलाफ क्यों नहीं की जा सकती, जो सवालों के घेरे में हैं।