एग्जिट पोल पर बना प्राइम टाइम क्यों ट्रेंड कर रहा है?

इक्का दुक्का केस में ही तय स्लॉट से ज़्यादा और छुट्टी के दिन एंकरिंग करने गया हूं. यह बीमारी अपने पूर्ववर्ती उस्तादों में देखी थी.

मेरा शुरू से मानना रहा है कि संडे से बड़ी ख़बर कुछ नहीं होती. संडे घर पर रहने के लिए होता है. संडे को कुछ भी हो एंकरिंग करने नहीं जाना चाहिए. मैं ख़ुद को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझना चाहता कि बिग ब्रेकिंग न्यूज़ में कुर्सी छेंक कर बैठ जाएं. दस साल की एंकरिंग में मैंने ख़ुद से किया यह वादा निभा दिया. इक्का दुक्का केस में ही तय स्लॉट से ज़्यादा और छुट्टी के दिन एंकरिंग करने गया हूं. यह बीमारी अपने पूर्ववर्ती उस्तादों में देखी थी. रिपोर्टिंग के दौरान भी इसी बीमारी का आलोचक रहा लेकिन इसे भी अपने जीवन से दूर रखने में सफल रहा. खुद को प्रासंगिक समझने और जताने के लिए एंकर लोग हर ख़बर में पहुंच जाते हैं.

मुझे ये ग़लत लगता था तो इसका धीरे-धीरे प्रतिकार किया. बाद में यह नियम सा बन गया. शुरू में ऐसा हुआ लेकिन मुझे अपराध बोध होता था कि दूसरे को हटाया. फिर मेरे वरिष्ठ इस बात को समझने लगे. दुनिया में अवसर असीमित हैं. असुरक्षित न बनें. ख़ुद से किया गया यह वादा अगर आप अपने दो दशक के पेशेवर जीवन में निभा जाएं तो अपने उन वरिष्ठों और एनडीटीवी का शुक्रिया तो बनता है जिन्होंने मेरी इस बात को समझा. टीवी में यह लालच होता है कि हर समय दिखें. इस लालच से दूर रहा. आगे का पता नहीं मगर दो दशक तो बचा रहा. जब भी प्रस्ताव और दबाव आया मना ही किया.

हिन्दी चैनलों की दुनिया में कई आइडियाविहीन संपादक आए, चैनल लॉन्‍च किए और खुद को इसी फॉर्मेट पर ढाला कि पांच बजे सुबह से काम करो. बारह बजे रात को घर लौटो. हर ख़बर में ख़ुद ही स्टूडियो में बैठो. अच्छा हुआ कि मुझे चैनल लॉन्‍च करने या चलाने का मौका नहीं मिला लेकिन मैं मानता हूं कि ये सब करने वाले हिन्दी टीवी की पत्रकारिता को सतही और लोकप्रिय कार्यक्रमों के अलावा कुछ और नहीं दे सके. वे ज़रूर महत्वपूर्ण बने रहे. हर समय दफ्तर में होने की झूठी प्रतिबद्धता ओढ़े रहे. इसे अंग्रेज़ी में बिजी बॉडी कहते हैं.

जो भी नए पत्रकार इस तरह का लबादा ओढ़े रहते हैं कि वे दिन रात काम करते हैं वो इस बात से सीखें. अगर बिजी बॉडी वाले संपादकों से ही सीखना चाहते हैं तो ग़ौर से देखें कि दिन रात दफ्तर में होने की प्रतिबद्धता के साथ उन्होंने क्या कर लिया. खूब पढ़िए. मौज मस्ती कीजिए. खाना बनाना सीखें और घूमना. ये मत समझिएगा कि मैं कम काम करता हूं. लेकिन अपना हासिल यही है कि कम काम करो. प्लानिंग से करो और नएपन से करो. हर समय लोकप्रियता की ख़ुमारी मत पालो. टीवी में काम करो लेकिन न्यूज चैनल कभी मत देखो. आप टीवी के पत्रकार हैं. घटिया माल बनाने के लिए कहा जाता है. देखने के लिए तो कोई नहीं कहता होगा न. मैं यह महानता बघारने के लिए नहीं लिख रहा बल्कि यह कहने के लिए लिख रहां हूं कि चैनल की नौकरी जीवन खा जाती है. आप जीवन को बचाएं. मैंने गंवा दिए.

मैंने अपना कोई कार्यक्रम घर लौटकर नहीं देखा. न किरण बेदी का इंटरव्यू देखा और न ही अक्षय कुमार के इंटरव्यू पर बनाया अपना स्पूफ देखा. उसे यूट्यूब पर तीस लाख से ज़्यादा व्यूज मिले. उसे शेयर भी नहीं किया. इस चुनाव में कई शो को यू ट्यूब में दस लाख और बीस लाख व्यूज मिले. वो भी न देखा और न शेयर किया. जबकि मैं भारत का पहला ज़ीरो टी आर पी एंकर हूं.

अब आते हैं आज की बात पर. एग्जिट पोल को लेकर मेरा सबसे बड़ा दुख और ग़ुस्सा यह है कि मुझे संडे के दिन एंकरिंग करनी पड़ी. चूंकि पूरे साल में पहली बार बुलाया गया तो सम्मानपूर्वक गया भी. तो उस दिन शाम साढ़े पांच बजे ऑफिस गया. बेमन से कभी मॉनिटर देखा और कभी नहीं देखा.

बड़े चैनलों ने काफ़ी पैसा औसत और घटिया प्रोग्राम बनाने पर ख़र्च कर रखा था. चैनलों का यही अर्थशास्त्र है. फॉर्मेट पर करोड़ों ख़र्च कर देते हैं लेकिन मानवसंसाधन पर पांच रुपया नहीं. इसलिए बड़े बड़े चैनलों में स्टूडियो बचे रह गए हैं और प्रतिभा ग़ायब है. वो किसी चैनल को नहीं चाहिए.

अब आप बताइये. मैंने कोई तैयारी नहीं की. मेरे चैनल ने पांच रुपया एग्जिट पोल पर ख़र्च नहीं किया. मेरे लिए ग्राफ़िक्स वाला हेलीकॉप्टर तक नहीं बनाया गया जिसमें मैं उड़ सकूं. मैं पैदल ही एंकरिंग करता रह गया. पांच बजे तक सोचा भी नहीं था कि किसे बुलाएं किसे नहीं. आनिन्द्यो, रेवती और सुदीप को बोला था. इससे अधिक कुछ न सोचा और न किया. मिलाजुलाकर मेरा शो भी औसत है. पूरी विनम्रता से कह रहा हूं. फिर भी आप बताएं कि ज़ीरो निवेश वाला यह शो यूट्यूब पर सोमवार दोपहर से मंगलवार दोपहर तक नंबर वन पर क्यों ट्रेंड कर रहा है?

एनडीटीवी इंडिया के यूट्यूब चैनल पर बीस लाख व्यूज क्यों मिले हैं? एनडीटीवी (अंग्रेज़ी) के यूट्यूब चैनल पर तेरह लाख व्यूज़ क्यों मिले हैं? इस शो में ऐसा क्या है कि पैंतीस लाख के क़रीब व्यूज़ मिले हैं?

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