आखिर अगड़ी जातियों में इतना उबाल क्यों हैं?

आज भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली में हो रही है.

आखिर अगड़ी जातियों में इतना उबाल क्यों हैं?

आज भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली में हो रही है. सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि आखिर पार्टी एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर देशभर में अगड़ी जातियों में असंतोष के माहौल का क्या निदान ढूंढती है. किसी भी भाजपा नेता को इस बात में कोई गलतफहमी नहीं है कि 90 के दशक से अब तक हिंदी पट्टी के राज्यों में मंडल की शक्तियों और दलों से मुक़ाबला करने में भाजपा का अगर किसी वर्ग ने जमकर साथ दिया है तो वे हैं अगड़ी जातियां और इनके समूह. लेकिन सवाल ये है कि वे जिस सरकार के सबसे मजबूत स्तंभ रहे हैं उसके ख़िलाफ़ अचानक इतने मुखर क्यों हो गये हैं.  भाजपा नेताओं का कहना हैं कि विरोधियों से ज़्यादा ख़ुद भाजपा नेतृत्व की कथनी और करनी इसके लिए ज़िम्मेदार है. 

 ख़ुद भाजपा के नेता मानते हैं कि उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि केंद्रीय नेतृत्व सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले को पलटने की ऐसी जल्दबाज़ी करेगा. इन नेताओं का कहना है कि अगड़ी जातियों के खिलाफ जितना दुरुपयोग एससी एसटी एक्ट का हुआ है, उसका अंदाजा शीर्ष पर बैठे गुजरात के नेताओं और उनके सलाहकारों को नहीं है. उनका अक्सर इशारा लालू यादव के शासन की तरफ़ होता है, जब यादव लोग किसी दलित से ऊंची जाति के लोगों के ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी मुक़दमा कराके उन्हें गांव छोड़ने पर मजबूर करते थे. ऐसे वर्ग के लोगों को सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले से राहत मिली थी और उम्मीद थी कि अब इसका दुरुपयोग रुकेगा. पर जैसे ही संसद से सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले को पलटा गया उसका परिणाम राजस्थान से बिहार तक देखने को मिला है. जब एक फ़र्ज़ी मामले में बाड़मेर के पत्रकार को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया. हालांकि उस साज़िश में सत्ता के शीर्ष पर बैठे कई लोग शामिल हैं, लेकिन मूल बात ये है कि एक पत्रकार को सबक़ सिखाने के लिए इसी एक्ट का दुरुपयोग किया गया.

ऊंची जातियों के असंतोष की आग में घी डालने के काम में तीन अलग-अलग घटनाओं का भी हाथ हैं . एक, जब रोज़गार और बेरोज़गार पर चर्चा होती है तब ऊंची जाति का युवा और उनके अभिभावक अपने आप को ठगा महसूस करते हैं, क्योंकि उनके लिए रोज़गार की संभावना सीमित होती जा रही है. प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी से उन्होंने बहुत उम्मीद पाल रखी थी लेकिन साढ़े चार साल में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे उन्हें उम्मीद बंधे. दूसरा, जैसे-जैसे पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ रहे हैं  और साथ में रुपया गिर रहा है, वैसे-वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति निराशा का भाव और बढ़ा है. इसके पीछे वजह ये है कि ऊंची जातियों के एक वर्ग को लग रहा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद तेल के दाम तो कम होंगे ही. रुपया भी मजबूत होगा. तीसरा, पिछड़ी जातियों की जनगणना की ख़बर का दांव भी उल्टा पड़ता दिख रहा है. दिल्ली से अखबारों में छपवाया गया कि जातिगत जनगणना के बाद उसी आधार पर पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा. अगड़ी जातियों में इसका मैसेज यह गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन जातियों के बीच इतने लोकप्रिय हो जाएंगे कि उन्हें अगड़ी जातियों के वोट की कोई ज़रूरत ही नहीं रहेगी.

इन सबके बाद बची-खुची कसर दलित नेताओं ने अपने बयान से पूरी कर दी. वे 15 फीसद ऊंची जातियों के लिए आरक्षण का समर्थन करते हैं. इससे भाजपा की मुश्किल और बढ़ी. फ़िलहाल दलित नेता, जैसे रामविलास पासवान अब लालू यादव जैसे नेताओं से समर्थन चाहते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि ऊंची जातियों के ग़ुस्से से निपटने के लिए उन्हें लालू-नीतीश के समर्थन की ज़रूरत है और रहेगी. फ़िलहाल भाजपा ने खुद एक के बाद एक गलतियों से आग लगाई है और इसे थामने का उपाय भी उन्हें जल्द ही ढूंढना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो ऊंची जातियों का झुकाव एक बार फिर कांग्रेस की तरफ हो सकता है, जो भाजपा को भारी पड़ सकता है. 


मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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