#युद्धकेविरुद्ध : इतने अधीर क्यों हैं हम?

#युद्धकेविरुद्ध : इतने अधीर क्यों हैं हम?

उरी में आतंकवादी हमला हुए तकरीबन एक हफ्ते का वक़्त बीत चुका है. ऐसा नहीं है कि इस हमले में 18 जवानों की शहादत के बाद सेना या सरकार चुप बैठे हैं. बावजूद इसके देश में हर तरफ से ढेरों बातें आने लगी हैं. कोई कह रहा है कि सर्जिकल स्ट्राइक कीजिए तो कोई युद्ध न किये जाने का पैरोकार है. मीडिया के एक हिस्से ने तो सूत्रों के मुताबिक आतंकी कैंपों पर हमले तक करा दिए, तो कईयों ने दावा किया कि स्पेशल फोर्सेज़ के जवानों ने नियंत्रण रेखा पार करके पाकिस्तान को छठी का दूध याद दिला दिया. यानी पाकिस्तान से कैसे पेश आया जाए, इसको लेकर सलाहों के बाज़ार में कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता.

मुझे लगता है कि भारत जैसे एक परिपक्व लोकतंत्र को उरी के गुनाहगारों को सज़ा देने का काम सेना और सरकार पर छोड़ देना चाहिए. हमले के बाद डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह साउथ ब्लॉक में कह चुके हैं कि सेना इस हमले का जवाब देने के काबिल है और सही समय और सही जगह पर उरी हमले का जवाब दिया जाएगा, लेकिन इसके समय और जगह का चुनाव सेना करेगी. ज़ाहिर है सेना उरी का जवाब देने से पहले कोई आधिकारिक बयान नहीं देगी. लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह के जवाब से स्पष्ट है कि उरी का माकूल जवाब दिया जाएगा. लिहाजा अपनी सेना पर यक़ीन करना चाहिये.

आपको याद होगा पुंछ के मेंढर में सेना के जवान हेमराज का सिर काटकर आतंकी पाकिस्तान ले गए थे. इस पर भी सेना ने कहा था कि हम इसका जवाब देंगे. खुद सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने कहा कि जवाब देने का वक्त और स्थान हम तय करेंगे. कुछ समय बाद पूछे जाने पर जनरल बिक्रम सिंह ने बताया कि सेना ने हेमराज वाली घटना का बदला ले लिया. हालांकि जनरल बिक्रम ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि सेना ने हेमराज का बदला कहां पर और कैसे लिया. सूत्रों के हवाले से पता करने पर पुष्टि हुई कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया गया था, लेकिन इससे अधिक लिखना यहां मुनासिब नहीं होगा. उरी का जवाब भी सेना देगी और वह जवाब सबके सामने आएगा. क्योंकि 18 सैनिकों की जघन्य हत्या के जवाब को गुप्त रखना मुमकिन नहीं होगा. रणनीति साफ है, दबाब में आकर जल्दबाज़ी में कोई फैसला नहीं लिया जाएगा.

उरी का बदला तो यूं भी सेना को लेना पड़ेगा क्योंकि ऐसे हमले का जवाब न देने पर जवानों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. और किसी भी सेना के लिये अपने जवानों का हौसला बनाए रखना ज़रूरी होता है. मुझे सेना के एक जनरल ने कहा कि सेना अपना काम ज़रूर करेगी लेकिन वो मीडिया को बताकर नहीं करेगी. किसी भी सैन्य अभियान के लिये सरप्राइज़ एलीमेंट का होना ज़रूरी है.

रही बात सरकार की तो कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को अलग थलग करने के साथ कई दूसरे कदमों से उसकी कमर तोड़ने की हर संभव कोशिश हो रही है. सरकार पाकिस्तान को घेर भी रही है तो संभल संभल कर. चाहे उरी हमले के बाद केरल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण हो, संयुक्त राष्ट्र में सुषमा स्वराज का भाषण, एमएफएन स्टेटस की बात हो या फिर सिंधु जल समझौते की समीक्षा, एक परिपक्व सामरिक रणनीति के तहत नपे तुले अंदाज़ में पाकिस्तान का इलाज किया जा रहा है और सारे विकल्प तलाशे जा रहे हैं.

निराशा मीडिया के एक हिस्से से भी होती है. पाकिस्तान को जवाब देने की जल्दबाज़ी में पुख़्ता सूचना के बगैर स्पेशल फोर्सेज़ को एलओसी पार करवा दी गई और 20 आतंकी मार दिये गए और 200 को घायल बता दिया गया. उधर किसी ने प्रधानमंत्री को वॉर रूम में भेज दिया. रेत के टीले बनाकर पीएम को ब्रीफिंग भी दी गई. जब साउथ ब्लॉक में मैप या वर्चुअल कैमरे की मदद से यहां बैठे बैठे बॉर्डर की हर हलचल देखी जा सकती है तो फिर रेत क्यों लाई गई. क्या हम वर्ष 2016 में सन् 1965 की बात कर रहे हैं? इसी तरह मीडिया के एक हिस्से में सीमा पर सेना के भारी जमावड़े के दावे भी किये गए. हद तो तब हो गई जब एक नहीं दो-दो चैनलों ने जैसलमेर से सटी सीमा में हज़ारों की तादाद में पाकिस्तानी सैनिकों का जमावड़ा करवाकर सैन्य अभ्यास तक करवा डाला. इतना ही नहीं, सबूत के तौर पर अभ्यास की तस्वीरें भी दिखाई गईं. इस बारे में पता लगाने पर सेना के साथ-साथ राजस्थान सीमा पर तैनात बीएसएफ ने भी अनभिज्ञता ज़ाहिर की. पहेली सुलझाने के लिये की गई तहकीकात से पता चला कि यह तस्वीर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने सोशल मीडिया पर साल 2010 के एक अभ्यास के बाद लगाई थी. कुछ पाकिस्तानी तस्वीरें 2013 के किसी अभ्यास की भी हैं.

सोशल मीडिया ने तो शालीनता की सारी सीमाएं लांघ दी हैं. पाकिस्तान के साथ साथ कुछ लोग सरकार के योजनाकारों तक पर गालियों की बौछार कर रहे हैं. पाकिस्तान पर सेना हमला क्यों नही कर रही, मोदी का 56 इंच का सीना कहां गया वगैरह. इसी को देश का मिज़ाज या मूड बताया जा रहा है. जो लोग भूल गये हों ज़रा याद करें, एक डेढ़ साल पहले आपने सुना होगा कि पाकिस्तान से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान ने लगातार फायरिंग की थी. यहां तक कि सरहद पर रहने वाले लोग घर छोड़कर भागने लगे. बीएसएफ ने इसका मुंहतोड़ जवाब इस कदर दिया कि पहली बार पाकिस्तान को यूएन में जाकर गुहार लगानी पड़ी कि वो जम्मू में फायरिंग बंद करवाए. इसके बाद जम्मू से लगी सीमा पर फायरिंग बंद हो गई और अब तक बंद है. इससे स्पष्ट होता है कि सुरक्षा बल जानते हैं कि उनको कब, क्या और कैसे करना है.

मौजूदा हालात में युद्धोन्माद पैदा करने से भी बचना चाहिए. अगर सेना या सरकार फैसला ले तो पूरे देश को एकस्वर में सरकार के फैसले के साथ खड़े होना चाहिए. देश के दुश्मनों से कैसे निबटा जाए यह बात सेना से बेहतर हम और आप नहीं जान सकते हैं. उनका यही काम है. इतिहास गवाह है कि भारत कभी युद्ध नहीं चाहता, लेकिन लड़ाई थोपे जाने पर जब दूसरा विकल्प ही न बचे तो जनता के ग़रीब होने की दुहाई देकर युद्ध के विरुद्ध होने की वकालत करना कहां तक उचित है?

राजीव रंजन एनडीटीवी में एसोसिएट एडिटर हैं.

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