पाकिस्तान के आम चुनावों में चरमपंथी और धार्मिक संगठनों की हार हुई है. मुंबई हमलों के मुख्य आरोपी हाफिज़ सईद की अल्लाह ओ अकबर तहरीक को एक भी सीट नहीं मिली है. हाफिज़ सईद ने ख़ुद भी प्रचार किया था. उसकी पार्टी को पाकिस्तान चुनाव आयोग ने मान्यता नहीं दी थी. वहां से आ रही ख़बरों में बताया गया है कि बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवारों की प्रांतीय और राष्ट्रीय असेंबली में हार हुई है. नतीजों का एलान नहीं हुआ है मगर इनकी हार पक्की बताई जा रही है. चंद उम्मीदवारों को छोड़कर किसी के जीतने के आसार नहीं है. चुनाव से पहले कट्टरपंथी ताकतों के उभरने की आशंका जताई जा रही थी मगर कई चरणों की गिनती के बाद ऐसा लग रहा है कि जनता ने ऐसे तत्वों को ठुकरा दिया है. पर चुनाव में हारने से कट्टरपंथी ताकतें कम हो गई हैं इस नतीजे पर पहुंचने में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए. उनकी हरकतें चुनावी राजनीति पर निर्भर नहीं हैं.
दूसरी तरफ इमरान ख़ान की पार्टी जीत की तरफ बढ़ रही है. पाकिस्तान तहरीके इंसाफ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. नवाज़ शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ ने नतीजों को स्वीकार नहीं किया है. आम तौर पर यही रिवाज था कि महिलाएं वोट नहीं करेंगी. उम्मीदवार, राजनीतिक दल और घर के मर्द रोकते भी थे और प्रोत्साहित भी नहीं करते थे कि महिलाएं मतदान करें. 2015 के डिर उपचुनाव में एक भी महिला वोटर ने वोट नहीं डाला था, इस कारण पाकिस्तान चुनाव आयोग ने उस उपचुनाव को भी खारिज़ कर दिया. उसके दो साल बाद 2017 के इलेक्शन एक्ट के तहत कानून बन गया कि अगर किसी क्षेत्र में दस फीसदी से कम महिलाएं वोट करेंगी तो उसका चुनाव रद्द माना जाएगा. बस इस एक नियम से उम्मीदवार और राजनीतिक कार्यकर्ता घर-घर से महिलाओं को निकाल कर मतदान केंद्र तक लाने लगे. सही है कि महिला वोटर का मतदान प्रतिशत कम रहा मगर चुनाव बचाने के लिए उन्हें घर से निकालना बहुत कुछ कहता है.
ख़ैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान और पंजाब में भी महिला मतदाताओं ने वोट डाले हैं. बड़ी संख्या में महिलाओं ने वोट डाले हैं. यह भी सही है कि सभी पंजीकृत महिला वोटरों ने वोट नहीं डाले या 10 प्रतिशत से कुछ अधिक मतदाताओं ने ही वोट डाले मगर उनका बाहर निकलना पाकिस्तान के चुनाव को यादगार बना गया. 1990 के दशक के बाद से महिला वोटरों का निकलना बंद हो गया था. पाकिस्तान के नए इलेक्शन एक्ट के अनुसार हर राजनीतिक दल को कम से कम पांच प्रतिशत महिला उम्मीदवार को खड़ा करना अनिवार्य है. पाकिस्तान में नेशनल असेंबली के लिए 171 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं. कितनी महिलाएं जीती हैं, इसका सही अंदाज़ा सभी नतीजे आने के बाद ही लग सकेगा.
पाकिस्तान के सीनेट में इस बार पहली दलित महिला चुनी गई हैं, जिनका नाम कृष्णा कुमार कोहली है. भारत में संसद में महिलाओं के आरक्षण की बात दशकों से चल ही रही है मगर हमें भी नहीं पता था कि 2017 में पाकिस्तान में ऐसा नियम बन गया, जिसके तहत पांच प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को उतारना अनिवार्य कर दिया गया. वहां के अखबारों को पढ़ रहा था. भारत में जब पंचायत चुनावों में महिलाओं को आरक्षण मिला था तब शुरू में बड़ी संख्या में उनके ही पति का चेहरा पोस्टर पर होता था, वैसे तो अब भी होता है मगर ठीक इसी तरह पर कई महिला उम्मीदवारों ने पोस्टर पर अपना चेहरा तक नहीं लगाया. उनके पति की तस्वीर लगी होती थी.
अब आते हैं इमरान ख़ान पर. पाकिस्तान के होने वाले नए प्रधानमंत्री पर. इमरान ने आज पाकिस्तान को संबोधित करते हुए कई बातें कहीं. इमरान की बातों का आने वाले समय में विश्लेषण होगा, लेकिन पहले दिन जो बातें कही हैं वो महत्वपूर्ण है. तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में इमरान ख़ान शाही महल में नहीं रहेंगे. छोटी सी जगह पर रहेंगे. मंत्री से लेकर सांसद भी सामान्य घरों में रहते हुए जनता की सेवा करेंगे. इमरान के भाषण का सारा ज़ोर इस बात पर है कि वे सरकार के उन खर्चों को कम करेंगे जो प्रोटोकॉल के नाम पर किए जाते हैं. जो शाही शान शौकत के लिए किए जाते हैं. ताली बजाने से पहले एक मिनट के लिए यह भी सोच लें कि आज कल सत्ता में आने के लिए ऐसी बातें कही जाती हैं. दुनिया भर में कुछ नया करने के लिए कह तो दिया जाता है, कर भी दिया जाता है मगर आम जनता की ज़िंदगी पर क्या वाकई पहले से ज़्यादा असर पड़ता है, ऐसा बहुत कम देखने को मिला है. फिर भी देखना चाहिए कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का निवास कैसा है जिसे इमरान ख़ान होटल में बदल देंगे.
वाकई होटल जैसा है. यहीं दफ्तर भी है. निवास भी है. 1973 से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इस शाही महल में रहते आए हैं. अब यहां नए प्रधानमंत्री के रूप में इमरान ख़ान नहीं रहेंगे. इस बार प्रधानमंत्री निवास के रखरखाव का बजट 16.17 प्रतिशत बढ़ा दिया गया था. पाकिस्तानी रुपये में इसका बजट करीब 100 करोड़ रखा गया है. इसे लेकर कई सवाल भी उठे थे. यह इमारत इस्लामाबाद में है. क्या वाकई यह शाही महल है.
यह सब बातें अच्छी लगती हैं सुनने में. आज कल रिवाज हो गया है, जनता यकीन भी कर लेती है मगर कुल मिलाकर बहुत ठोस रिज़ल्ट नहीं आता है. इसका मतलब यह नहीं कि नेता को सादगी से नहीं रहना चाहिए मगर उसकी कुछ ज़रूरतें होती हैं वो तो होना ही चाहिए. आप कहीं भी रहें, जनता को यह देखना चाहिए कि आपकी नीतियों की वजह से उसका जीवन बदल रहा है या नहीं. क्या इमरान ख़ान नौजवानों को रोज़गार दे पाएंगे, उनकी बातों से कोई खास और नया फॉर्मूला तो नहीं दिखा, ज़रूर सुनने में अच्छा लगा, क्योंकि ऐसी बातें हमेशा सुनने में अच्छी लगती है.
इमरान ख़ान को सेना की कठपुतली कहा जा रहा है. वे ठोस प्रमाण देने पर जांच की बात भी कर रहे हैं. इमरान ने अपने संबोधन में ग़रीबी दूर करने और गवर्नेंस पर ज़ोर दिया है. वे मानव सूचकांक में सुधार की बात करते हैं. अच्छा है कि कोई नेता इन सब बातों को रेखांकित करे और और भी अच्छा हो जब वो वाकई कुछ करके दिखाए. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान की आबादी का 39 फीसदी हिस्सा ग़रीबी में जीता है. सबसे ज्यादा गरीबी फाटा और बलूचिस्तान में है. इमरान ने अपनी बात की शुरुआत में बलूचिस्तान के लोगों का शुक्रिया अदा किया कि आतंकवादी हमले के बाद भी वहां के लोग वोट देने के लिए निकले.
पाकिस्तान को निवेश प्रिय मुल्क के रूप में भी कायम करना चाहते हैं. निवेश प्रिय मुल्क बनाने का फॉर्मूला भी वही है जो सबके पास है. ग़ौर से देखेंगे तो किसी के पास नया आइडिया नहीं है. सबके पास वही बाते हैं कि निवेश आएगा तो रोज़गार आएगा, विदेशों में रहने वाले पाकिस्तानी अपने देश में और भारतीय अपने देश में निवेश करेंगे. बेहतर है कि भारत में भी देख लिया जाए कि जितना विदेशी निवेश होता है उसमें कितना प्रतिशत बाहर रहने वाले भारतीयों का होता है और यही हिसाब पाकिस्तान भी अपने यहां कर ले. यह बताने का मकसद यह है कि क्या निवेश इस आधार पर आता है या फिर निवेश करने वाले खिलाड़ी कुछ और होते हैं, जिनके लिए मैदान एनआरआई के नाम पर खोला जाता है.
पाकिस्तान का 2017-18 का आर्थिक सर्वे के अनुसार 2015-16 में 24.3 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं. 2005-06 में 50.4 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं. दस साल में पाकिस्तान ने 50 प्रतिशत ग़रीबी कम की है. पहले छह करोड़ लोग ग़रीब थे, अब पांच करोड़ बताए जाते हैं. इसके बाद भी इमरान ग़रीबी दूर करने के मामले में चीन की मिसाल दे रहे थे. इमरान ख़ान ने आतंकवाद को लेकर एक शब्द नहीं कहा. आतंकवाद से पाकिस्तान कैसे निपटेगा, इसका ज़िक्र तक नहीं किया. कट्टरपंथी ताकतें भले चुनाव में हारी हैं मगर उन पर कैसे लगाम लगाएगा कुछ नहीं कहा. इमरान के पाकिस्तान में सेना की क्या भूमिका होगी या सेना के पाकिस्तान में इमरान की क्या भूमिका होगी, इस पर भी न तो साफ साफ कहा न इशारों में कहा. इमरान खान ने अपनी सरकार की विदेश नीति का खाका भी खींचा. उनकी बातों में भारत आखिरी नंबर पर आया. पहले चीन आया, फिर अफगानिस्तान, फिर अमरीका आया, फिर ईरान, फिर मध्य पूर्व तब जाकर भारत.
सत्ता में सादगी आए और कहीं भी आए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है, लेकिन क्या वाकई इमरान उस पाकिस्तान को बदल पाएंगे जिसने चुनाव प्रचार के दौरान ही कई बम धमाके देखे और कई लोगों की जाने गईं. भारत के बारे में बात करते हुए कहा कि इस उपमहाद्वीप के लिए बेहतर है कि भारत और पाकिस्तान दोस्त बने रहें. एक मेज़ पर बैठकर कश्मीर पर बात करें. अगर हिन्दुस्तान की लीडरशिप तैयार है, एक कदम आगे बढ़ेगी तो हम दो कदम बढ़ेंगे.
यहीं एक लाइन फौज को लेकर कही है कि फौज से मसले नहीं होते हैं. तो क्या वे अपनी सेना को भी यही बात कह रहे हैं. इमरान की बातों से यह साफ नहीं हुआ है. इमरान ख़ान 1 करोड़ लोगों को रोज़गार देने का और 50 लाख सस्ता घर देने का वादा कर सत्ता में आए हैं. इस साल मई में United Nations Development Programme (UNDP) Pakistan की रिपोर्ट से भी पाकिस्तान के बारे में कुछ और अंदाज़ा होता है.
आबादी का 64 प्रतिशत 30 साल से कम का है. 29 प्रतिशत आबादी 15 से 29 साल की है. दुनिया का सबसे जवान मुल्क है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूलों में जिस रफ्तार से एडमिशन हो रहा है उस हिसाब से सभी बच्चों को शिक्षित करने में पाकिस्तान को 60 साल लग जाएंगे. पाकिस्तान के आर्थिक सर्वे के हिसाब से वहा साक्षरता दर 60 प्रतिशत से घटकर 58 प्रतिशत हो गई है. क्योंकि शिक्षा के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं उसके पास. पाकिस्तान दुनिया के उन 15 देशों में से एक है जो शिक्षा पर सबसे कम ख़र्च करता है. पाकिस्तान का ऊर्जा और परिवहन सेक्टर चीन के हवाले हैं. चीन का इस सेक्टर में बहुत निवेश है. पाकिस्तान की जीडीपी 5.7 प्रतिशत के पास है, वहां के मीडिया में इसे सात प्रतिशत तक ले जाने की बात होती रहती है मगर विश्व बैंक ने कहा है कि 2019 में 5.9 प्रतिशत से भी कम होकर 5 प्रतिशत हो जाएगा.
The Dawn अखबार में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत मुनीर अकरम का लेख पढ़ रहा था. इसमें खेती के बारे में ज़िक्र मिला. इमरान खान ने भी ग़रीब किसानों की बात की है मगर एक दो पंक्ति में ही पाकिस्तान की जीडीपी में खेती का हिस्सा 25 प्रतिशत है. पाकिस्तान की श्रम शक्ति का 40 प्रतिशत खेती में है. दुनिया का सबसे बड़ा सिंचाई सिस्टम होने का दावा है. इसके बाद भी लागत की तुलना में उत्पादन दुनिया में सबसे कम है. इसलिए पाकिस्तान की खेती में काफी सुधार की ज़रूरत है. हम पाकिस्तान को लगातार एक ही फ्रेम में देखते और जानते आए हैं, मगर एक मुल्क को देखने समझने के लिए काफी नहीं है. 2014 की द डॉन अखबार की एक खबर देख रहा था उसमें ज़िक्र है कि पाकिस्तान में मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस पास कर निकलने वाली 50 फीसदी लड़कियां कभी प्रैक्टिस ही नहीं करती हैं. पाकिस्तान में हर साल 14,000 डॉक्टर बनते हैं, जिनमें से 70 फीसदी महिलाएं होती हैं. अब सोचिए इसमें से आधी महिलाएं प्रैक्टिस ही न करें तो क्या हाल होता होगा वहां.
दुनिया में सबसे अधिक नवजात शिशु की मौत पाकिस्तान में होती है. दूसरे नंबर पर अफगानिस्तान है. पाकिस्तान के नेशनल न्यूट्रीशन सर्वे के मुताबिक 45 प्रतिशत बच्चे पौष्टिक आहार न मिलने के कारण कमज़ोर हैं. उनकी लंबाई बढ़ नहीं पाती है. इस नज़र से भी पाकिस्तान को देखिए कई समस्याओं के बारे में भारत जैसा लगेगा. मीडिया फ्रीडम की रैंकिंग के मामले में भारत और पाकिस्तान सच्चे पड़ोसी की तरह अगल बगल हैं. भारत 138वें नंबर पर है और पाकिस्तान 139 वें नंबर पर.