क्‍या किसान चैनल से सुधरेगी किसानों की हालत?

नई दिल्‍ली:

कृषि दर्शन अब किसान चैनल बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर सरकार ने किसानों के लिए नया चैनल लॉन्‍च किया है। किसान चैनल। प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे देश में खेती को बदलने में मदद मिलेगी।

प्रसार भारती के चेयरमैन ए सूर्यप्रकाश ने इस मौके पर कहा कि किसान टीवी के ज़रिये थोक बाज़ारों के भाव की लगातार जानकारी दी जाएगी। वायदा कारोबार और मौसम की सूचना से भी किसानों को लाभ मिलेगा। इस चैनल पर पशुपाल से लेकर खेती से जुड़े कारोबार के बारे में भी कार्यक्रम होंगे और कृषि विशेषज्ञ किसानों को खेती की नई तकनीक के बारे में जानकारी देंगे।

प्रधानमंत्री ने भी कहा कि सफल किसान इसके माध्यम से अपना अनुभव किसानों को बांटेंगे। मैंने इस खबर को प्राइट टाइम में इसलिए लिया कि यह एक महत्वपूर्ण कदम है। अगर इस चैनल का सही इस्तमाल हुआ तो किसानों को लाभ हो सकता है। जिन किसानों के पास टीवी नहीं है वो दूसरे के घर जाकर भी देख सकते हैं। सरकार किसान टीवी की तरह किसान रेडियो भी लॉन्‍च कर सकती है ताकि दो-दो माध्यमों से किसानों को जानकारी मिल सके।

हमारे देश में कुछ ही अखबार हैं जो खेती पर आधारित हैं। महाराष्ट्र में सकाल ग्रुप का अखबार एग्रो वन निकलता है। आम तौर पर एग्रो वन के संवादताता और संपादक कृषि स्नातक होते हैं। विदर्भ से कृषकोन्नति पेपर निकलता है। गीतकार नीलेश मिसरा भी गांव कनेक्शन के नाम से एक ग्रामीण अखबार निकालते हैं जिसमें मैं भी लिखता हूं।

बस मुझे प्रधानमंत्री की इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि गांवों में पचास फीसदी से ज्यादा किसान ऐसे होंगे जिन्हें पता नहीं होगा कि सरकार में एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट है। कोई एग्रीकल्चर मिनिस्टर होता है। सरकार में एग्रीकल्चर के संबंध में कुछ नीतियां होती हैं। कुछ पता नहीं। ये प्रधानमंत्री के शब्द हैं। क्या वाकई हमारे किसानों को इतना भी नहीं पता कि कृषि मंत्रालय नाम का प्राणी भी होता है। ये तो कृषि मंत्रियों और मंत्रालयों पर भी गंभीर टिप्पणी है। फिलहाल अब किसान टीवी से किसान कृषि मंत्री को तो जान ही जाएंगे। आज के दिन सरकार ने एक साल पूरे किये हैं तो उन्हें प्राइम टाइम की तरफ से बधाई।

मगर सरकार अपने कार्यों से हमको आपको जागृत करने के लिए कुछ ज़्यादाती भी कर रही है। जब टीवी खोलो तब प्रेस कांफ्रेंस। साल न पूरा हुआ लगता है कि बाढ़ आई गई है। कभी कलकत्ता से प्रेस कांफ्रेंस तो कभी चंडीगढ़ से। यहां मंत्री वहां नेता। भाषण ही भाषण। 200 प्रेस कांफ्रेंस का टारगेट है पता नहीं अभी कितना हुआ और कितना होना बाकी है। 200 रैलियां भी होंगी, अभी तो एक ही हुई है।

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रुकिये 5000 सभाएं भी होनी हैं। रेडियो पर मन की बात होगी। सरकार की उपलब्धियों से सामना हुए बिना कोई नागरिक नहीं बच सकेगा। मैं तो उन लोगों को ढूंढ रहा हूं जिन्होंने एक साल पूरे होने पर सरकार से सवाल पूछे हैं। इन लोगों ने नहीं पूछा होता तो हम पर 200 प्रेस कांफ्रेंस का भार नहीं पड़ता। ऐसा लगता है कि सरकार रटवा के छोड़ेगी। मंगलवार को भी यहां वहां से दावे हो रहे थे और जहां तहां से खंडन। हमने सोचा कि क्यों न इन सबका कोलाज आपके सामने पेश करें। वैसे 26 मई के बाद दूसरा साल शुरू होने वाला है।