क्या लालू यादव तेजस्वी को नीतीश कुमार का विकल्प बना पाएंगे?

तेजस्वी यादव नीतीश कुमार का विकल्प बन पाएंगे या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपने खिलाफ मामलों में कितने जल्द और साफ सुथरे तरीके से निर्दोष साबित होते हैं.

क्या लालू यादव तेजस्वी को नीतीश कुमार का विकल्प बना पाएंगे?

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने जब अपनी पार्टी में चुनाव समय से पहले कराने को घोषणा की तब इस संबंध में कई क़यास लगाए गए कि आख़िर इसके पीछे लालू यादव की असल मंशा क्या हैं? कुछ लोगों को लग रहा था शायद जेल जाने के डर से लालू अपनी पार्टी की कमान अपने ही परिवार में किसी और को दे सकते हैं. लेकिन जैसे-जैसे चुनाव की औपचारिकता पूरी की गई उससे लगा कि लालू खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष दसवीं बार बनने के लिए चुनाव का तमाशा कर रहे हैं.

सोमवार को लालू ने पटना में अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में बस अपने भाषण से चंद मिनट पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह से एक तीन लाइन का प्रस्ताव पढ़वाया और शायद किसी को इसकी भनक तक नहीं लगने दी थी. पहले बिहार इकाई के अध्यक्ष रामचन्द्र पूर्वे ने सात प्रस्तावों को पारित कराने के लिए सबसे हाथ उठवाकर सहमति ली, उसके बाद घोषणा की कि एक और तीन लाइन का प्रस्ताव जगदानंद सिंह पढ़ेंगे. उस समय तक किसी को इस बात का आभास तक लालू ने नहीं होने दिया था कि आख़िर उनकी असली मंशा क्या है. लेकिन जब जगदानंद सिंह ने पढ़ा, जो लालू यादव द्वारा डिक्टेटेड लाइन थी, कि अगले चुनाव में तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, तब चुनाव और सम्मेलन की असल मंशा साफ़ हुई. इस बात में कोई संदेह नहीं कि अभी इस बात और प्रस्ताव की कोई प्रासंगिकता न होने के बावजूद लालू ने जिस चतुराई से इस प्रस्ताव पर पार्टी की मुहर लगवाई उसके बाद इस सवाल का जवाब सब चाहते हैं कि क्या तेजस्वी नीतीश कुमार का विकल्प हो पाएंगे? क्या बिहार की जनता उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करेगी?

निश्चित रूप से तेजस्वी लालू यादव की पहली पसंद हैं और रहेंगे, लेकिन क्या बिहार की जनता उनके इस निर्णय से इत्तफ़ाक़ रखती है? इस बात में कोई शक नहीं कि तेजस्वी यादव के पास कई गुण हैं जिनमें उनका कम उम्र का होना और इसके बावजूद सत्ता में अठारह महीने सरकार में नंबर दो की जगह पर होना. इसके अलावा नेता विपक्ष होना और तीसरा लालू यादव का वारिस होना. झोली में पिता और उनकी पार्टी की विरासत के रूप में एक फ़िक्स वोट बैंक का होना. इन सबसे महत्वपूर्ण है कि राज्य के गांव-गांव में पार्टी का संगठन और झंडा आपको देखने को मिल जाएगा. तेजस्वी की छवि एक ऐसे नेता के रूप में है जो सोशल मीडिया में काफी सक्रिय रहता है. देश-विदेश की हर खबर पर उसकी नजर बनी रहती है. इसके अलावा तेजस्वी अपने पिता या भाई तेजप्रताप यादव की तरह ऊल जलूल बयानों से दूर रहते हैं.

लेकिन जो पार्टी की विशेषता है, जिसे उसकी शक्ति माना जाता है, वह राजद की कमियों का भी श्रोत है. जैसे लालू यादव, जो एक जमाने में गरीबों के नेता होते थे उसके बाद पिछड़ों के नेता हुए और बाद में मुस्लिम और यादव समुदायों के नेता होकर सिमट गए. मुस्लिम यादव वोटरों का समूह बिहार में दो दर्जन विधानसभा सीटों से ज़्यादा पर आपकी जीत सुनिश्चहित नहीं कर सकता. यादव जहां खड़े हो जाते हैं वहां अगर नेतृत्व भी यादव का हो तो अन्य जातियों खासकर अन्य पिछड़ी जातियों को जोड़ पाना आसान नहीं रह जाता. तेजस्वी इस सच्चाई से भलीभांति परिचित हैं और उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी कि कैसे वे अन्य जातियों को अपने साथ सामाजिक और राजनीतिक रूप से आकर्षित कर पाते हैं. फिलहाल उनकी चादर काफी सिमटी और सीमित है जो चुनाव में जीत के समीकरण के लिए काफी नहीं है.

लालू यादव ने अपनी विरासत में वोट बैंक और पार्टी के संगठन के अलावा मुकदमों की भी एक फेहरिस्त स्थानांतरित की है. तेजस्वी इस बात को महसूस करते हैं कि आज जो भी मुकदमे या मामले उनके खिलाफ चल रहे हैं उसमें विपक्ष की चाल कम पिता लालू यादव का संपत्ति प्रेम ज्यादा जिम्मेदार है. इसलिए तेजस्वी, नीतीश कुमार का विकल्प बन पाएंगे या नहीं. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपने खिलाफ मामलों में कितने जल्द और साफ सुथरे तरीके से निर्दोष साबित होते हैं. तेजस्वी को यही सलाह नीतीश कुमार ने दी थी कि माता-पिता की संपत्ति उनके बाल-बच्चे को ही जाता है, इसके लिए हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए. दूसरी सलाह तेजस्वी को यह दी थी कि अपने खिलाफ चल रहे मामलों में जनता में तथ्यों पर जवाब दे. तेजस्वी ऐसा करने में विफल रहे थे और आज उसका परिणाम भी वही झेल रहे हैं.

तेजस्वी अगर सही में अपने पिता की आशा के अनुरूप सत्ता के गंभीर दावेदार बनना चाहते हैं तो उनको अपने विरोधियों, खासकर सुशील मोदी से सीखना होगा कि विपक्ष में कैसे आक्रामक होकर सरकार और विरोधियों को घेरा जाए. मोदी जब तक विपक्ष में रहे नीतीश सरकार के नाक में दम करके रखा. जिस घोटाले में नीतीश का दूर-दूर तक लेना देना नहीं होता था उस मामले में भी मोदी उनको लपेटने में नहीं चूकते थे. इसके अलावा हर मामले में लोगों की सुध लेने की जो तत्परता मोदी ने दिखाई उसका विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव में एक अंश भी पिछले चार महीने में देखने को नहीं मिला है. तेजस्वी बाढ़ के समय अपनी रैली में व्यस्त रहे तो आपराधिक घटना में किसी के मारे जाने पर वे जाति जानने के चक्कर में मौका खो देते हैं. सृजन घोटाले में भी सरकार की कमियों या उसकी विफलता की कहानी उजागर करने की जगह उन्होंने अपने पिता की तर्ज़ पर व्यक्तिगत आरोप लगाकर अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ धो लिया.

तेजस्वी यादव ने कहा है कि उनके समय में पार्टी लाठी और लैपटॉप दोनों के साथ राजनीति में आगे बढ़ने की कोशिश करेगी. लेकिन तेजस्वी भूल जाते हैं कि लाठी से आज का बिहार वास्ता नहीं रखना चाहता और लैपटॉप केवल उनके समर्थकों के पास होने से उनकी चुनावी नैया पार नहीं हो सकती. तेजस्वी को अपनी एक नई सोच सामने रखनी होगी. लेकिन उनके नाम की घोषणा के 14 घंटे के अंदर जब उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी के घर में शादी में घुसकर मारने की धमकी दी तब उनका मौन हो जाना शायद बिहार में सत्ता पाने के लिए कभी सहायक नहीं हो सकता.

सबसे बड़ी बात है कि क्या नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में किसी और को मौका देने के लिए लोग अभी तैयार बैठे हैं, खासकर तेजस्वी यादव को? इसका जवाब आज की तारीख़ में तेजस्वी और लालू समर्थक भी नहीं देंगे. नीतीश कुमार के आपको लाखों आलोचक मिल जाएंगे, लेकिन जब उनके विकल्प की बात कीजिए तो वही लोग चुप हो जाते हैं. आप कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री के लिए तेजस्वी के नाम की घोषणा नीतीश कुमार के लिए सबसे सुखद समाचार है. इसके कई कारण हैं. जैसे बारह साल तक सत्ता में रहने के बावजूद नीतीश कुमार की साफ सुथरी छवि. सरकार के कामकाज में जितनी निरंतरता उन्होंने बरकरार रखी है उसमें फिलहाल कोई ठहराव लोग नहीं चाहते. दूसरी बिहार को आगे ले जाने की सोच और उसके लिए कार्यक्रम और क्रियान्वयन पर गम्भीरता. शायद ही किसी को इन पैमानों पर अभी नीतीश का कोई विकल्प दिखता है. इसका ये मतलब नहीं कि सब कुछ बिहार में ठीक ठाक चल रहा है और यहां रामराज्य आ गया है. जिस गृह विभाग के मंत्री नीतीश कुमार हैं उसके तहत काम करने वाली बिहार पुलिस और थाने अभी भी भ्रष्टाचार के पर्याय हैं. एक एफआईआर अगर बिना किसी पैरवी और पैसे के दर्ज हो जाए तो आप अपने भाग्य को क्रेडिट दे सकते हैं. लेकिन इसके बावजूद आपको कोई एक व्यक्ति नहीं मिलेगा जो यह दावा कर ले कि उसने पैसा देकर अमुक काम नीतीश कुमार से करवाने में सफलता पाई है. लेकिन लालू यादव के साथ यह बात और अनुभव लागू नहीं होता.

तेजस्वी अगर एक गंभीर विकल्प बनना चाहते हैं तो उनको सबक लेकर आगे बढ़ना होगा. उनके पिता सत्ता में आए और कहा कि घूस लेना गाय का मांस खाने के समान है. उन्होंने यह भी कहा था कि अपने भाई का चपरासी क्वॉर्टर छोड़कर मुख्यमंत्री आवास नहीं जाऊंगा. लेकिन वही पिता भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी करार दिए गए और जेल भी गए. यह सब उस समय हुआ जब केंद्र में उसकी बनाई या उनके समर्थन से चल रही सरकार थी. वही पिता बाद में जमीन के चक्कर में खुद भी फंसता है और अपने बेटों को भी नामित करने के कारण सभी जांच एजेंसियों के सामने जाने के लिए मजबूर करता है. लेकिन अगर वही लालू यादव अपने कथन पर कायम रहते तो तेजस्वी को आज एक बहुत बड़ी राजनीतिक विरासत मिलती. लेकिन लालू ने अपने निर्णय से जातियों के एक निर्णायक वर्ग का समर्थन खो दिया. तेजस्वी को भरोसा दिलाकर यह समर्थन वापस अर्जित करना होगा जो फिलहाल एक कठिन चुनौती दिखता है.

दूसरा एक मॉडल है नीतीश कुमार का.जहां भले आपका जन्म एक ऐसी जाति में हुआ हो जिसका प्रतिशत जात के शतरंज पर बहुत सीमित हो, लेकिन आप जीवन में हर मौके का लाभ उठाते हुए क्षमता के प्रति लोगों में विश्वास दिलाते हुए अधिक से अधिक प्रभावी जातीय और सामाजिक समीकरण बनाते हैं. जिससे आपको न चाहते हुए भी आपको उन्हें नेता मानना पड़ा. आज भी नीतीश अपने काम की वजह से अपने नाम पर तीन बार जनादेश प्राप्त कर चुके हैं.

तेजस्वी जब तक अपनी जाति के लोगों से घिरे रहेंगे और मात्र अपनी जाति के आर्थिक उत्थान की सोच रखेंगे तब तक शायद उन्हें पिता के अशीर्वाद से प्राप्त होने वाले पदों से संतोष करना होगा. बिहार में नीतीश कुमार का विकल्प बनने के लिए उन्हें पिता की गलतियों से सीख लेकर लाठी और लैपटॉप वालों की जगह कलम और लैपटॉप की फौज के साथ राजनीति करनी होगी. लेकिन फिलहाल उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में खुद को जिम्मेदार साबित करना होगा.


मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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