कर्नाटक में हुई उठापटक के बाद क्या...?

दक्षिण फतह करने के BJP के मंसूबे पर फिलहाल रोक लगती दिख रही है, क्योंकि अब सबकी निगाहें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों पर होंगी.

कर्नाटक में हुई उठापटक के बाद क्या...?

एचडी कुमारस्वामी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात की है

कर्नाटक में साझा सरकार का रास्ता साफ है, उसे कोई रोक नहीं सकता. हां, इतना ज़रूर है कि नई-नई शादी में जैसे शुरुआत में दिक्कतें आती हैं, तो वे तो होंगी ही. फिर दोनों को एक दूसरे की आदत पड़ जाएगी. क्या करें, मजबूरी जो है. कहने को तो सांप्रदायिक ताकतों को रोकना है, मगर असली लालच तो कुर्सी का ही है. BJP अध्यक्ष कहते हैं कि जनादेश कांग्रेस-JDS के खिलाफ है और जनता ने उन्हें नकार दिया है. मगर कांग्रेस का कहना है कि उन्हें BJP से दो फीसदी वोट अधिक मिले हैं, यानी सरकार बनाने की हकदार वही है, और इसमें यदि JDS का वोट जोड़ दें, तो आंकडा 55 फीसदी के पार चला जाता है.

सरकार के मुखिया भले ही एचडी कुमारस्वामी हों, मगर कांग्रेस बागडोर अपने हाथ में रखने वाली है. दो उपमुख्यमंत्री कांग्रेस के होंगे, जिनमें से एक दलित और एक लिंगायत होगा. मंत्रियों में भी अधिक लोग कांग्रेस के ही होंगे. यानी, सरकार अच्छा काम न करे, तो बदनामी मुख्यमंत्री की और सब ठीकठाक हुआ, तो वाहवाही सबकी. मगर इतना सब होने के बावजूद कर्नाटक का प्रयोग भारतीय राजनीति के लिए संभावनाओं के कई दरवाज़े खोल रहा है. दक्षिण फतह करने के BJP के मंसूबे पर फिलहाल रोक लगती दिख रही है, क्योंकि अब सबकी निगाहें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों पर होंगी.

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मगर उससे पहले BJP का एक इम्तिहान इसी महीने की 28 तारीख को उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा उपचुनाव में होना है. यहां मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा), मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) और अजित सिंह की राष्ट्रीय लोकदल (RLD) मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. कैराना BJP की सीट है, जो उनके सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हुई है. सपा और BSP ने यहां मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा पहले ही कर दी थी, लेकिन राजनीति के कई जानकारों को इस पर शंका थी, लेकिन अब हालात साफ हो चुके हैं. तो क्या पहले कर्नाटक और अब कैराना 2019 में भारतीय राजनीति में एक नए प्रयोग का जनक होने वाले हैं.

यदि कैराना का प्रयोग सफल रहता है, तो यह तीसरा मौका होगा, जब BJP अपने गढ़ उत्तर प्रदेश में पिछड़ती दिखेगी. इससे पहले गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों के नतीजों को भी लोग भूले न होंगे. राजनीति के कई जानकारों का मानना है कि यदि उत्तर प्रदेश में सपा, BSP, कांग्रेस और अजित सिंह साथ आते हैं, तो BJP 23 सीटों तक सिमटकर रह जाएगी, जो बहुत बड़ा झटका होगा. बिहार में RJD और जीतनराम मांझी हाथ मिलाकर यादवों, मुस्लिमों और दलितों के एक तबके को जोड़कर नीतीश कुमार को अच्छी टक्कर देने की हालत में हैं. वैसे भी बिहार में लालू प्रसाद यादव को जितने लम्बे अरसे तक जेल में रखा गया, NDA के लिए दिक्कतें उतनी ही बढ़ती जाएंगी, क्योंकि यादव और मुस्लिम इकट्ठे होकर सौ फीसदी पोलिंग करने की कोशिश करेंगे.

राजस्थान में BJP की हालत सबको मालूम है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी से कांग्रेस को काफी उम्मीदें हैं. मतलब, जैसे-जैसे 2019 नजदीक आता जाएगा, देश का राजनीतिक परिदृश्य भी लगातार बदलेगा. ममता बनर्जी क्या रुख अपनाएंगी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव क्या करेंगे और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू का क्या रुख होगा. यही नहीं, वामदलों की क्या भूमिका होगी, और क्या वे ममता बनर्जी वाले फ्रंट का हिस्सा होंगे. ऐसे ही कुछ सवाल हैं, जो यह तय करेंगे कि 2019 के लोकसभा चुनाव की तस्वीर क्या होगी, और अंत में भानुमति के इस कुनबे का नेता कौन होगा. यह वह 'यक्ष प्रश्न' है, जिसका उत्तर ढूंढना अभी बाकी है. मगर, जो भी हो, 2019 का आम चुनाव मजेदार बहुत होगा...

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...

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