डेविड हेडली की फाइल तस्वीर
26/11 की घटना ने हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों को एक नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। इतनी बड़ी आतंकी घटना के बाद भी पाकिस्तान शुरुआत में लगातार ये कहता रहा कि इस हमले से उसका कोई लेना-देना नहीं है, जबकि शुरुआती दौर में ही ये साफ हो गया था कि कसाब और उसके साथियों के हैंडलर्स या आका पाकिस्तान में बैठे हैं।
तमाम दस्तावेज़ दिए जाने के बावजूद पाकिस्तान की कार्रवाई बहुत कमजोर नज़र आई। आज हम वापस 26/11 के सवाल पर खड़े हैं। सवाल वही है कि कब तक पाकिस्तान अपनी ज़मीन को भारत के खिलाफ़ आतंकवाद पनपने के लिए आतंकियों को देता रहेगा और फिर साथ में वक़्त वक़्त पर बातचीत और दोस्ती का भी हाथ बढ़ाता रहेगा। खासकर तब जबकि उसके सिस्टम में ही यानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई इस तरह के हमलों में साज़िश रचने से लेकर अंजाम देने और हमलावरों को बचाने तक की भूमिका अदा करती है।
कोर्ट में डेविड हेडली के हाफ़िज़ सईद का नाम लेने के बाद भारत के लिए हाफ़िज़ सईद पर अब कुछ और कहने की जरूरत नहीं है, लेकिन हाफ़िज़ सईद ज़रूर बयान देता है कि उसका हाथ कभी 26/11 में साबित नहीं किया जा सकता, वह भी तब जबकि भारत की विदेश मंत्री पाकिस्तान के दौरे पर होती हैं। सवाल कड़वे और पुराने हैं, सरकारें आ रही हैं, जा रही हैं, लेकिन पाकिस्तान सीधा जवाब कोई नहीं दे पाता।
(अभिज्ञान प्रकाश एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं)डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।