राफेल क्या बीजेपी का बोफोर्स बनेगा...?

कांग्रेस को लगता है कि यह रक्षा से जुड़ा मामला है. अधिक पैसा देने की बात है और राफेल बनाने का ठेका एक निजी कंपनी को दिया गया है.

राफेल क्या बीजेपी का बोफोर्स बनेगा...?

आजकल इस बात की बड़ी चर्चा है कि कांग्रेस राफेल मुद्दे को इतनी जल्दी छोड़ने वाली नहीं है. पार्टी इस मुद्दे को 2019 के लोकसभा चुनाव तक जिंदा रखने की रणनीति बना रही है. कांग्रेस को लगता है कि यह रक्षा से जुड़ा मामला है. अधिक पैसा देने की बात है और राफेल बनाने का ठेका एक निजी कंपनी को दिया गया है. कांग्रेस मानती है कि राफेल करीब 50 हजार करोड़ का घोटाला है. कांग्रेस का कहना है कि 126 राफेल के लिए समझौता हुआ था जिसमें 18 जहाज तैयार हालत में फ्रांस से बन कर आने थे. जबकि 108 राफेल भारत में बनने थे बेंगलुरु के हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा जिसके लिए फ्रांस से राफेल के तकनीक का ट्रांसफर भी होना था. एचएएल और फ्रांस की डसाल्ट के बीच 13 मार्च 2014 को समझौता भी हो गया था. यह पूरी डील 54 हजार करोड की थी. मगर एनडीए जब सत्ता में आई तब एक नया समझौता किया गया. अब 36 राफेल फ्रांस से बने बनाए आने थे.

इसकी घोषणा तब के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अनुपस्थि‍ति में की गई थी. 23 सितंबर 2016 को किए गए इस समझौते में 36 राफेल भारत आने थे जिसकी कीमत रखी गई 58 हजार करोड़. जबकि पिछली डील 126 राफेल के लिए 54 हजार करोड़ की थी. इस बार के समझौते में तकनीक का कोई ट्रांसफर नहीं होना था. ये सारे तर्क कांग्रेस के हैं. पार्टी का कहना है कि यह रक्षा सौदे के नियमों का उल्लंघन है क्योंकि इस सौदे की जानकारी सीधे प्रधानमंत्री ने दी और रक्षा मंत्री को भी अंधेरे में रखा गया.

कांग्रेस यह सवाल भी उठा रही है कि राफेल बनाने का ठेका एक निजी कंपनी को क्यों दिया गया जिसे रक्षा उपकरण बनाने का कोई अनुभव नहीं है. अनिल अंबानी की कंपनी ने फ्रांस के डसाल्ट कंपनी के साथ 3 अक्टूबर 2016 को एक समझौता किया. कांग्रेस यही सवाल उठा रही है कि जब हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड के पास रक्षा उपकरण बनाने का इतना अनुभव है तो निजी कंपनी को ठेका क्यों दिया गया. कांग्रेस यह भी सवाल उठा रही है कि जब यूपीए के समय एक राफेल की कीमत 526 करोड़ थी वो अब बढ़ कर करीब 1500 करोड़ का कैसे हो गया. कांग्रेस इस पर भी सवाल उठा रही है कि प्रमुख उद्योगपति अनिल अंबानी प्रधानमंत्री के साथ गए थे और डसाल्ट को साथ बैठक में हिस्सा लिया था.

कांग्रेस पूछ रही है कि इस सौदे की प्रधानमंत्री द्वारा घोषणा के पीछे कहीं कोई कॉरपोरेट हितों की रक्षा तो नहीं है. कांग्रेस यह भी पूछ रही है कि क्या मोदी सरकार पिछले सरकार के समझौते को कहीं खत्म तो नहीं करना चाहती और सरकार एक राफेल की इतनी कीमत क्यों अदा कर रही है. ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो बीजेपी को परेशान करेगें और कांग्रेस इसे अगले एक साल तक लगातार पूछती रहेगी अपने सभी मंचों से, चाहे वो प्रचार हो या संवाददाता सम्मेलन. क्योंकि कांग्रेस को पता है कि जब किसी रक्षा सौदे पर सवाल उठता है तो हथियार की गुणवत्ता पर चर्चा नहीं होती. यही हाल बोफोर्स का हुआ था. कोई भी उस तोप की गुणवत्ता की बात नहीं कर रहा था जबकि सच्चाई है कि पिछले सालों में उससे अच्छी तोप भारत के पास नहीं आई है.

और यदि फैजियों से बात करें तो कारगिल जीतने के पीछे बोफोर्स का सबसे बड़ा हाथ था. मगर अब भी राफेल कितना बेहतर है या सबसे बेहतर है इस पर बात नहीं हो रही है जबकि सब उसकी कीमत की बात कर रहे हैं. और यही कांग्रेस के हित में है और वह इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहती है. कम से कम तक अगले लोकसभा चुनाव तक. उसकी रणनीति रा‍फेल को बीजेपी का बोफोर्स बनाने की है और यदि कांग्रेस नेताओं की मानें तो उन्हें इसमें सफलता भी मिल रही है.


मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...

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