प्राइम टाइम इंट्रो : आरबीआई की शर्तों से शादियों का खर्च फंसा

प्राइम टाइम इंट्रो : आरबीआई की शर्तों से शादियों का खर्च फंसा

17 नवंबर को घोषणा होती है कि जिनके घरों में शादी है वो अपने बैंक से ढाई लाख रुपये निकाल सकते हैं. इस खबर के आते ही जिनके घरों में शादियां थीं, वो बैंकों की तरफ भागे. अव्वल तो उन्हें भी उसी लाइन से गुज़रना पड़ा जो होती तो लंबी है, मगर उसमें लगे सभी को पैसे नहीं मिलते थे. जब शादी के घर वाले कार्ड लेकर मैनेजर तक पहुंचे, तो कई जगहों पर मैनेजर जवाब देने लगे कि हमारे पास देने के लिए ढाई लाख रुपये नहीं हैं और इस तरह से पैसे देने के लिए उन तक गाइडलाइन नहीं पहुंची है. टीवी पर एलान हो जाने से कोई पैसा कैसे देगा, जब तक मैनेजर के पास लिखित निर्देश नहीं पहुंचेगा. लिहाज़ा निराश लोगों को इन ख़बरों और फैसलों पर भी शक हुआ. 4 दिन तक अफरातफरी रही तब जाकर भारतीय रिज़र्व बैंक ने 19 नवंबर को कहा कि बैंक अगले हफ्ते से ये पैसा देना शुरू करें, जब उन्हें गाइडलाइन मिल जाएगी. 21 नवंबर को आरबीआई ने अधिसूचना जारी कर जो गाइडलाइन बैंकों को भेजी उससे शादी वाले घरों की परेशानियां और बढ़ गई.

पहली शर्त ये थी कि 30 दिसंबर तक शादी वाले घर के लोग पैसा निकाल सकते हैं, लेकिन उतना ही पैसा निकाल सकते हैं जितना उनके खाते में 8 नवंबर तक जमा होगा. यही नहीं दूल्हा-दुल्हन के मां-बाप या खुद दूल्हा-दूल्हन पैसा निकालने बैंक जायेंगे. दूल्हा-दूल्हन के परिवार अलग-अलग ढाई लाख ही निकाल सकेंगे. जिस किसी ने ये गाइडलाइन बनाई है वो लगता है कि बहुत दिनों से किसी शादी में नहीं गया है, न ही उसके यहां किसी की शादी हुई है. पर ऐसा तो हो ही नहीं सकता है. शादी वाले परिवारों की समस्या सिर्फ पुराने नोट बदलने की नहीं है. जो जमा है उसे निकालना भी है. बिल्कुल शादी सादगी से होनी चाहिए लेकिन क्या यह फैसला लोगों का होगा या नोटबंदी से होगा. अगर नोटबंदी का यह भी मकसद है तो इसे अगले लगन में भी लागू कर देना चाहिए. जब तक यह नहीं होता तब तक अपने पैसे को पाना किसी का भी अधिकार तो है ही, चाहे वो खर्च करे या न करे.

यही नहीं शादी ब्याह की अपनी एक अर्थव्यवस्था होती है. कई तरह के रोज़गारों को इससे सहायता मिलती है. वो सब ठप्प से पड़ गए. रिजर्व बैंक की गाइडलाइन से अगर दूल्हा-दुल्हन बैंक की लाइन में घंटों खड़े रहेंगे या उनके माता-पिता रहेंगे तो बाकी तैयारी का काम कौन देखेगा. बहुत से लोग शादी के लिए उधार लेते हैं, घर बेचते हैं. यह सब पैसा कैसे बैंक में जमा होगा. अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक तरीके से अमेरिका से दिल्ली के खाते में जमा भी कर दे तो भी वो पैसा नहीं निकाला जा सकेगा. सरकार तय कर रही है कि आप अपने खाते से कितना पैसा निकालेंगे, क्योंकि 86 प्रतिशत नोटों का विस्थापन नए नोटों से अभी तक हुआ नहीं है.

शर्तों की गाड़ी यही नहीं रुकी. अपना ही 2.5 लाख निकालने के लिए कैटरर्स, टेंट वाले या मैरिज होम को जो अडवांस दिया होगा उसकी रसीद भी देनी होगी. जिसके घर में शादी है उसे हलफनामा जैसा देना होगा कि उन्हीं को नगद राशि दी गई है जिनके पास बैंक खाता नहीं है. जैसे आप मंडप सजाने के लिए फूलवाले को तभी इस ढाई लाख में से दे सकेंगे, जब उसके पास कोई बैंक खाता नहीं होगा. इसका एक मतलब यह है कि अगर फूल वाले के पास बैंक का खाता हुआ तो उसे चेक से देना होगा.

यही नहीं बैंक को सारे दस्तावेज संभाल कर रखने होंगे. भारतीय रिज़र्व बैंक ने 22 नवंबर को एक और सर्कुलर जारी किया है. 21 नवंबर का सर्कुलर ही मान्य है, बस इसमें एक बात यह जोड़ी गई है कि जिस इंसान को दस हज़ार या उससे ज्यादा नगद देने हैं, उन्हीं का ही नाम बैंक में जमा कराने हैं. बैंक वालों का काम भी कितना बढ़ गया है. इस बहाने हर मैनेजर हमारे समाज की जो सच्चाई देख रहा होगा, वो अद्भुत होगा. उम्मीद करता हूं कि कोई मैनेजर इन अनुभवों को कलमबद्ध करेगा. समाजशास्त्री को घूम-घूम कर शादियों की रिकार्डिंग करनी चाहिए कि इस वक्त भारत में लाखों शादियों कैसे हो रही हैं. दिल्ली में तो एक दिन में 25 से 30 हज़ार शादियों होती हैं.

अब आते हैं किसानों की समस्या पर. वित्त मंत्री ने भी कहा है कि हमारा अगला ज़ोर ग्रामीण क्षेत्रों पर होगा, तो हम भी किसानों पर फोकस करते हैं. नवंबर से 15 दिसंबर का महीने रबी की फसल की बुवाई का होता है. रबी में मुख्य फसल गेहूं की है. लेकिन इलाके के हिसाब से लोग रबी के सीज़न में जौ, चना, आलू और मसूर भी बोते हैं. इस दौरान सिर्फ बीज ही नहीं, खाद की भी ज़रूरत होती है. इसके लिए किसान धान बेचकर पुराना कर्ज चुकाते हैं और नया कर्ज लेते हैं.

नोटबंदी के कारण किसान कोऑपरेटिव बैंक से बीज, खाद और दवा नहीं खरीद सकते और न ही लोन ले सकते हैं. ज़िला कोऑपरेटिव बैंक और प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसायटी के नोट बदलने, जमा करने और निकालने पर रोक है. इनके पास नए नोट ही नहीं है तो निकालने पर कहां से पैसे देंगे. अर्बन कोऑपरेटिव बैंक भी नोटों की कमी की शिकायत कर रहे हैं. कोऑपरेटिव बैंक सिर्फ बैंक नहीं, बल्कि दवा, खाद और बीज की दुकान का भी काम करते हैं. कोऑपरेटिव बैंक किसानों की लाइफ लाइन हैं. मुंबई ज़िला सहकारी बैंक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है कि रिजर्व बैंक ने मनमाने तरीके से ज़िला सहकारी बैंकों को इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया है. बुवाई का वक्त 15 दिसंबर तक है इसलिए सरकार और किसान के पास अभी भी एक-दो हफ्ता है कुछ करने के लिए. बहुत देरी होगी तो गेहूं की पैदावार तो बढ़ जाएगी मगर क्वालिटी खराब हो जाएगी. रिजर्व बैंक ने कहा है कि ज़िला कोऑपरेटिव बैंक और पीएसीएस किसानों को बताएं कि वे अपने खाते से हर हफ्ते 24,000 रुपये निकाल सकते हैं, लेकिन इन बैंकों की शिकायत है कि उन्हें नोट नहीं मिल रहे हैं.

नए नोटों की कमी या अदला बदली की अनुमति न होने के कारण किसानों पर क्या असर पड़ा है, यह जानने के लिए हमने गाज़ियाबाद ज़िला सहकारी बैंक के कुछ लोगों से बात की. इस बैंक के दो-तीन ज़िलों में 33 ब्रांच हैं और साढ़े तीन लाख किसान इसके सदस्य हैं गाज़ियाबाद को 4 करोड़ रुपये ही अलग-अलग बैंकों से मिले हैं. नया नोट पर्याप्त नहीं मिल रहा है. 29 ब्रांचों का आंकड़ा बताता है कि अभी तक 1 करोड़ 34 लाख का ही लोन बंटा है, जबकि पिछले साल 8 से 22 नवंबर के बीच 4 करोड़ 44 लाख का लोन बंट चुका था. सिर्फ 6400 हज़ार किसानों को रबी की खेती के लिए कर्ज़ मिला है. करीब तीन लाख किसानों को पैसे नहीं मिले हैं।

सिर्फ खेती ही नहीं, किसानों का बाकी जीवन भी प्रभावित हुआ है। इलाज, शादी, स्कूल की फीस के अलावा वे पशुओं के लिए चारा और खली भी खरीद कर लाते हैं. उनकी दवा-दारू भी होती है, आदमी की तो होती ही है. सबको इंतज़ार है कि सरकार कोऑपरेटिव बैंकों के बारे में कुछ फैसला करेगी और राहत देगी. एक बैंक मैनेजर ने बताया कि सरकार को खाद के लिए कुछ करना चाहिए। इनका सुझाव है कि नया खाता खोलने पर रोक लगाई जा सकती है. पुराने खाते में जमा करने और निकालने की राशि तय की जा सकती है. सरकार ने सोमवार को फैसला सुनाया कि किसान केंद्र और राज्य सरकार के बीज केंद्रों, कृषि विश्ववद्यालयों से बीज खरीदने के लिए पुराने नोटों का इस्तेमाल कर सकता है. इस राहत से भी किसानों को राहत नहीं हुई है, क्योंकि सरकार का यह फैसला शादी के फैसले की तरह सभी बीज बिक्री केंद्रों पर नहीं पहुंचा है. खाद के बारे में भी छूट का इंतज़ार हो रहा है.

हमारे सहयोगी धनंजय ने महाराष्ट्र के अकोला ज़िले के अकोट तहसील से एक खरीद बिक्री केंद्र का हाल पता किया.
खरीद बिक्री केंद्र के शालीग्राम काले ने कहा कि सरकार के फैसले की सूचना उन तक लिखित नहीं पहुंची है, इसलिए वे पुराने नोटों के बदले बीज नहीं दे रहे हैं. शालीग्राम जी अक्तूबर महीने में ही गेहूं के साठ क्विंटल बीज लेकर आए थे लेकिन 22 नवंबर तक सिर्फ 10 क्विंटर बीज ही बेच पाए हैं. इनकी दुकान पर 8 नवंबर के बाद से 10,000 का ही बिजनेस हुआ है जबकि अब तक 50 से 60 हज़ार का बिजनेस हो जाता था. एक बोरी में 40 किलो गेहूं के बीज होते हैं. कीमत होती है 1400 रुपये. बीज के साथ 50 किलो डीएपी खाद भी लगता है जिसकी कीमत है 1160 रुपये. महाराष्ट्र बीज निगम ने तो अक्तूबर के महीने में ही अपने डीलरों को बीज की सप्लाई कर दी थी लेकिन डीलर 8 नवंबर के बाद नहीं बेच पा रहे हैं. महाराष्ट्र में 4500 से 5000 अधिकृत डीलर हैं. 22 तारीख को कुछ बिजनेस हुआ वो भी नए नोट से.

हमारे सहयोगी मनीष कुमार बिहार के पूर्णिया और फारबिसगंज में खाद की दुकान पर गए. प्राइवेट दुकानदार पुराने नोटों के बदले खाद नहीं बेच सकता है, सिर्फ सरकारी दुकान ही ले सकते हैं. वो भी बीज के लिए.

हम राजस्थान के किसानों का भी हाल जानेंगे लेकिन पहले बताते हैं आगरा की आलू मंडी का हाल. आलू के तीन प्रकार होते हैं. एक बहुत छोटे आकार का आलू होता है जिसे बेबी पटेटो और किरच कहते हैं. उससे थोड़ा सा बड़ा आलू गुल्ला आलू कहलाता है. इन दोनों का इस्तमाल बीज के रूप में होता है और इसी नवंबर महीने में आलू की बुवाई होती है. आलू किसान व्यापारियों का कहना है कि आलू की इस वेरायटी की कीमत पूरी तरह से क्रैश कर गई है. व्यापारियों ने बताया कि दो महीने पहले यहां 50 किलो आलू की बोरी 800 रुपये में बिक रही थी. 7 नंबवर तक 700 से 750 रुपये बोरी का भाव था. 8 नवंबर की नोटबंदी के बाद एक हफ्ते तक आलू मंडी को पाला मार गया. उसके बाद रेट संभला ही नहीं. क्वालिटी के हिसाब से बड़ा आलू 350 से 500 रुपये बोरी के बीच बिक रहा है. आगरा मंडी से हर दिन दक्षिण भारत और महाराष्ट्र की ओर 500 ट्रक निकलते थे लेकिन अब इनकी संख्या मुश्किल से 100-150 रह गई है. बहुत जगहों से आर्डर कैंसल हो रहे हैं. एक किसान ने बताया कि 480 बोरी आलू लोड कर कानपुर भेजा लेकिन कानपुर में आलू इतना कम बिका कि व्यापारी ने 9032 रुपये ही दिये. अगर वो नोटबंदी से पहले के रेट से देता तो किसान को ढाई लाख रुपये मिलते. इसमें से वो स्टोर का 50,000 किराया चुकाता. मगर अब उसे भयंकर घाटे का सामना करना पड़ेगा. यानी आलू के किसानों को एक ट्रक पर डेढ़ से दो लाख का घाटा हुआ है.

हर किसान का अनुभव अलग है मगर किसानों की परेशानी भी अलग-अलग है. कई मंडियों में किसानों को सब्ज़ी वगैरह कम दाम पर बेचनी पड़ रही है. हमारे सहयोगी सौरभ शुक्ला दिल्ली के आज़ादपुर मंडी गए थे. कई सब्ज़ियों के दाम गिर गए हैं. उम्मीद है उपभोक्ताओं तक इसका लाभ पहुंच रहा होगा लेकिन किसान का खर्चा नहीं निकलेगा तो वो इस अच्छे मॉनसून का लाभ नहीं उठा सकेगा. इस बार मॉनसून अच्छा रहा है और किसान मुनाफे की आस में थे.

सौरव को एक किसान ने बताया कि वो 250 किमी दूर फतेहाबाद से आया था. बैंगन का उत्पादक है. नोटबंदी से पहले वो 40 किलो की अपनी बोरी 500 से 600 रुपये में बेचता था, लेकिन 22 नवंबर को वो 100 से 150 रुपये में बेच कर गया वो भी उधार. यानी इस किसान को एक बोरी पर लगभग चार सौ का घाटा हुआ. किसान का कहना था कि आने जाने का भाड़ा भी नहीं निकला है. हरी सब्जियों के दाम पर ज्यादा असर पड़ा है. टमाटर का एक किसान यहां शिमला आया था, वो आढ़ती से पुराने नोट ही लेकर चला गया कि वहां से इतनी दूर आना संभव नहीं है. उसने कहा कि किसानी करें या नोट बदलें.

किसानों को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कैसे होगी. इसलिए उनका संकट सिर्फ बीज का संकट नहीं है. अगर किसी तरीके से किसानों के इन नुकसान की गणना हो सकती है तो पता चलता कि यह संख्या कई हज़ार करोड़ की होती या लाख करोड़ की. किसानों को सरकार से उम्मीद है. ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों में नगदी की समस्या बनी हुई है, बल्कि शहरों में भी बैंकों में पैसे जल्दी खत्म हो जा रहे हैं. हमें यह भी देखना होगा कि अगर एक किसान को पचास हज़ार से लाख दो लाख का नुकसान हुआ तो उससे वो कितने दिनों में उबर पाएगा. कर्ज पर कितना बोझ पड़ेगा. हिमांशु शेखर बता रहे हैं कि आटे के दाम के बाद दालों की कीमत भी बढ़ गई है. रीवा में चना का दाल 38 रुपया किलो महंगा हो गया है और शिलांग में 37 रुपये, भटिंडा में 25 रुपया किलो महंगा हो गया है.

गुरुवार से बिग बाज़ार के आउटलेट से 2000 तक आप निकाल सकते हैं. नोटबंदी के कारण पैसा न मिलने का तनाव अवसाद में बदल रहा है और कुछ जगहों से ख़ुदकुशी तक की ख़बरें सामने आ रही हैं. ऊपर से बैंकों में बदइंतज़ामी अलग परेशान कर रही है. बैंकों की कतार में तरह तरह की दुर्घटनाएं भी हो रही हैं. हरियाणा के अंबाला में एक बुज़ुर्ग महिला इसका शिकार हुई. अपनी भतीजी और भतीजे की शादियों के लिए नए नोट निकालने वो स्टेट बैंक ऑफ़ पटियाला की ब्रांच में आई थीं. पैसे निकलवाने के फॉर्म बैंक के बाहर जनरेटर के पास रखे हुए थे. फॉर्म उठाने गईं तो जनरेटर के पंखे में उनका शॉल फंस गया, गला घुटने से मौत हो गई. शादी के घर में मातम पसर गया है. बेटे ने बताया कि मां एक दिन पहले भी पैसे निकलवाने गई थीं लेकिन बैंक ने उनसे मोबाइल नंबर मांगा. उन्हें नंबर याद नहीं था तो घर लौट आईं, अगले दिन गईं तो मौत ने जकड़ लिया. पुलिस ने इस मामले में बैंक कर्मियों की लापरवाही मानते हुए उनके ख़िलाफ़ केस दर्ज कर दिया है. उधर अलीगढ़ और राजकोट से भी दो ऐसी ख़बरें आईं जो किसी को भी सिहराने के लिए काफ़ी हैं. अलीगढ़ में एक मां ने नोटबंदी से परेशान होकर ख़ुदकुशी करने की कोशिश की तो राजकोट में एक पिता ने बेटी की शादी में तंगी के चलते जान दे दी.


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