हां मैं एक शॉपॉहॉलिक हूं, पर आज शापिंग न कर पाई!

हां मैं एक शॉपॉहॉलिक हूं, पर आज शापिंग न कर पाई!

प्रतीकात्मक फोटो.

सेल! सेल! सेल! यह शब्द सुनते ही मेरे जैसा व्यक्ति बहुत खुश हो हर उस डील के बारे में सोचने लग जाता था जिसकी आस में हम जैसे सेलरी क्लास लोग हर वक्त रहते हैं.

नए साल के आगमन के साथ मन में पुरानी सारी चीज़ें भुला हम सब नई राह पर फिर से भागने लगते हैं. इस साल ये करेंगे - वो करेंगे के विचार कूदने लगते हैं. इसी प्रकार मैनें भी शापिंग (ज़्यादा) न करने का प्रण लिया! और नोटबंदी की घटना के बाद तो यह सोच ही लिया था की अब कुछ फालतू खर्चा न कर थोड़ा जमा कर लेंगे. पर मेरी इस सारी प्लानिंग पर पानी फिर गया जब बिन मौसम की सेल आ गई. बार-बार यह लगा न जाऊं पर सहेलियों ने कहा देख तो आओ बहुत खुश होकर आओगी.

अब एक तरफ न्यू इयर रेज्योल्यूशन था और दूसरी तरफ बेमौसमी सेल! दिल को समझाते हुए की एक बार से कुछ नहीं होगा कहते हुए मैं निकल पड़ी. मॉल की एंट्री पर भीड़ न देख मुझे लगा यह कैसी सेल है? न लंबी लाइन, न पहले पहुंचने की जल्दी करती हुई महिलाएं? अब लगने लगा कि गल्ती हो गई है! कुछ होगा ही नहीं ऐसे ही मैं पहुंच गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही पहली हाई ब्रांड स्टोर पर मैंने फ्लैट 50% का बोर्ड देखा. मुझे लगा मिल गई डील! अब जहां भी नजर घूमी एक से एक ऑफर.

ऐसा मैंने कभी अपने शापिंग करियर में पहले नहीं देखा. आंखों पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था, लेकिन इन सब बेहतरीन आफर्स के बाद भी भीड़ न दिखी, खरीदारों के हाथ थैलों से भरे न दिखे. अब मेरे मन में कई सवाल आने लगे, यह यकीन मानिए इसका नोटबंदी से कुछ लेना देना नहीं है! अभी कुछ दिन पहले ही तो यह सुना था कि फिल्में तमाम बेबुनियादी खबरों के बाद भी अच्छा कर रही हैं, करोड़ों का कारोबार हो रहा है! लेकिन मैं जहां हूं यहां पर नोटबंदी का सफल परिणाम हम सबके सामने है. मेरा ध्यान शापिंग से हट अब यह टटोलने में लग गया कि मुझे एक ऐसी दुकान ढूंढनी है जिस पर कोई ऑफर न हो और वो खुशी से बेच रहा हो.

मॉल के एक कोने से दूसरे कोने तक सारी दुकानें ढूंढ लीं पर मैं निराश ही हुई! अब इतने अच्छे ऑफरों के बावजूद भी मेरी इच्छा कुछ भी न खरीदने की तरफ तेजी से बढ़ रही थीं. ऐसी हालत देख लगा मैं भी बचत की तरफ ध्यान दूं तो ज्यादा बेहतर है. हर दुकान में जाकर सेल्समेन को इतनी बेहतरीन स्कीमें होते हुए खाली खड़ा देख नोटबंदी का डायरेक्ट लाइव टेलिकास्ट देख लिया. अब छिड़वा दीजिए बहस और रख दीजिए आंकड़े, जो आंखोदेखी है उसे अब मैं क्या कोई भी झुठला नहीं सकता.

क्या मुझे अब खरीदने के लिए कोई स्कीम लुभा पाएगी? सेल्स टार्गेट तक न पहुंचाने वाले सेल्समैन को नई नौकरी मिल पाएगी? उन तमाम नए ट्रेंड के कपड़ों के बोझ को संभालते शोरूम क्या कोई बैटर आइडिया निकाल पाएंगे? प्लीज मुझे इन सभी सवालों से जुड़ी कोई रिपोर्ट या सर्वे दिला दें. कृपया मेरे शॉपाहालिक होने के बावजूद न खरीदने की वजह बता दें.


(मनप्रीत NDTV इंडिया में चैनल प्रोड्यूसर हैं)

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