'यारा' फिल्म में दोस्तों की केमेस्ट्री दिख रही है. फिल्म में आपका किस तरह का रोल है?
कहानी में मेरा किरदार काफी महत्वपूर्ण है. कहानी शुरू भी होती है चौकड़ी गैंग के बारे में और खत्म भी होती है उनके वर्क सर्कल के बारे में. और मुझे लगता है कि कहानी में सुकन्या जो मेरा किरदार है वह कहानी का एक बहुत ही अहम हिस्सा है.
जब आप यह फिल्म आप कर रहे होंगे तो आपको यह पता नहीं था कि यह ओटीटी पर रिलीज होगी. लेकिन अब यह फिल्म ओटीटी पर रिलीज हो रही है, ऐसे में आपको कैसा महसूस हो रहा है?
अभी जो माहौल है, उसमें लोग थिएटर नहीं जा सकते हैं. वहां जाकर एंजॉय नहीं कर सकते हैं. अभी देखा जाए तो मैं बहुत खुश हूं और मुझे राहत भी है क्योंकि अगर आप देखेंगे तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आकर, इसपर एक नया ऑडियंस भी आता है. मैंने खुद बहुत बार देखा है कि कोई फिल्म 4 या 5 साल पहले रिलीज हुई हो, कुछ साल बाद उसे देखकर मुझे सोशल मीडिया पर मैसेज करते हैं कि यह फिल्म मुझे अच्छी लगी और इसे मैंने थिएटर में नहीं देखी थी. तो ऐसे में बहुत सारे एडवांटेज भी हैं. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि यारा जैसी फिल्म रिलीज हो रही है और अभी सभी घर पर हैं. यह फिल्म हमने बहुत साल पहले शूट की थी और असल में मैं भूल चुकी थी कि यह रिलीज होगी भी कि नहीं. ऐसे में यह मेरे लिए एक जरूरी फिल्म है.
तिग्मांशु धूलिया हिंदी और देसी फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं. आपका उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
उन्हें नॉर्थ इंडिया बहुत अच्छे से समझ आता है और वो मेरी दुनिया से काफी अलग था इसलिए मुझे काफी कुछ सीखने को मिला. मैं यह भी कहना चाहुंगी कि उनकी फिल्म में जो औरत का किरदार है, बहुत ही अलग होता है. कुछ अलग, एक सकारात्मक प्रभाव होता है कैरेक्टर का. इस फिल्म में भी सुकन्या का रोल ऐसा ही है.
आप बता रही हैं कि रोल काफी अलग था तो आपके लिए यह कितना चैलेंजिंग रहा?
मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला तिग्मांशु सर से. वो बहुत क्लियर हैं, बहुत ही शानदार एक्टर हैं. डायरेक्शन में भी एक्टिंग का पॉइंट ऑफ व्यू बहुत अच्छे से समझते हैं. तो उनके साथ काम करने में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और यह कैरेक्टर निभाने में भी मुझे आसानी हुई.
आप साउथ में भी फिल्में करती हैं और काफी बड़ी-बड़ी फिल्में की हैं आपने वहां. तो किस तरह का अंतर है दोनों सिनेमा में?
मुझे लगता है कि जो अंतर है वो ज्योग्राफी का नहीं है. जो लोग इंचार्ज होते हैं कैरेक्टर हों या कोई और, वो माहौल बनाते हैं अपने विचार से.
श्रुति अभी 5 महीने हो चुके हैं, लॉकडाउन में आपका अनुभव कैसा रहा है?
एक महामारी हुई थी, इतिहास में. तब 80% लोगों के पास टेलीफोन भी नहीं था. अभी इतनी टेक्नॉलॉजी है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म, इंटरनेट कनेक्शन या टेलीफॉन के बिना आप यह टाइम बिताने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं. तो मुझे लगता है कि यह ठीक है, जो है सो है क्योंकि लोग मैनेज कर रहे हैं. मैं बहुत खुश हूं कि मेरे पास घर है, खाना है. क्योंकि कई लोगों के पास ये लग्जरी भी नहीं है. हमने देखा प्रवासी मजदूरों की हालत.
श्रुति आपने काम शुरू कर दिया है या अभी रोका हुआ है, जो अपकमिंग प्रोजेक्ट्स हैं उनके लिए?
मेरे दो प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू होने वाले थे तो ये सब अभी किसी के हाथ में कुछ नहीं है. इसलिए देखेंगे कि क्या होता है और एडजस्ट करेंगे कि क्या करना है.
बॉलीवुड में जो आउटसाइडर और इनसाइडर की बहस चल रही है, इस पर आपका क्या नजरिया है?
मैं कभी यह नहीं कहूंगी कि दूसरों के विचार में मैं जरूर इंसाइडर हूं. लेकिन यहां पर रहना आपकी मेहनत और आपका काम देखकर ही होता है. मैंने यह कभी मना नहीं करुंगी कि सरनेम की वजह से दरवाजे खुलते जरूर हैं 100%, लेकिन हमने कई उदाहरण देखे भी हैं जो नहीं कर पाए. आउटसाइडर और इनसाइडर की बात मुझे हजम नहीं होती, क्योंकि मुझे हमेशा आउटसाइडर की ही फीलिंग आई. मैं अपने आपको थोड़ी सी अलग मानती हूं. लोगों को मुझे समझने में और मुझे लोगों को समझने में बहुत टाइम लगा है. अब भी पूरा नहीं हुआ है वो कम्युनिकेशन.