Bismillah Khan: बिस्मिल्लाह खान की शहनाई से खिंचे चले आए थे लंगोट वाले बाबा, हाथ में डंडा लिए बोले...

Ustad Bismillah Khan (उस्ताद बिस्मिल्लाह खान) की शहनाई का जादू आज भी बरकरार है. हर शुभ मौके पर उसको बजाया जाता है, और इसी बहाने उस्ताद को याद किया जाता है. ऐसा ही कुछ गूगल ने डूडल बनाकर किया है.

Bismillah Khan: बिस्मिल्लाह खान की शहनाई से खिंचे चले आए थे लंगोट वाले बाबा, हाथ में डंडा लिए बोले...

Ustad Bismillah Khan 102nd Birthday: मस्तमौला अंदाज में जिंदगी जी, शहनाई का नहीं छोड़ा कभी साथ

खास बातें

  • 21 मार्च 1916 को हुआ था जन्म
  • बिहार के डुमरांव के रहने वाले थे
  • छह साल की उम्र में आ गए थे बनारस
नई दिल्ली:

Ustad Bismillah Khan (उस्ताद बिस्मिल्लाह खान) समय से परे के शहनाईवादक हैं. उनकी शहनाई का जादू जो आज से 50 साल पहले था, वो आज भी बरकरार है. आज बिस्मिल्लाह खान की 102वें बर्थडे पर गूगल ने अपने अंदाज में उन्हें डूडल बनाकर याद किया है. बिस्मिल्लाह खान को 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. यतींद्र मिश्र ने उनसे बातचीत पर आधारित किताब 'सुर की बारादरी' लिखी है, जिसमें पता चलता है कि वे एक्ट्रेस सुलोचना की फिल्मों के दीवाने थे और कुलसुम की कचौड़ियां खूब खाते थे. उस्ताद मंदिर में शहनाई बजाकर जो भी कमाते थे, इन्हीं दोनों पर खर्च कर देते थे. लेकिन एक ऐसा भी वाकया है जिसने उनकी जिंदगी बदलने का काम किया है. 

आइए जानते हैं Ustad Bismillah Khan का क्या है वह किस्साः

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बताते हैंः "एक बार का वाकेया है काफी पहले का, तब हमारी उम्र यही कोई 20-22 बरस की रही होगी. एक दफा रियाज के दौरान मामू ने मुझसे कहा, "अगर तुम्हें कुछ दिखाई दे. तो किसी से कहना मत." इसके दो-ढाई साल बाद का वाकेया है. रात के दस-ग्यारह बजे होंगे. मैं हमेा की तरह पालथी मारे आंखें बंद किए रियाज कर रहा था. अचानक मेरी नाक में तेज खुशबू आई. बजाते हए मेरे दिमाग में बात आई, मैंने इत्र-सेंट तो लगाया नहीं, इतनी अच्छी खुशबू आई. मैंने आंखें खोलीं. देखा, मेरे ठीक सामने काफी लंबे और गोरे से बाबा खड़े हैं- लंबी दाढ़ी, बड़ी-बड़ी चौड़ी आंखें, हाथ में लंबा-सा डंडा, कमर में बस एक लंगोटी. मैं बेहद डर गया, कांपने लगा. सोचा, मंदिर का एकमात्र दरवाजा बंद है, सामने गंगा है, बाबा आखिर आए किधर से? तभी वे हंसते हुए बोले, "वाह बेटा वाह! बजा, बजा, बजा." मुझे कंपकंपी छूट रही थी और कुछ सूझ नहीं रहा था. 'जा, मजा करेगा,' कहकर वे मुड़े और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गए."

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने 'सारंगी के आतंक' के दौर में यूं दिलाई शहनाई को पहचान

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बताते हैंः "उनके बाहर निकलते ही मैंने सोचा कि मैं भी कितना मूरख हूं, बाबा से कुछ वरदान मांग लेना चाहिए था. और, मैं तेजी से लपका. बाहर आकर बहुत ढूंढा, मगर बाबा का कही पता नहीं चला. मैं और डर गया, साज को बगल में दबाए हुए भागा. चौखंभा में एक दूधवाले की दुकान खुली थी, वहां कुछ पल रुका. उसने पूछा, "हुआ क्या?" मैं जवाब देने की स्थिति में नहीं था. हांफता हुआ घर पहुंचा. मामू सोर रहे थे, मैं भी चुपचाप सो गया. सुबह उठा, तो मुझसे रहा नहीं गया. मामू को जाकर सारा वाकेया एक सांस में सुना डाला. बात खत्म होते-होते तड़ाक से उन्होंने मुझे एक तमाचा लगायाा, "मरदूद तुमको मना किया था न कि कुछ दिखाई दे तो किसी से कहना मत." फिर बोले "खैर! अब देखना कोई बात, तो किसी से मत कहना." इसके बाद दो वाकये और हुए, जिन्हें आज तक मैंने किसी से नहीं कहा."

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