बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट पर मिलने वाले ब्याज में बीते दो वर्षों में भारी गिरावट आई है. रिजर्व बैंक के नए गवर्नर उर्जित पटेल ने अपनी पहली मौद्रिक समीक्षा में रेपो दरों में 25 आधार अंकों की कमी की, जिसके बाद ब्याज दरों के और गिरने की संभावना है.
आने वाले महीनों के दौरान महंगाई में गिरावट की उम्मीदों के बीच आरबीआई द्वारा दरों में और कमी किए जाने की उम्मीद है. इससे बैंकों पर ब्याज दर कम करने का दबाव है.
रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने एक नोट में इस ओर संकेत देते हुए लिखा है, 'विभिन्न छोटी बचतों पर मिलने वाले ब्याज में कमी के साथ रेपो दरों में कमी से बैंकों पर जमा धन एवं ऋण पर ब्याज कम करने का दबाव बनेगा.' वहीं ब्रोकरेज कंपनियों का मानना है कि रिजर्व बैंक 31 मार्च, 2017 को खत्म होने वाले इस वित्तीय वर्ष में आगे भी रेपो दरों में 25-50 आधार अंकों की कमी कर सकता है.
कुछ मिला कर अगर देखें तो जनवरी 2015 के बाद से अब तक रिजर्व बैंक ने रेपो दरों में 175 आधार अंकों की कमी की है. वहीं वेल्थ एडवायजरी कंपनी ऑउटलुक एशिया कैपिटल के अनुमान के मुताबिक, भारत की सबसे बड़ी ऋणदाता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इस दौरान एक साल के फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज 135 आधार अंक घटाए हैं.
वहीं दूसरी तरफ आरबीआई द्वारा रेपो दरों में कटौती से उन लोगों से फायदा हुआ है, जिन्होंने म्यूचुअल फंड और खासकर मध्यम या फिर लंबी अवधि के सरकारी व कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश किया था.
वैल्यू रिसर्च के मुताबिक, पिछले एक साल में गिल्ट या सरकारी बॉन्ड (मध्यम एवं लंबी अवधि वाले) म्यूचुअल फंड पर 12.5 फीसदी का औसत सालाना रिटर्न, तो पिछले तीन साल में 12.2 फीसदी का रिटर्न मिला.
वहीं डायनेमिक बॉन्ड श्रेणी में पिछते तीन वर्षों में करीब 11 फीसदी का रिटर्न मिला. डायनेमिक बॉन्ड फंड्स विभिन्न मैच्यूरेटी प्रोफाइल के डेब्ट सिक्यूरिटीज में निवेश करता है, जो कि फंड प्रबंधकों के ब्याज दर नजरिये पर निर्भर करता है.
अब सवाल है कि अगर आप ऋण बाजार की रैली से चूक गए हैं तो क्या आपको अब इसमें पैसे लगाने चाहिए?
विश्लेषकों को उम्मीद है कि आरबीआई द्वारा आगे भी रेपो दरों में कटौती की उम्मीद और वैश्विक नरमी के बीच भारतीय ऋण बाजार में बड़े विदेश निवेश के चलते ऋण बाजार में यह रैली आगे भी जारी रहेगी. ब्याज दरों और बॉन्ड के मूल्य आपस में इस तरह जुड़े हैं कि जब ब्याज दर गिरते हैं, तो बॉन्ड के दाम या डेब्ट म्यूचुअल फंड के नेट ऐसेट वैल्यू (निवल परिसंपत्ति मूल्य) या एनएवी ऊपर जाता है.
टैक्स बचाने के मामले में भी डेब्ट म्यूचुअल फंड फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में ज्यादा अच्छे होते हैं, खास उनके लिए जो कि उच्च टैक्स वाली श्रेणी में आते हैं. फंड्सइंडिया. कॉम की म्यूचुअल फंड रिसर्च की प्रमुख विद्या बाला कहती हैं कि मौजूदा हालात में निवेशकों को डेब्ट म्यूचुअल फंड्स में निवेश पर विचार करना चाहिए, जो कि पांच से आठ वर्षों में परिपक्व होते हैं. या फिर वे डायनेमिक बॉन्ड फंड्स में भी पैसे लगा सकते हैं, जहां फंड प्रबंधक ब्याज दरों को देखते हुए सक्रियता से बॉन्ड पोर्टफोलियो बदलते रहते हैं.
डिसक्लेमर : निवेशकों को सलाह है कि किसी भी तरह के निवेश से पहले खुद जांच परख कर लें.