रेल ट्रैवलर्स सर्विस एजेंटों (आरटीएसए) द्वारा टिकटों की ‘भारी’ मात्रा में बुकिंग रेल अधिकारियों की मिलीभगत से हो रही है। एक संसदीय समिति का मानना है कि इस तरह की अवैध गतिविधियां रेल अधिकारियों की मिलीभगत से चल रही हैं।
लोकलेखा समिति की रिपोर्ट के मसौदे में कहा गया है कि एजेंटों की इस तरह की अवैध गतिविधियां बिना यात्री आरक्षण प्रणाली में काम कर रहे रेल अधिकारियों की मिलीभगत से नहीं हो सकतीं।
आरटीएसए लाइसेंसधारी एजेंट होते हैं जिन्हें रेल मंत्रालय की ओर से यात्रियों के लिए टिकट खरीदने के लिए अधिकृत किया जाता है। इसके लिए वे मामूली शुल्क लेते हैं।
पीएसी द्वारा तत्काल तथा अग्रिम आरक्षण प्रणाली की जांच के बाद यह तथ्य सामने आया है कि वास्तव में जिन लोगों के लिए ये योजनाएं हैं उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि इसमें गड़बड़ी हो रही है।
यह तथ्य भी सामने आया है कि आरटीएसए के कई अनियमितताओं में शामिल होने के बावजूद पिछले 5 साल में उनके खिलाफ दिल्ली को छोड़कर कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है। सिर्फ दिल्ली में उनके खिलाफ नौ मामले दायर हुए हैं।
समिति ने एजेंटों तथा रेल कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की वकालत करते हुए रेलवे से इस तरह के सभी मामलों की जांच करने को कहा है। इस तरह के मामलों में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की गई है। हालांकि आरटीएसए की नियुक्ति रेलवे द्वारा की जाती है, लेकिन कंप्यूटरीकृत रेल आरक्षण प्रणाली में उनकी पहचान का कोई प्रावधान नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि उन्होंने कितनी टिकटों की बुकिंग कराई है।
रिपोर्ट को संसद के चालू सत्र में पेश किया जाएगा। इसमें एजेंटों की कई यूजर्स आईडी को तत्काल खत्म करने के लिए उपाय करने को कहा गया है जिससे वे बुकिंग प्रक्रिया में गड़बड़ी न कर सकें।
आरटीएसए और वेबसाइट एजेंटों की गतिविधियों पर कड़ी निगाह रखने के लिए डिजिटलीकृत आईडी की व्यवहार्यता का पता लगाने को कहा गया है। इसके अलावा समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि आरटीएसए और वेबसाइट एजेंटों की गतिविधियों की नियमित आधार पर जांच होनी चाहिए और सिर्फ उन्हीं आरटीएसए के लाइसेंस का नवीकरण होना चाहिए जो प्रक्रियाओं का अनुपालन करते हैं।