नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने मंगलवार को सार्वजनिक क्षेत्र की गैस कम्पनी गेल पर रियायती दर पर गैस आपूर्ति के जरिये निजी बिजली उत्पादक कम्पनियों को 246 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया।
सीएजी ने गेल पर यह भी आरोप लगाया कि वह उर्वरक कम्पनियों को रियायती गैस का गैर-उर्वरक बनाने में उपयोग से रोकने में असफल रही।
संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में सीएजी ने गेल पर आरोप लगाया कि वह रिलायंस इंडस्ट्रीज से एक महीने तक अधिक गैस हासिल करने के लिए जुर्माना के तौर पर 29.78 करोड़ वसूलने में असफल रही।
रिपोर्ट में कहा गया कि मंत्रालय के निर्देश से अलग जाकर गेल ने उन अयोग्य ग्राहकों को रियायती दर पर प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की, जो अपने ग्राहकों को वाणिज्यिक दर पर बिजली की आपूर्ति करते हैं।
सीएजी ने कारोबारी साल 2010-11 की रिपोर्ट में कहा, "गेल ने सरकार प्रशासित कीमत तंत्र (एपीएम) के तहत गैस की आपूर्ति ऐसी बिजली उत्पादक कम्पनियों को की, जिन्होंने 2006 में अपने ग्राहकों को वाणिज्यिक दरों पर आपूर्ति की। इससे गैस पूल खाते में 246.16 करोड़ रुपये की कम वसूली हुई, इससे ऐसे उत्पादकों को इतनी ही राशि का अनुचित लाभ मिला और योग्य ग्राहकों को यह लाभ नहीं मिल पाया।"
सरकार प्रशासित गैस सिर्फ उन बिजली कम्पनियों के लिए है, जो ग्रिड को आपूर्ति करने के लिए बिजली का उत्पादन करते हैं और जिनका वितरण सार्वजनिक उपभोक्ता कम्पनियों की मार्फत होता है।
सीएजी ने कहा कि गेल ऐसी प्रणाली का विकास करने में भी असफल रहा, जिससे यह तय किया जा सके कि किसी उर्वरक कम्पनियों ने गैर उर्वरक उत्पाद के निर्माण में कितनी गैस का उपयोग किया और उसके लिए भुगतान बाजार दर पर हो, न कि रियायती दर पर।
गैर उर्वरक के लिए उपयोग किए गए गैस की कीमत एक जनवरी 2009 से बाजार दर पर ली जानी थी। सीएजी ने कहा कि गैर उर्वरक उत्पादों के लिए गैस के उपयोग के मुद्दे के समाधान में तेल मंत्रालय और रसायन तथा उर्वरक मंत्रालय में तालमेल का अभाव था।
रिपोर्ट में कहा गया, "इस स्थिति के कारण जुलाई 2005 से दिसम्बर 2008 की अवधि गैस पूल खाते में कम वसूली हुई और सरकार द्वारा उर्वरकों पर अधिक रियायत का भुगतान किया गया।"