सरकार ने पिछले दो वित्त वर्ष में रसाई गैस सब्सिडी में 21,000 करोड़ रुपये से अधिक की बचत की है, क्योंकि सब्सिडी की रकम को सीधे वास्तविक उपभोक्ताओं के बैंक खातों में भुगतान करने से नकली कनेक्शन और चोर-बाजारी की समस्या पर रोक लगाने मदद मिली है। यह बात आज पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कही।
3.34 करोड़ उपभोक्ता खाते नकली, जाली या असक्रिय थे
सरकार ने चुनिंदा जिलों में रसोई गैस उपभोक्ताओं के बैंक खातों में सीधे सब्सिडी भुगतान की प्रक्रिया नवंबर 2014 में शुरू की थी और इसे पहली जनवरी 2015 से देश के शेष हिस्सों में भी शुरू कर दिया गया। एक अप्रैल 2015 तक रसोई गैस के 18.19 करोड़ पंजीकृत उपभोक्ता थे और सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या 14.85 करोड़ थी, जिसका अर्थ है कि 3.34 करोड़ उपभोक्ता खाते नकली, जाली या असक्रिय थे।
2015-16 में करीब 7,000 करोड़ रुपये की बचत हुई
प्रधान ने सब्सिडी पर आयोजित एक गोष्ठी में कहा, '3.34 करोड़ ऐसे उपभोक्ताओं को हटाने से 2014-15 में 14,672 करोड़ रुपये बचाने में मदद मिली।' उन्होंने कहा कि 2015-16 में करीब 7,000 करोड़ रुपये की बचत हुई जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले कम है। यह कमी मुख्य तौर पर वैश्विक स्तर पर तेल और गैस के मूल्यों में गिरावट के चलते हुई, क्योंकि इससे सब्सिडी की जरूरत कम हुई।
वित्त वर्ष 2014-15 में प्रति सिलिंडर सब्सिडी औसतन 366 रुपये थी
उन्होंने कहा, 'वित्त वर्ष 2014-15 में प्रति सिलिंडर सब्सिडी औसतन 366 रुपये थी। यदि हम प्रति कनेक्शन 12 सिलिंडर पर 336 रुपये प्रति सिलिंडर सब्सिडी की दृष्टि से 3.34 बंद फर्जी कनेक्शनों का हिसाब जोड़े तो इस लिहाज से उस साल एलपीजी सब्सिडी के तौर पर अनुमानित 14,672 करोड़ रुपये की बचत हुई।' उन्होंने कहा कि बाद के साल में औसत सब्सिडी कम रही, लेकिन उन्होंने इसका स्पष्ट आंकड़ा नहीं दिया।
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